महंगाई पर नियंत्रण के लिए केंद्र की राज्यों को मंडी शुल्क में एकरूपता लाने की सलाह

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नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने राज्यों से खाद्यान्न कारोबार पर मंडी शुल्क के प्राविधान में एकरूपता लाने की सलाह दी है। यूनिफार्म टैक्स प्रणाली के तहत इसे अधिकतम दो फीसद पर लाने का सुझाव दिया गया है।

इससे राष्ट्रीय स्तर पर जहां जिंस कारोबार में सहूलियत होगी वहीं आवश्यक वस्तुओं की महंगाई का मुकाबला करने में भी मदद मिलेगी। खासतौर से केंद्र ने उन राज्यों से विशेष आग्रह किया है कि जहां खाद्यान्न की सरप्लस पैदावार होती है।

ऐसे राज्यों में एमएसपी पर होने वाली खाद्यान्न की सरकारी खरीद पर मंडी शुल्क के साथ रूरल डवलपमेंट सेस और अन्य कई तरह की अतिरिक्त वसूली होती है। पिछले सप्ताह राजधानी दिल्ली में आयोजित खाद्य मंत्रियों के राष्ट्रीय सम्मेलन में केंद्र की ओर से इस बारे में विशेष चर्चा की गई। देश में उपभोक्ताओं के हितों को ध्यान में रखकर राज्यों के समक्ष यह प्रस्ताव रखा गया।

खाद्य सुरक्षा और बफर स्टाक के लिए केंद्रीय पूल में पंजाब और हरियाणा से सर्वाधिक खाद्यान्न की खरीद की जाती है। पंजाब में दो फीसद आढ़तिया कमीशन छोड़कर छह फीसद और हरियाणा में चार फीसद का मंडी शुल्क न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर वसूला जाता है।

दूसरे राज्यों उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में भी चावल व गेहूं की खरीद की जाती है। यहां मंडी समेत अन्य करों की दरें 1.6 फीसद से लेकर 2.7 फीसद तक हैं। फसल वर्ष 2020-21 के दौरान रबी व खरीफ सीजन में गेहूं व चावल की एमएसपी पर भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की अपनी खरीद पर कुल 11,300 करोड़ रुपए का मंडी शुल्क व अन्य कर देना पड़ा था।

इसमें 61 फीसद हिस्सेदारी अकेले पंजाब व हरियाणा की थी। इस मसले पर एकरूपता लाने को लेकर केंद्र सरकार ने लगातार कई प्रयास किए, लेकिन हर बार विफल रही। सरप्लस खाद्यान्न उत्पादक राज्यों में मंडी शुल्क की उच्चतम दरें और अन्य वैधानिक करों के चलते पूरा जिंस बाजार का स्वाभाविक स्वरूप बिगड़ जाता है। बाजार में प्राइवेट सेक्टर नहीं घुसना चाहता है।

सरकारी खरीद पर लगने वाला मंडी शुल्क

राज्य मंडी शुल्क की दर (प्रतिशत में)
पंजाब6
हरियाणा4
आंध्र प्रदेश2.7
उत्तर प्रदेश2.5
छत्तीसगढ़2.2
मध्य प्रदेश1.7
राजस्थान1.6

(इनमें आढ़तिया और सोसाइटीज कमीशन नहीं जुड़ा है।)

राशन प्रणाली के लिए छह करोड़ टन खाद्यान्न की खरीद
इसका सबसे ज्यादा कुप्रभाव खाद्य प्रसंस्करण उद्योग व मूल्यवर्धन करने वाले क्षेत्र को उठाना पड़ता है। केंद्र सरकार को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम पर अमल के लिए राशन प्रणाली के लिए सालाना छह करोड़ टन खाद्यान्न खरीदना पड़ता है जबकि पिछले दो सालों से प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना व अन्य कल्याणकारी योजनाओं के लिए अतिरिक्त अनाज खरीदना पड़ा है।