आखिरकार फाटक बाहर हो ही गए बड़बोले मंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा

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-कृष्ण बलदेव हाडा-
Rajendra Singh Gudha out of cabinet: राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आखिरकार अपने विरोधी सचिन पायलट खेमे के बड़बोले मंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा को शुक्रवार रात अपने मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा कर उन पार्टी विधायकों और मंत्रियों को कड़ा संदेश देने की कोशिश की है कि सरकार में रहते हुए भी लगातार सीधे-सीधे शब्दों में न केवल राज्य सरकार और उसकी नीतियों को बल्कि व्यक्तिगत स्तर पर प्रदेश के मुख्यमंत्री की खुलेआम आलोचना करने से बाज नहीं आ गए हैं।

ऐसी मंत्रियों की सूची में सैनिक कल्याण राज्य मंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा जो कोटा संभाग में बारां जिले के प्रभारी मंत्री भी थे, को शुक्रवार को अपने मंत्रिमंडल से हटाए जाने की अनुशंसा राज्यपाल कलराज मिश्र को भेज कर बाहर जाने का रास्ता साफ कर दिया।

राजेंद्र सिंह गुढ़ा पिछली बार पूछ मंत्रिमंडल के फेरबदल के समय ‘सचिन पायलट के समर्थक होने के कोटे’ से राज्य मंत्रिमंडल में शामिल किए गए थे, लेकिन इसके बाद से ही राज्य के मंत्रिमंडल में होते हुए भी वे लगातार राज्य सरकार,उसकी कई नीतियों और यहां तक की राजस्थान सरकार के मुखिया अशोक गहलोत की नीतियों पर कड़ा प्रहार खुले मंच से करते रहे थे। वे कई बार आमसभाओं यहां तक कि सरकारी कार्यक्रमों में भी राज्य सरकार की नीतियों की जमकर आलोचना करते हुए अपनी शैखी बघारने के लिए जाने जाती रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों ही नई दिल्ली में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे की उपस्थिति में आयोजित एक बैठक में इस बात पर सहमति व्यक्त की गई थी कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट सहित उनके खेमे के कोई भी मंत्री-नेता एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी नहीं करेंगे और अगर ऐसा करते हैं तो इसे अनुशासनहीनता मानते हुए उसके खिलाफ कार्यवाही की जाएगी।

इसी क्रम में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने शुक्रवार को पहली बार यह कड़ा कदम उठाया है और अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगी और सचिन पायलट के नजदीक सैनिक कल्याण मंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा को फाटक के बाहर का रास्ता दिखा जिसे बगावती तेवर अपना रहे नेताओं के लिए अशोक गहलोत के कड़े संदेश के रूप में देखा जा रहा है।

वैसे भी नई दिल्ली में हुई दोनों नेताओं की मौजूदगी वाली इस बैठक में ऐसे पार्टी-सरकार विरोधी बयान देने पर अंकुश लगाने के कड़े प्रावधान किए गए थे और यह भी तय किया गया था कि जनता के बीच में अच्छा संदेश देते हुए सभी मिलजुल कर एकजुटता के साथ अगला विधानसभा चुनाव लड़ेंगे, ताकि प्रदेश में लगातार दूसरी बार सरकार बनाकर तीन दशक से चली आ रही इस अवधारणा को तोड़ा जा सके कि राजस्थान में सरकार रिपीट होने की परम्परा नहीं है।