79 हजार किलो वजनी घंटी से निकली ओम की ध्वनि 8 किमी दूर तक सुनाई देगी

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सांकेतिक फोटो

घंटी को आकार देने का काम पूरा, अब तक 19 करोड़ से ज्यादा खर्च

कोटा। चम्बल रिवर फ्रंट पर बिना जोड़ (सिंगल पीस कास्टिंग) वाली घंटी कुछ ही दिनों में लगाई जाएगी। 79 हजार किलो वजनी घंटी को आकार देने का काम पूरा हो चुका है। 13 तरह की धातुओं काे पिघलाकर बनाई गई यह घंटी कुछ दिनों में ठोस अवस्था में आ जाएगी।

इसे तैयार करने वाले कास्टिंग इंजीनियर का दावा है कि इस घंटी से ओम की ध्वनि निकलेगी, जो 8 किमी दूर तक सुनाई देगी। चीन और रूस में बनी घंटियां इससे भी भारी हैं, लेकिन कोटा में बनी घंटी ज्यादा मजबूत है। इसका व्यास 8.5 मीटर है और ऊंचाई 9.25 मीटर।

इस प्रोजेक्ट के कास्टिंग इंजीनियर देवेंद्र आर्य बताते हैं कि इस घंटी को आकार देने के लिए पहले 3 से 4 हजार डिग्री तापमान पर धातुएं पिघलाई गईं। इसके बाद उसे घंटी तैयार करने के लिए बनाए गए सांचे में विशेष पात्रों की मदद से डाला गया। इस सांचे को ग्रीन सिलिका सैंड के जरिए बनाया गया था। धातुएं पिघलाने के लिए 35 भट्टी गुजरात से लाई गई थीं।

आर्य के मुताबिक मोल्ड बॉक्स में पिघली धातु को डालने से पहले उसके तापमान को 400 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचाया गया। यह तापमान सेट करना जरूरी था। तापमान सेट नहीं होता तो 3डी डिजाइन नहीं बन पाती।

उन्होंने बताया कि पिछले तीन-चार दिन से भट्टियां जलाकर तापमान 400 डिग्री तक ले जाया जा रहा था। कास्टिंग की प्रक्रिया 16 अगस्त को करनी थी, लेकिन चंबल नदी पास में होने के कारण नमी आ रही थी। इस वजह से तापमान सेट नहीं हो सका। फिर 17 अगस्त को कोशिश की गई, जो सफल रही। ढलाई के दौरान फैक्ट्री के अंदर का तापमान भी बहुत ज्यादा था। किसी तरह की दुर्घटना से नुकसान से बचने के लिए कर्मचारियों ने स्पेशल ड्रेस पहनी थी। फिर भी हर कर्मचारी के लिए खतरा बना हुआ था।

इंजीनियर देवेंद्र आर्य कहते हैं कि 17 अगस्त (गुरुवार) को देर रात ही घंटी को सांचे में ढालने का काम पूरा हुआ। ये काम इतना आसान नहीं था। इसमें बेहद रिस्क थी। थोड़ी-सी गलती सालों की मेहनत पर पानी फेर सकती थी।

सबसे ज्यादा चैलेंजिंग टास्क घंटी की ढलाई का था। 79 हजार किलो वजन की इस घंटी को सांचे में ढालने की वर्किंग में चूक की कोई गुंजाइश ही नहीं थी। यदि क्रेन में कोई खराबी आ जाती या कोई मानवीय चूक हो जाती तो कर्मचारियों की जान भी जा सकती थी।

आर्य ने बताया कि पिघली धातु को सांचे में ढालने का काम 60 मिनट में होना था। इस काम का एक-एक मिनट हमारे लिए बहुत भारी था। ये 60 मिनट साल का सबसे ज्यादा मुश्किल समय था। हम हर सेकेंड यह प्रार्थना करते रहे कि कोई भी बुरी खबर न आए।

उन्होंने बताया कि ये सारा काम करते हुए हमारे मन में एक और वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने की योजना चल रही थी। हमारी कोशिश थी कि 15 मिनट में ही इसे ढाल लिया जाए ताकि यह भी वर्ल्ड रिकॉर्ड बन सके, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। इसे ढालने में 60 मिनट का समय लगा।

200 एक्सपर्ट और 1000 कर्मचारी लगे
इंजीनियर देवेंद्र आर्य ने बताया कि घंटी बनाने के लिए 200 से ज्यादा एक्सपर्ट की टीम करीब पांच से छह दिन जुटी रही। वहीं साल भर में 1000 कर्मचारियों ने 10 अलग-अलग प्रोजेक्ट पर काम किया। घंटी को ढालने के लिए 200 कर्मचारी 40 घंटे तक नॉन स्टॉप काम करते रहे।

इसके साथ ही कास्टिंग का लाइव टेलीकास्ट अमेरिका के इंजीनियरिंग कॉलेजों में किया गया था। कास्टिंग में अब तक 65 हजार लीटर डीजल का उपयोग किया जा चुका है। वहीं, 600 एलपीजी सिलेंडर का भी उपयोग किया गया। उन्होंने बताया कि कास्टिंग के दिन यहां काम कर रहे कर्मचारियों को 10 किलो ग्लूकोज और गुड़ का पानी दिया गया ताकि हीट का असर उन पर कम से कम हो सके।

19 करोड़ खर्च
देवेंद्र ने बताया कि इस प्रोजेक्ट पर अब तक 19 करोड़ रुपए से ज्यादा का खर्च आ चुका है। कास्टिंग के बाद अब इसे प्राकृतिक तरीके से ठंडा किया जा रहा है, जिसमें कुछ दिन का समय लगेगा। इसके बाद घंटी को लटकाया जाएगा। यह घंटी सुनहरी नजर आएगी और यह समय के साथ चमकीली होती जाएगी।

आर्य ने दावा किया है कि यह इतनी मजबूत होगी कि 5000 साल तक सुरक्षित रहेगी। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि इसे टुकड़ों में नहीं बनाया गया है। यह सिंगल पीस है। यह भी अपने आप में रिकॉर्ड है।