पार्श्वनाथ का 108 कलश से हुआ महा मस्तकाभिषेक, चढाया निर्वाण लाडू

0
1963

कोटा। महावीर नगर विस्तार स्थित आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर परिसर में बुधवार को मुकुट सप्तमी के तहत भगवान पार्श्वनाथ के निर्वाण दिवस और धार्मिक आयोजन हुए। इस अवसर पर भगवान पार्श्वनाथ के निर्वाण दिवस के तहत 23 किलो का लाडू जयकारों के बीच चढ़ाया गया। इससे पूर्व मंदिर परिसर में भगवान का अभिषेक सहित विभिन्न धार्मिक क्रियाएं आर्यिका संघ के सानिध्य में हुई।

शांतिधारा, महामस्तकाभिषेक और नित्यपूजा की गई तथा ऋद्धिमंत्रों के द्वारा 108 कलशों से पाश्र्वनाथ भगवानका अभिषेक किया गया। सौम्यनन्दिनी माताजी का अवतरण दिवस भी मनाया गया। समाजबंधुओं की ओर से घर से सजाकर लाए गए निर्वाण लाडू अर्पित किए गए। निर्वाण लाडू सजाओ प्रतियोगिता में हेमंत डूंगरवाल को प्रथम, रमेश दौराया को द्वितीय तथा पवन ठोला को तृतीय स्थान प्राप्त हुआ। जिन्हें अनिल चेलावत के द्वारा पुररूकत किया गया।

बिना त्याग, तप, साधना के मोक्ष का मार्ग नही मिलता
इससे पहले प्रवचन करते हुए आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी ने कहा कि तीर्थंकरों के अवतरण निर्वाण से सृष्टि में मानव जाति के लिए एक नए संदेश के साथ धर्म उदय के भाव जागृत होते है।

उन्होंनें कहा कि 54 लाख योनियों में मानव योनि के बाद जब धर्म का उदय होता है तो राग द्वेष से परे होकर धर्म आराधना में संलग्न हो मोक्ष प्राप्ति करते है और तीर्थंकरों के रूप में अवतरित होते है। जिनके मार्ग पर चलकर आज मनुष्य अपने कर्मों का उदय करता है। ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि हम हर कदम पर सहन करने की शक्ति को बढ़ाकर धर्म मार्ग पर चलने का संकल्प ले ताकि मनुष्य भव का कल्याण हो सके।

उन्होंने कहा कि बिना त्याग, तप साधना के मोक्ष का मार्ग नही मिलता, केवल भावना बनाने मात्र से बंद दरवाजे स्वयं खुल जाते हैं। भगवान पाश्र्वनाथ स्वामी ने जीवन के महत्व को जाना और आत्मकल्याण के मार्ग को चुना, उनका लक्ष्य केवल त्याग, तप और साधना थी, जिसके माध्यम से उन्होंने अपने जन्म को सार्थक किया और मोक्ष को प्राप्त किया। हमें भी त्याग, तप की भावना से दूसरों की सेवा और अपने कल्याण का मार्ग को अपनाना चाहिए।