दुनिया के विभिन्न देश यह नहीं चाहते थे कि प्रधानमंत्री मोदी भारत में ताकतवर बनकर उभरें। उनकी सरकार फिर से आए, क्योंकि ऐसा हुआ तो भारत दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था बनेगी। जो विश्व शक्ति का दंभ भरने वाले देशों के लिए खतरा है। भारत का महाशक्ति बनना उनको रास नहीं आया।
-आशीष मेहता-
Lok Sabha Election 2024 Results: इस बार के भारतीय जनता पार्टी के चुनावी नारों में अपन जैसे कयासबाज को सबसे बड़ी गलती नजर आती है। “मोदी की गारंटी.. अबकी बार 400 पार ..” के नारों में कहीं न कहीं गलती रही। भाजपा का कैडर व्यक्तिवाद में विश्वास नहीं करता तो “गारंटी” मोदी की नहीं बीजेपी की होनी चाहिए थी। अबकी बार 400 पार के नारे से कांग्रेस ने यह फर्जी नेरेटिव बनाने में सफलता हासिल कर ली, कि भाजपा संविधान बदलेगी और आरक्षण को हटा देगी।
इस कारण से एससी, एसटी का वोट छिटक गया और उन्होंने मुस्लिम अल्पसंख्यक के साथ मिलकर मजबूत कॉम्बो बना लिया। जिसके कारण से चुनाव से पहले प्रचंड जीत की ओर बढ रही भारतीय जनता पार्टी चुनाव के दौरान आधी रह गई। चार सौ पार के नारे से बेड परफार्मेंस वाले कैंडिडेट को जनता ने हरा दिया। सोच लिया 400 नहीं 399 ही सही। इसके अलावा 400 पार के नारे से कार्यकर्त्ता शिथिल हो गया।
कयासबाजी तो यह है, मोदी को पता चल गया था, कुछ गड़बड़ हो रही है। आरक्षण और संविधान बदलने पर दूसरे चरण में ही स्पष्टीकरण देना शुरु कर दिया। यहीं से चुनाव को हिंदू मुस्लिम पर मोड़ दिया और ऐन चुनाव के मौके पर जनसांख्यिकी रिपोर्ट भी जारी हुई, लेकिन जिस सोशल मिडिया ने 2014 में मोदी को लाभ दिया, वही सोशल मीडिया भस्मासुर बन गया।
इस बार का चुनाव पूरी तरह जातिवाद पर शिफ्ट हो चुका था। राममंदिर का असर कम हुआ तो राम नवमी पर सूर्य तिलक भी हुआ। लेकिन हिंदू तो आखिर हिंदू ही है न.. मुख्तार अंसारी खत्म तो बीजेपी की जरुरत भी खत्म। कयासबाजों को लगता है, सबसे ज्यादा नुकसान जाटों ने किया। जिन्होंने राजस्थान, यूपी, पंजाब, हरियाणा में लंका लगाई।
राजस्थान में राजपूतों में स्वयंभू नाराजगी थी और यूपी में टिकट कम देने को लेकर ही नाराज हो गए “बना”। राजस्थान के पूर्वी जिलों में सचिन पायलट और किरोड़ी बाबा की कथित उपेक्षा ने असर दिखाया। जो अपन को संभव नहीं लग रहा था। एससी एसटी को राष्ट्रपति बनाया, जाट को उपराष्ट्रपति बनाया लेकिन कोई भी जाति बेड ब्यॉय में नेता खोजती है सकारात्मक व्यक्ति को नेता नहीं मानती। “सबका विकास” तो खूब हुआ फ्री राशन से लेकर पीएम आवास भी खूब बने लेकिन “सबका साथ” नहीं मिल पाया।
कयासबाज कहते हैं, सरकार ने 10 साल अपने संगठनों की उपेक्षा की। भारतीय सांस्कृतिक प्रतीकों के बजाय नेहरू कालीन प्रतीकों का ही महिमा मंडन करते रहे। पाठ्यक्रम में, इतिहास में.. हिंदू राष्ट्रवाद के प्रतीक नायकों की उपेक्षा हुई, मुलायम सिंह यादव को पद्म भूषण मिल गया। चाणक्य और चंद्रगुप्त सरीखे नायक कभी कभार ही याद आए लेकिन महात्मा गांधी हर भाषण में होते थे।
गौ सेवको को गुंडा कहते रहे, गोडसे का नाम लेने वालों को वे माफ नहीं करते.. बाबा रामदेव को मिट्टी में मिलाने की बात होती रही और ज्यूडीशरी को आंख दिखाने वाले कानून मंत्री को बदल दिया जाता है। इन सबके बावजूद सरकार को कोई नहीं हराना चाहता था, लेकिन 400 न सही 399 सही.. ने यहां भी काम किया।
पीएम मोदी ने विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नेताओं को घर बैठने पर मजबूर किया। बड़ी संख्या में बाहरी नेता पार्टी में शामिल हुए। इस कारण से धीरे-धीरे पूरी एक लॉबी बनती चली गई। पुराने नेता उपेक्षा से नाराज होते गए। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव में भाजपा को वोट देने के परिणाम स्वरुप उनके घर जलाए गए। उनकी लाशें पेड़ों पर टंगी मिली। भाजपा चुपचाप सब कुछ देखती रही तो इस बार वोटर हिम्मत नहीं दिखा सका।
सबसे बड़ी बात
इस चुनाव में यह रही की दुनिया के विभिन्न देश यह नहीं चाहते थे कि प्रधानमंत्री मोदी भारत में ताकतवर बनकर उभरें। उनकी सरकार फिर से आए, क्योंकि ऐसा हुआ तो भारत दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था बनेगी। जो विश्व शक्ति का दंभ भरने वाले देशों के लिए खतरा है। भारत का महाशक्ति बनना उनको रास नहीं आया। खजाना लगभग खाली होने के बावजूद कांग्रेस ने खूब पैसा खर्च किया। यह कहां से आया? यह आम आदमी पार्टी को मिलने वाले विदेशी फंड के खुलासे ने साबित कर दिया। विदेश से चलने वाले सोशल मीडिया अकाउंट भी चुनाव में बंद किए गए।
उनसे भी यह खुलासा हो गया कि दुनिया के कई देशों से मोदी को हराने के लिए साजिश रची जारी थी। जॉर्ज सोरोस जैसे लोग मोदी को हराने के लिए काम कर रहे थे। इन सबके बावजूद मोदी फिर से तीसरी बार प्रधानमंत्री बन रहे हैं। यह मोदी की और भारतीय जनता पार्टी की और उसके मतदाताओं, उसके मजबूत कैडर की बड़ी ताकत है।
लेकिन सत्य यह भी है.. पीएम मोदी केवल डेढ़ लाख से जीते और राहुल साढ़े तीन प्लस से.. 23 मुस्लिम संसद पहुंचे। जिनमें मोदी की बोटी करने वाला इमरान मसूद, 20 मिनट वाला ओवैसी और मुख्तार का भाई अफजाल अंसारी भी है। खडूर साहिब से निर्दलीय अमृतपाल भी बंपर वोट से जीता लेकिन फैजाबाद (ऐसे माहौल में अयोध्या नहीं) से भी बीजेपी हार गईं।
अब क्या होगा…?
गठबंधन सरकार के कारण ऐसा लगता है कि मोदी बहुत कमजोर हो जाएंगे। एनआरसी, जनसंख्या नियंत्रण, यूसीसी जैसे मुद्दे ठंडे बस्ते में चले जाएंगे। लेकिन अपनी कयासबाजी कहती है, मोदी दबाव में आने वाले नहीं हैं । वह उसी तरह से काम करेंगे जैसे करते आए हैं। अटल जी की 140 सांसदों वाली सरकार और मोदी की 240 सांसदों वाली सरकार में अंतर है। अभी उद्धव, निर्दलीय, राजस्थान की बीएपी, हनुमान बेनीवाल समेत अन्य विकल्प हैं। नीतीश कुमार ज्यादा आंखें दिखाएंगे तो 12 में से 8 सांसद पार्टी का विलय कभी भी भाजपा में कर देंगे। ऐसा अपना मानना है। वही मोदी के पास एक और विकल्प होगा, कोई बहुत बड़ा कानून संसद में रखने के बाद यदि वह पास नहीं होगा तो इस्तीफा देकर चुनाव में चले जाएंगे। उसी मुद्दे के आधार पर एक बार फिर जनता से मैंडेट मांगेंगे। ये बातें अभी भविष्य के गर्भ में है।
क्या करना चाहिए..!
अपन को लगता है कि सरकार 5 साल पहले ही “एक देश एक चुनाव” लाकर, देशभर में परिसीमन कर, लोकसभा सीटें बढ़ाकर और महिला आरक्षण लागू कर सही मौसम देखकर चुनाव में चली जाएगी। लेकिन उससे पहले सरकार को मतदान अनिवार्य करने वाला कानून जरूर लाना चाहिए। इसके साथ ही वोटर आईडी कार्ड को आधार कार्ड से लिंक करना भी जरूरी कर देना चाहिए। जिससे फर्जी वोटिंग में कमी आए और जायज वोटर अनिवार्य रूप से वोट डाले। ऑनलाइन वोटिंग की सुविधा देने पर भी तेजी से काम होना चाहिए। वहीं उत्तरप्रदेश के लोगों के द्वारा जिस प्रकार से जातिवाद पर काम किया जा रहा है। ऐसा लगता है .. इतने बड़े राज्य को अब विभाजित कर तीन राज्य बनाने का समय आ गया है।