पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव
कोटा। Panchkalyanak Pratishtha Mahotsav: सिलिकॉन सिटी बूंदी रोड स्थित कुंडलपुर नगरी पांडाल में आयोजित श्री 1008 महावीर दिगंबर जिनबिम्ब लघु पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के तीसरे दिन गुरुवार को तप एवं ज्ञान कल्याणक महोत्सव विधि- विधान से किया गया।
इस दौरान भगवान के नामकरण संस्कार से लेकर विवाह तदुपरांत वैराग्य, दीक्षावन प्रस्थान और केवल्य ज्ञान आदि का कार्यक्रम संपन्न कराया गया। इस अवसर पर उपस्थित हजारों की संख्या में श्रद्धालु मंत्रमुग्ध पूरे कार्यक्रम को निहारते रहे।
महोत्सव का शुभारंभ शान्ति जाप से हुआ। उसके बाद नित्य प्रक्षाल पूजा, इंद्रसभा, पूर्व भव प्रदर्शन, लोकांतिक देव आगमन, पालकी द्वारा वन प्रस्थान, वैराग्य प्रवचन, दीक्षा विधि, केवल ज्ञान पूजन, जिनेंद्र भक्ति के कार्यक्रम संपन्न हुए।
इस दौरान महाराजा नाभि राय के सजे भव्य दरबार में आदि कुमार का बाल रूप दिखाया गया। जब माता त्रिशला गोद में महावीर को लेकर उपस्थित हुई। मंगल गीत गाती महिलाओं ने उनका स्वागत किया। पंडाल में उपस्थित हजारों की संख्या में नर-नारियों ने खड़े होकर भगवान महावीर का जयगान किया। इसके बाद भगवान के बाल रूप को दिखाया गया। इस दौरान भगवान भगवान का पांच नामाकरण बर्द्धमान, जितेन्द्र, वीर, अति वीर एवं महावीर की व्याख्या कर लोगों को बताया गया।
भगवान के युवावस्था में प्रवेश के बाद माता उन्हें विवाह के लिए राजी करने का प्रयास करती है। इसे बड़ा ही मोहक अंदाज में पेश किया गया। इसके बाद भगवान का राज्याभिषेक हुआ। वैशाली के मंगल अभिषेक पुष्करणी के जल से जलाभिषेक के बाद उनका राज्याभिषेक किया गया।
बाद में भगवान का राज्य संचालन, असि-मसि, कृषि का प्रदर्शन, भगवान के दरबार में निलांजना नृत्य प्रस्तुत किया गया। देवलोक की परी समान सुंदरी का नृत्य भी भगवान के मन में उपज रहे वैराग्य भाव को कुंठित न कर सका। वे राज्य छोड़ने का निर्णय लेते हैं। वैराग्य स्तुति के बाद वे राज छोड़ भरत व बाहुबली को अपना राज्य सौंप देते हैं। तब बारी आती है दीक्षावन प्रस्थान की। इस दौरान दीक्षा विधि, अंक न्यास और संस्कार पूजन संपन्न कराए गए।
घोर तपस्या कर प्राप्त किया केवल ज्ञान
तीर्थंकर भगवान मुनि दीक्षा के बाद घोर तपस्या से केवल ज्ञान प्राप्त करते हैं। वे मोहनिया कर्म को पूर्ण क्षय कर बारहवें गुण स्थान ज्ञानआवरण दर्शनआवरण अंतराय कार्य का पूर्ण क्षय कर देते हैं। चार कर्मों का नाश करके अनंत सिद्धि प्राप्त करते हैं। इस अवसर पर सौधर्म इंद्र की आज्ञा से कुबेर विशेष रत्न एवं मणियों से समवशरण की रचना करते हैं।
मंदिर का उद्घाटन आज
संयोजक महावीर पटवारी ने बताया कि महोत्सव के अंतिम दिन शुक्रवार को निर्वाण कल्याणक पूजन, शांति यज्ञ और शोभायात्रा के बाद मंदिर का उद्घाटन, श्रीजी एवं जिनवाणी विराजमान, सिंहासन, छत्र, चंवर, महामंडल, कलश, ध्वजा, घंटा विराजमान आदि के कार्यक्रम संपन्न होंगे।