RT-PCR और Antibody Test क्या है और क्यों जरुरी है यह, जानिए

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कोटा। विश्वभर में कोरोना का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। कोरोना को लेकर लोगों में एक डर का माहौल भी देखा जा रहा है और कई लोग सामान्य सर्दी-खांसी को भी कोरोना से जोड़ रहे हैं, वहीं कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच बहुत से लोगों के मन में यह सवाल जरूर आ रहा है कि अपने परिवार के लोगों में कोरोना संक्रमण की पहचान किस तरह हो सकती है? कोरोना वायरस के लिए कौन-कौन से टेस्ट किए जाते हैं ताकि इस वायरस की पहचान हो सके। आइये जानते हैं RT-PCR और Antibody test आखिर क्या है यह टेस्ट? किस तरह से काम करते हैं।

नोवेल कोरोना वायरस या कोविड-19 : इस रोग से संक्रमित व्यक्ति की बीमारी का पता लगाने के लिए 2 तरह के टेस्ट सामान्य तौर पर अभी उपयोग किए जा रहे हैं। उनमें से एक है RT-PCR यानी कि रियलटाइम polymerase chain reaction। इस टेस्ट का प्रयोग किसी भी व्यक्ति के शरीर के अंदर वायरस का पता लगाने के लिए किया जाता है। इसके लिए शरीर के विभिन्न हिस्सों से सैंपल लिए जाते हैं। सामान्य तौर पर नैजल स्वैब, थ्रोट स्वैब सैंपल लिए जाते हैं यानी नाक की म्यूकोजा और गले की म्यूकोजा की अंदर वाली परत से स्वैब लिए जाते हैं।

नैजल स्वैब का सामान्य तौर पर प्रयोग किया जाता है और इसकी संवेदनशीलता भी बाकी स्वैब की तुलना में ज्यादा है। RT-PCR की रिपोर्ट आने में कुछ समय लगता है। इसकी रिपोर्ट 6 से 8 घंटे में आती है और 32 प्रतिशत व्यक्तियों को इंफेक्शन होते हुए भी रिपोर्ट निगेटिव हो सकती है। इस टेस्ट से केवल यह पता चलता है कि कोरोना वायरस आपके शरीर के अंदर मौजूद है।

आगे चलकर आपको कितना गंभीर संक्रमण करेगा या आगे चलकर भी इसके कोई लक्षण आएंगे या नहीं? आगे कुछ परेशानी हो सकती हैं या नहीं? यह नहीं बताता। इसलिए जिनमें कोई लक्षण नहीं होते, उनमें भी ये टेस्ट पॉजिटिव आता है। ये बहुत ही specific टेस्ट होते हैं। रियल टाइम पीसीआर टेस्ट में पॉजिटिव आने पर अस्पताल या घर में आइसोलेशन में रखा जाता है, वहीं रियल टाइम पीसीआर टेस्ट निगेटिव आने पर माना जाता है कि उसमें कोरोना वायरस का संक्रमण नहीं है।

वहीं कोरोना वायरस मरीजों की जांच के लिए दूसरा टेस्ट जो किया जाता है, वह है रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट, जैसे कि नाम से ही समझ में आता है कि यह टेस्ट रैपिड है और शरीर के अंदर एंटीबॉडी का पता करता है। जिन व्यक्तियों को कोरोना वायरस का संक्रमण है, उस वायरस से लड़ने के लिए हमारा इम्यून सिस्टम काम करता है। उस वायरस से लड़ने के लिए शरीर में एंटीबॉडी बनने लगते हैं।

सामान्यत: ये एंटीबॉडी 5 से 6 दिन के बाद बनने लगते हैं और 6 से 8 सप्ताह तक बनते हैं। कभी-कभी इससे ज्यादा समय भी लग सकता है। सामान्यतः दूसरे सप्ताह में एंटीबॉडी बनना शुरू होते हैं और कई दिनों तक बनते रहते हैं। इसी वजह से इस टेस्ट की उपयोगिता संक्रमण के दूसरे सप्ताह में होती है।

इस टेस्ट का परिणाम लगभग 30 मिनट के अंदर आ जाता है, यही इसकी खासियत है। लेकिन इस टेस्ट के कुछ-कुछ नुकसान भी हैं। यदि कोई व्यक्ति कोरोना से संक्रमित है और पहले सप्ताह में उसका टेस्ट होता है तो उसकी रिपोर्ट निगेटिव होगी। यद्यपि व्यक्ति कोरोना से संक्रमित है या व्यक्ति जिसका इम्यून सिस्टम कमजोर है, रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है, उसमें हो सकता है कि कोरोना से संक्रमण होने के 4 से 6 सप्ताह के बाद भी मरीज का यह टेस्ट निगेटिव हो।

इसी तरह यह टेस्ट फॉल्स पॉजिटिव भी हो सकता है यानी कि हमारे शरीर के जो एंटीबॉडी हैं, वे कई बार क्रॉस रिएक्ट करते हैं यानी कि जो केमिकल एजेंट हैं, जो इस टेस्ट के लिए उपयोग करते हैं, वो दूसरी एंटीबॉडी के साथ रिएक्ट करके पॉजिटिव रिजल्ट्स भी देते हैं। मरीज को कोरोना का संक्रमण नहीं है फिर भी यह टेस्ट पॉजिटिव हो सकता है। इसी वजह से इस टेस्ट का उपयोग सामान्य तौर पर नहीं किया गया है।

कम्युनिटी लेवल पर इस टेस्ट की उपयोगिता यह है कि कम्युनिटी में कितने लोग इस संक्रमण से ग्रसित हैं। उनका इम्यून सिस्टम कैसा है? और वे इस वायरस से कैसे लड़ रहे हैं? लेकिन कोई व्यक्ति कोरोना से संक्रमित है या नहीं, इसकी पहचान के लिए यह टेस्ट बहुत ही Specific नहीं है।