अड़तालीस गुणों से युक्त सिद्धपरमेष्ठी भगवान की आराधना सम्पन्न

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कोटा। संगीतमय सिद्ध महामण्डल विधान रविवार को आरकेपुरम स्थित दिगंबर जैन मंदिर त्रिकाल चौबीसी आयोजित किया गया। श्रतुसंवेगी आदित्य सागर मुनिराज संघ, अप्रमित सागर और मुनि सहज सागर महाराज संघ के सानिध्य में भक्ताम्बर विधान प्रारंभ हुआ।

अध्यक्ष अंकित जैन व मंत्री अनुज जैन ने बताया कि सिद्धशिला पर विराजमान सिद्ध परमेष्ठी के अड़तालीस गुणों की पूजा अर्घ देकर सम्पन्न की गई। जिसमें उनके अनन्त दर्शन, ज्ञान अवगाहनत्व, अनंत वीर्यत्व, अव्याधत्व आदि अनंत गुणों से युक्त सिद्धस्वरूप को नमस्कार किया गया।

प्रतिष्ठाचार्य ने सम्पूर्ण अनुष्ठान संगीतमय कराकर भक्तिभाव से नाचकर विधान से इंद्र-इंद्राणियों को जोडा। उन्होंने सिद्ध परमेष्ठी के गुण धर्म की आध्यात्मिक शास्त्रीय विवेचना की।
रविवार को कमलासन बेदी प्रतिष्ठा के तहत प्रातः 06:30 बजे मंगलाष्टक, अभिषेक एव शान्तिधारा, नित्य नियम पूजन हुआ। 07:30 बजे जिन बिम्ब स्थापना एवं श्री जी कमलासन पर विराजमान, छत्र चढ़ाने, चवर लगाने, भामंडल स्थापित किए गए।

मुनि श्री अप्रमित सागर के मुखारविंद से दोपहर एक बजे कर्मदहन सर्वविघ्न हरण भक्तामर एवम पार्श्वनाथ मंडल विधान मंदिर परिसर में आयोजित किए गए। सिद्ध परमेष्ठी की 48 गुणों युक्त आराधना, पूजन सम्पन्न हुआ। भक्तामर पाठ व भक्तामर आरती में सभी साधर्मी बंधुजन ने बढचढ कर हिस्सा लिया।

यह रहे पुण्याजर्क
पारसनाथ भगवान (श्यामवर्ण) के पुण्याजर्क मनोज जैन, आशिष जैन,पदम जैसवाल परिवार,चन्द्रप्रभु भगवान (1) के विनोद— समित, अनिल सिंघवी, टोरडी परिवार,पारसनाथ भगवान (श्वेत वर्ण) के ज्ञानचंद,संजय—तृप्ति,चन्द्रप्रभु भगवान (2) राजमल,मुकेश कनक,पापडीवाल परिवार तथा पारस—शकुतला,अ​रविंद बरमूडा,मुकेश कनक भक्तरत्न बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

पुण्य उदय होते हैं, तब विधान से जुड पाते हैं
आदित्य सागर महाराज ससंघ ने अपने प्रवचन में कहा कि संचित पुण्य के फल से ही आप भक्ताम्बर विधान का हिस्सा बन पाते हैं। जिसका पुण्य जितना अधिक होगा वह उतना ही हिस्सा बन पायेंगे। जिसके पास पुण्य है उसके पास सबकुछ है। पुण्य नहीं हो तो आपके पास कुछ नहीं बचता। उन्होंने उदाहरण स्वरूप कहा कि पूर्णिमा पर चांद पूजा जाता है, उसके पुण्य सर्वोत्तम होते हैं। अगले दिन जब पुण्य घटते हैं तो कोई उसकी पूजा नहीं करता है। मुनि आदित्य सागर ने जीवन में धैर्य रखने की सलाह भी दी। उन्होने जीवन में बैर, घृणा, ईर्ष्या नहीं पालने की सलाह देते हुए कहा कि इससे कृष्ण लेश्या बनती है, जिससे हमें बचना है। दूसरों के अपराध व गलती के लिए हमें अपनी लेक्ष्या नहीं बिगाड़ना चाहिए।