पंचकल्याणक महोत्सव: तप कल्याणक में दिखा धर्म, संस्कार और भक्ति का संगम

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कोटा। Panch Kalyanak Mahotsav: पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के अंतर्गत बुधवार का दिन भक्ति, ज्ञान और संस्कारों से परिपूर्ण रहा। प्रातःकाल से लेकर रात्रि तक विविध धार्मिक विधियों एवं पूजन के साथ श्रद्धालुओं ने पूरे उत्साह के साथ महोत्सव में भाग लिया।

चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम पाटनी एवं मंत्री पारस बज आदित्य ने बताया कि मज्जिनेन्द्र नेमीनाथ जिनबिम्ब पंचकल्याणक में तप कल्याणक का आयोजन किया गया। सुबह से शाम तक ही भक्तिमय वातावरण में श्रद्धालुओं ने भगवान की आराधना में भाग लिया और गुरुजनों के मंगल प्रवचनों का लाभ लिया। श्रुत संवेगी मुनि श्री आदित्य सागर ससंघ के सानिध्य में 350 जिनबिंब का प्राण प्रतिष्ठा पूर्ण की गई। श्री जी को समवशरण पर बैठाया गया।

प्रातःकालीन पूजन और जाप्य से दिन की शुरुआत
चंद्रप्रभु दि.जैन मंदिर के अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा एवं सचिव पंकज खटोड़ ने बताया कि प्रातः 6 बजे से प्रतिष्ठाचार्य बा.ब्र.पीयूष सतना व सहयोगियों के जाप्य, अभिषेक, नित्य नियम एवं तप कल्याणक पूजन के साथ दिन की शुरुआत हुई। श्रद्धालुओं ने भगवान की प्रतिमा का अभिषेक कर अपने मन को शुद्ध किया और जाप्य मंत्रों का उच्चारण कर अध्यात्म की गहराई में डूबे।

मुनि श्री के मंगल प्रवचन और आहारचर्या
सकल दि. जैन समाज के अध्यक्ष विमल जैन नांता ने बताया कि प्रातः 9 बजे मुनि श्री के मंगल प्रवचन आयोजित हुए, जिसमें उन्होंने आत्मा की शुद्धि और मोक्ष मार्ग पर चलने के लिए प्रेरणा दी। इसके पश्चात 10 बजे महामुनिराज की आहारचर्या संपन्न हुई, जिसमें श्रद्धालुओं ने उनकी आहारचर्या के दर्शन कर पुण्य अर्जित किया।

दोपहर में संस्कार विधि और मंत्रों का प्रभावशाली आयोजन
कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा व ताराचंद बडला ने बताया कि दोपहर 1 बजे 48 मंत्र संस्कार की विधि शुरू हुई, जिसमें मालारोपण, अंकन्यास, मंत्र न्यास, नयनोन्मीलन, तिलक दान, गंध आराधना, गुणानुरोपण संस्कार और सूरि मंत्र के साथ प्राण प्रतिष्ठा संपन्न हुई। इस अवसर पर केवल ज्ञानोत्पत्ति, समवशरण रचना, दिव्य ध्वनि एवं शंका समाधान का भी आयोजन किया गया। समवशरण रचना की दिव्यता ने सभी श्रद्धालुओं को अभिभूत कर दिया। विधियों के अंत में 46 दीपकों से भगवान की आरती की गई, जिससे पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठा।

सायंकालीन गुरुभक्ति और सांस्कृतिक संध्या
कार्याध्यक्ष जे के जैन व प्रकाशबज ने बताया कि सायं 6 बजे गुरुभक्ति एवं आरती का आयोजन हुआ, जिसमें भक्तों ने गुरु के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट की। रात्रि 7 बजे श्रीजी की आरती के बाद शास्त्र सभा का आयोजन हुआ, जिसमें समाज के गणमान्य व्यक्तियों का सम्मान किया गया। सांस्कृतिक संध्या के कार्यक्रम ने समापन को और भी आनंदमय बना दिया। इस पावन अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। ।अंत में 46 दीपकों से समवशरण की आरती की गई, जिसमें प्रमुख भक्तों ने दीप प्रज्वलित कर प्रभु के चरणों में अपनी श्रद्धा अर्पित की।

ज्ञान व दर्शन सबसे बड़े गुण
गुरू देव आदित्य सागर ने समवशरण पर विराजित होने के बाद भगवान नेमिनाथ का संदेश सुनाते हुए कहा कि मनुष्य सम्पति व एश्वर्य के पीछे भागता है। उसे एकत्रित करने के लिए व्याकुल रहता है जो नश्वर है आप अपने पास कुछ नहीं रख सकते है। मनुष्य के पास ज्ञान व दर्शन का गुण सबसे बडा है। उन्होंने ज्ञान व वैराग्य की शाक्ति को जागृ​त करने के लिए कहा। मन पाप छोडता नहीं और पुण्य वह करता नहीं। इसलिए जन्म व मृत्यु के घेरे से आजाद नहीं होता है। उन्होंने लोगो से कहा कि व्यक्तियों को इस पंचकल्याणक से क्या मिल रहा है यह बात विचारने की है। अंदर तो अचेतन का प्रतिष्ठा हो रही है और बाहर चेतन की प्रतिष्ठा हो यह महत्वपूर्ण है। उन्होंने परिश्रम से सफलता की राह चलने की बात कही।

इस अवसर पर भाजपा जिलाअध्यक्ष राकेश जैन, सकल समाज के सरंक्षक राजमल पाटोदी, अध्यक्ष विमल जैन नांता, कार्याध्यक्ष जे के जैन, प्रकाश बज, मंत्री विनोद टोरडी, मनोज जैसवाल, चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज आदित्य, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा, ऋद्धि-सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़, कोषाध्यक्ष ताराचंद बडला, संजय सांवला, जिनेन्द्र जज साहब, पारस कासलीवाल, अंकित जैन आर केपुरम, पारस लुहाडिया, महेंद्र बगड़ा, पारस जैन एवं श्री चन्द्र प्रभ दिगंबर जैन मंदिर समिति के लोग उपस्थित रहे।