GERI Report: कोटा रिवर फ्रंट के एनीकट से चम्बल के तीनों पुलों के बहने का खतरा

0
46

कोटा नगर विकास न्यास ने करोड़ों रुपए की लागत से चम्बल रिवर फ्रंट बनाते समय चम्बल नदी के पुलों की सुरक्षा के बारे में सार्वजनिक निर्माण विभाग से सलाह और सहमति लेने की कोशिश तक नहीं की। मौजूदा स्थिति में अब सबसे अधिक ज्यादा जरूरी यह है कि राज्य सरकार को सबसे पहला काम तो इन पुलों की सुरक्षा ऑडिट करवानी चाहिए। साथ ही यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि साल में दो बार पुलों के बियरिंग की ग्रीसिंग कैसे की जा रही है?

-धीरेन्द्र ‘राहुल-
राजस्थान के कोटा में चम्बल नदी पर पन्द्रह सौ करोड़ की लागत से बनाए गए चम्बल रिवर फ्रंट (Chambal River Front) की वजह से चम्बल नदी के डाऊन स्ट्रीम में बने तीनों सड़क पुल बाढ़ आने की स्थिति में बह सकते हैं।

यह चेतावनी रविवार को पीपुल्स रिसोर्स सेंटर (Peoples Resource Centre) की ओर से आयोजित दो दिवसीय सेमिनार में संयोजक और सार्वजनिक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के सेवानिवृत्त अधीक्षण अभियन्ता एके जैन ने दी। उन्होंने कहा कि नगर विकास न्यास ने रिवर फ्रंट बनाते समय पुलों की सुरक्षा के बारे में पीडब्ल्यूडी से विचार विमर्श और सहमति लेने की कोशिश तक नहीं की।

श्री जैन का कहना था कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (National Green Tribunal) ने गत वर्ष 10 अक्टूबर को एक संयुक्त कमेटी गठित की थी। इसमें गुजरात इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (Gujarat Engineering Research Institute) की 3 डी कम्पोजिट मोडल स्टडी रिपोर्ट (3D Composite Model Study Report) के अनुसार कोटा बैराज 551.68 मीटर लंबा है। इसमें 246.88 मीटर मिट्टी का बांध है जबकि 304.88 कंक्रीट से बना पक्का डैम है। इसमें 19 गेट हैं। बाढ़ आने पर जब इन्हें खोला जाता है तो 8.81 लाख क्यूसैक्स पानी का निकास बैराज से होता है।

श्री जैन का कहना था कि सबसे बड़ी समस्या उस एनीकट ने पैदा की है, जो रिवर फ्रंट में हमेशा पानी भरने के लिए बनाया गया है। यह तीन मीटर ऊंचा है और इसकी लंबाई 245 मीटर ही है। इसका अभिप्राय यह है कि इस स्थान पर चम्बल नदी को 59 मीटर सिकोड़ दिया गया है।

जाहिर है कि 19 गेट खुलने पर छोड़ा गया पानी 304 मीटर से निकलकर एकदम एनीकट में फसेगा तो ‘हाइड्रोलिक जंप’ की स्थिति बनेगी यानी बाढ़ ऊपर की ओर उछाल मारेगी और अगर वह पुलों की स्लैब से टकराई तो उसे बहा ले जाएगी।

उनका कहना था कि पुलों के ऊपर की स्लैब गर्मी से फैलती और ठंड से सिकुड़ती है, इसलिए उसे बियरिंग पर ही रखना पड़ता है। ये बियरिंग लोहे के बने होते हैं जो पानी के संपर्क में आने से जंग लगने से जाम हो सकते हैं और बाढ़ का पानी स्लैब से टकराए तो वह बह भी सकते हैं। क्योंकि वह नीचे वाले खंबों से बंधे नहीं होते, सिर्फ रखे होते हैं।

उनका कहना था कि राज्य सरकार को सबसे पहला काम तो इन पुलों की सुरक्षा ऑडिट करवानी चाहिए। साथ ही यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि साल में दो बार पुलों के बियरिंग की ग्रीसिंग कैसे की जा रही है?

सेमिनार के संयोजक श्री जैन का कहना था कि कोटा बैराज का अर्दन डैम वाला हिस्सा जो मिट्टी का है, उसमें सीपेज होना जरूरी है, इससे बांध का दबाव रिलीज होता रहता है लेकिन उसे नापने वाले पीजो मीटर और फिल्टर (गिट्टी से बनाई गई संरचना ) जिससे पानी का निकास आसानी से होता रहता है। ये दोनों बन्द पड़े हैं।

इसलिए पानी कहां से जमीन में प्रविष्टि हो रहा या निकल रहा है, यह पता नहीं चल पा रहा है। यह खतरनाक स्थिति है और कभी भी मिट्टी का बांध बह सकता है। इस पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। सेमिनार में देश के 32 से भी अधिक विशेषज्ञों ने भाग लिया।