मुम्बई। त्यौहारी सीजन की मजबूत मांग एवं आयात शुल्क में हुई 20 प्रतिशत की वृद्धि के प्रभाव से खाद्य तेलों का घरेलू बाजार भाव तेज होने लगा है जबकि आगे भी इसमें तेजी-मजबूती का सिलसिला बरकरार रहने की संभावना है।
केन्द्रीय उपभोक्ता मामले विभाग के मूल्य निगरानी प्रकोष्ठ द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक 13 सितम्बर को खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में बढ़ोत्तरी की घोषणा हुई थी और 24 सितम्बर तक खाद्य तेलों के बेंचमार्क खुदरा मूल्य में 5-10 प्रतिशत का इजाफा हो गया।
इस अवधि के दौरान सरसों तेल का भाव 140 रुपए से बढ़कर 148 रुपए प्रति लीटर, सूरजमुखी तेल का दाम 120 रुपए से बढ़कर 129 रुपए प्रति लीटर तथा पाम तेल का मूल्य 100 रुपए से बढ़कर 110 रुपए प्रति लीटर पर पहुंच गया।
व्यापार विश्लेषकों के मुताबिक सरकारी हिदायत के बावजूद खाद्य तेलों के दाम में तेजी थमने वाली नहीं है। देश में विशाल मात्रा में विदेशी खाद्य तेलों का आयात होता है और आयात खर्च में होने वाली वृद्धि का भार आम उपभोक्ताओं पर ही पड़ेगा।
बेशक सरकार ने तिलहनों का बाजार भाव ऊंचा उठाने तथा किसानों को लाभप्रद मूल्य दिलाने के उद्देश्य से सीमा शुल्क बढ़ाया है मगर इससे आम लोगों पर अतिरिक्त वित्तीय भार पड़ना निश्चित है जबकि वे पहले से ही महंगाई की मार से त्रस्त हैं।
दिलचस्प तथ्य यह है कि फरवरी 2023 से ही तेल एवं वसा संवर्ग में महंगाई की दर ऋणात्मक रही जिससे उपभोक्ताओं को राहत मिली थी मगर अब स्थिति विपरीत हो जाएगी।
खाद्य तेलों पर सीमा शुल्क में हुई वृद्धि के कारण सरसों एवं सोयाबीन का भाव तेज होने लगा है। सरसों का थोक मंडी भाव तो उछलकर सरकारी समर्थन मूल्य से ऊपर पहुंच गया है जबकि सोयाबीन का दाम इसके काफी निकट आ गया है।
सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) इस बार 4892 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है। उद्योग समीक्षकों के अनुसार आगामी समय में खाद्य तेलों के दाम में कुल मिलाकर 15-20 प्रतिशत तक का इजाफा हो सकता है क्योंकि तिलहनों का भाव और विदेशी खाद्य तेलों का आयात खर्च ऊंचा बैठेगा।