नई दिल्ली। बैंकों में ऋण और जमा वृद्धि के बीच अंतर भारतीय रिजर्व बैंक के लिए दो साल से चिंता का विषय बना हुआ था लेकिन अब यह अंतर घट रहा है। अर्थव्यवस्था की स्थिति पर केंद्रीय बैंक द्वारा आज जारी रिपोर्ट में यह कहा गया है। ताजा आंकड़ों के अनुसार 6 सितंबर को ऋण-जमा के बीच अंतर 2 फीसदी से थोड़ा अधिक रह गया है जो 2024 की शुरुआत में 7 फीसदी से अधिक था।
इस बीच बैंकों की ऋण वृद्धि थोड़ी नरम पड़कर 13.3 फीसदी रही जबकि जमा वृद्धि 11 फीसदी हो गई। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘ऋण बाजार में, जमा जुटाना एक चुनौती बन गया है, बैंक फंडिंग की जरूरतों को पूरा करने के लिए जमा प्रमाणपत्रों पर निर्भर हैं ताकि जमा की धीमी वृद्धि ऋण में बाधा न बने।’
रिपोर्ट के अनुसार बैंक जमा जुटाने के लिए उस पर ज्यादा ब्याज भी दे रहे हैं और दो-तिहाई से ज्यादा सावधि जमाओं पर 7 फीसदी और इससे अधिक ब्याज की पेशकश कर रहे हैं। कुल मिलाकर ऋण और जमा वृद्धि के बीच अंतर धीरे-धीरे कम हो रहा है।
अगस्त में मौद्रिक नीति की समीक्षा के दौरान आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने उन बैंकों को आगाह किया था जो ऋण की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अल्पकालिक गैर-खुदरा जमा और अन्य साधनों का ज्यादा सहारा ले रहे हैं।
अर्थव्यवस्था की स्थिति की रिपोर्ट में सूक्ष्म वित्त संस्थानों (माइक्रोफाइनैंस संस्थानों) को आगाह किया गया है क्योंकि इन ऋणदाताओं को गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां बढ़ने का हवाला देते हुए ऋण वृद्धि को धीमा करने के लिए कहा गया था। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘सूक्ष्म वित्त संस्थान परिसंपत्ति की गुणवत्ता से संबंधित चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, ऐसे में उन्हें ऋण वृद्धि धीमा करना चाहिए।’
प्राइवेट ऋण बाजार को लेकर भी रिपोर्ट में सतर्कता बरतने की बात कही गई है। रिपोर्ट के अनुसार मोटे अनुमान से पता चलता है कि प्रबंधन के तहत निजी ऋण संपत्ति करीब 15 अरब डॉलर है। पर्सनल लोन बाजार में फिनटेक ऋणदाताओं की हिस्सेदारी 52 फीसदी से अधिक हो गई है और वे पूंजी जुटाने के लिए प्राइवेट ऋण पर जोर दे रहे हैं।
अर्थव्यवस्था की स्थिति पर रिपोर्ट में कहा गया है कि मुख्य मुद्रास्फीति आरबीआई के लक्ष्य 4 फीसदी से नीचे बनी हुई है जो अच्छी बात है। हालांकि इसमें कहा गया है कि सब्जियों की कीमतों में तेजी से खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ सकती है।
रिपोर्ट के अनुसार, ‘चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में मुख्य मुद्रास्फीति औसतन 4.5 फीसदी रह सकती है। लेकिन खाद्य कीमतों में उतार-चढ़ाव से जोखिम बना हुआ है।’ मुद्रास्फीति में नरमी आने से जुलाई-सितंबर तिमाही में परिवारों की खपत मांग में तेजी आई है और ग्रामीण बाजारों में भी मांग बढ़ी है। इसमें कहा गया है, ‘उपभोग को बढ़ावा देने वाला एक अन्य कारक त्योहारी मौसम से पहले ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा नियुक्तियों में तेजी लाना है। ई-कॉमर्स कंपनियों ने महानगरों के अलावा छोटे-मझोले शहरों में भी भर्तियां की हैं।’
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि एफएमसीजी की मांग भी बढ़ रही है क्योंकि कंपनियां अपने पुराने ग्राहकों को स्वस्थ जीवनशैली वाले उत्पादों के साथ लक्षित कर रही हैं।
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़ों का उल्लेख करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि निजी खपत और सकल स्थिर निवेश मजबूत बना हुआ था और शुद्ध निर्यात भी सकारात्मक था। कृषि क्षेत्र के कमजोर प्रदर्शन की भरपाई विनिर्माण और सेवा क्षेत्र के बेहतर प्रदर्शन ने कर दी।