नई दिल्ली। बैंकों के ब्याज दर तय करने के तौर- तरीके पर कई बार आपत्तियां जता चुके रिजर्व बैंक ने अब ऐसा कदम उठाया है जो बैंकों को ज्यादा पारदर्शी तरीका अपनाने के लिए मजबूर कर देगा। आरबीआई ने देश के बैंकिंग क्षेत्र में औसत कर्ज की दर को निकालना शुरू किया है।
इसमें बैंक वार कर्ज की दर नहीं दी गई है। अलबत्ता सरकारी बैंक, निजी बैंक और विदेशी बैंकों के दरों को अलग अलग तीन समूह में दिया गया है। लेकिन इससे ग्राहकों को पता चल जाएगा कि औसत ब्याज की दर क्या है।
गुरुवार को आरबीआइ की तरफ से जारी इस सूची में सरकारी बैंकों में औसत कर्ज की दर 10.39 फीसद है। यह दर निजी व विदेशी बैंकों की औसत कर्ज दर से कम है।
आरबीआइ की रिपोर्ट के मुताबिक देखे तो सितंबर, 2017 में देश के बैंकिंग क्षेत्र में ब्याज की औसत दर 10.45 फीसद रही है। सरकारी क्षेत्र से इतर विदेशी बैंकों में औसत कर्ज दर 10.65 फीसद और निजी बैंकों में 10.55 प्रतिशत है। हालांकि इस रिपोर्ट से साफ है कि वर्ष 2012 के बाद से ब्याज दरों में लगातार नरमी का रुख बना हुआ है।
फरवरी, 2012 में देश के बैंकों के लिए कर्ज की औसत दर 12.53 फीसद था। इसमें सितंबर, 2017 तक 2.08 फीसद की कमी आ चुकी है। मगर आरबीआइ मानता है कि ब्याज दरों को नरम बनाने का जितना मौका वह देता है, बैंक उसका पूरा फायदा ग्राहकों को नहीं देते हैं।
इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है कि जनवरी, 2015 में रेपो रेट (वह दर जिस पर बैंक आरबीआई से कम अवधि का कर्ज लेते हैं) 7.75 फीसद थी। अभी यह दर छह फीसद है। रेपो दर अल्पकाल में बैंकों के कर्ज की दरों को तय करने में सबसे अहम भूमिका निभाती है।
इस तरह से देखा जाए तो पिछले ढ़ाई वर्षों में रेपो रेट में 1.75 फीसद की कटौती की गई है, लेकिन इस दौरान कर्ज की दरों में बैंकों ने सिर्फ 1.46 फीसद की रियायत दी है। इसमें से अधिकांश कटौती हाल के महीनों में तब की गई है, जब आरबीआइ ने इस बारे में लगातार बैंकों को फटकार लगाई।
देश में ब्याज दरों का मामला एक बार फिर गर्म है। केंद्र सरकार और उद्योग जगत मंदी को देखते हुए लगातार दबाव बना रहा है कि ब्याज दरों में एकमुश्त बड़ी कटौती की जाए। वहीं, ग्लोबल हालात और देश के भीतर महंगाई को देखते हुए आरबीआई बेहद सावधानी से कदम उठा रहा है।
अक्टूबर में मौद्रिक नीति की समीक्षा के दौरान आरबीआई ने कटौती की मांग को दरकिनार करते हुए ब्याज दरों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की थी। अब सभी की निगाह दिसंबर के पहले हफ्ते में होने वाली समीक्षा पर है।
हाल के हफ्तों में थोक व खुदरा महंगाई की दर ने सिर उठाया है, जबकि कच्चे तेल की कीमतों में भी तेजी का रुख है। ऐसे में उम्मीद कम है कि केंद्रीय बैंक रेपो रेट में कटौती करेगा।