श्रावकों को जीवन जीने की कला सीखनी चाहिए: आर्यिका सौम्यनन्दिनी

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कोटा। नगर विस्तार योजन स्थित श्री दिगम्बर जैन मंदिर में चल रहे आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी संघ के पावन वर्षायोग के दौरान माताजी ने तत्वार्थ सूत्र का वाचन कराया। उन्होंने कहा कि जो लोग तत्वार्थ सूत्र का वाचन करते है उन्हें सम्मेद शिखर जी की यात्रा के तुल्य पुण्य का बंध होता है। इस ग्रन्थ का वाचन कभी भी किया जा सकता है, केवल शुद्धता का ध्यान रखना चाहिए। तत्वार्थ सूत्र का वाचन और इसको समझना सभी के लिए हितकारी है, इसे पढ़कर पुण्य प्राप्त करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि साधु-संत बहती नदी के समान हैं जो धर्म प्रभावना के लिए सदैव चलते रहते हैं। जिस प्रकार नदियों को रोकने के लिए डेम बनाए जाते हैं। कुछ समय के लिए बहती हुई नदियां रूक जाती है, वैसे ही संतों का भी विराम एक स्थान पर हो जाता है और कुछ समय रूक कर फिर आगे विहार कर लेते हैं।

माताजी ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति ने अपने जीवन के कल्याण के लिए कुछ समय साधना और पुण्य प्राप्त करने सत्संगों में शामिल होकर उसका लाभ प्राप्त करना चाहिए। चातुर्मास के माध्यम से धार्मिक त्यौहारों के साथ ही प्रवचनों के माध्यम से सभी श्रावकों को जीवन जीने की कला सीखनी चाहिए। यह परंपरा निरंतर बनी रहे जिससे आपका मोक्ष मार्ग प्रबल हो सके।