नई दिल्ली। डॉलर में मजबूती और अमेरिकी बॉन्ड में तेजी के मद्देनजर विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) भारत के ऋण और इक्विटी बाजारों से अपना निवेश लगातार निकाल रहे हैं। क्लीयरिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआईएल) के आंकड़ों के अनुसार एफपीआई ने नवंबर में अभी तक पूर्णत: सुलभ मार्ग (एफएआर) वाले सरकारी प्रतिभूतियों की 8,750 करोड़ रुपये की शुद्ध बिकवाली की है। अक्टूबर में उन्होंने 5,142 करोड़ रुपये की बिकवाली की थी।
इक्विटी बाजार में भी विदेशी निवेशक शुद्ध बिकवाल बने हुए हैं। इस महीने 13 नवंबर तक एफपीआई ने 18,077 करोड़ रुपये मूल्य के शेयर बेचे हैं। अक्टूबर में इक्विटी बाजार में 91,983 करोड़ रुपये की बिकवाली की थी। अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप की जीत के बाद राजकोषीय नीति में बदलाव की उम्मीद है जिससे अमेरिकी ऋण प्रतिभूतियों की मांग बढ़ रही है।
जन स्मॉल फाइनैंस बैंक में ट्रेजरी और कैपिटल मार्केट्स प्रमुख गोपाल त्रिपाठी ने कहा, ‘अमेरिकी बॉन्ड का यील्ड अभी 4.40 फीसदी है जबकि भारत में सरकारी प्रतिभूतियों का यील्ड करीब 6.80 फीसदी है। ऐसे में दोनों के यील्ड में महज 240 आधार अंक का अंतर रह गया है। रुपये के अवमूल्यन को देखें तो सरकारी प्रतिभूतियों में विदेशी निवेशकों के निवेश का मूल्य और कम रह जाएगा। अमेरिका और भारत की प्रतिभूतियों के यील्ड में अंतर नहीं बढ़ा तो बिकवाली जारी रह सकती है।’
अमेरिका में 10 वर्षीय बॉन्ड का यील्ड नवंबर में 17 आधार अंक बढ़ा है। दूसरी ओर ट्रंप की जीत के बाद से डॉलर में मजबूती आने की वजह से रुपया 84.41 प्रति डॉलर के निचले स्तर पर आ गया है।
एवेंडस कैपिटल पब्लिक मार्केट्स अल्टरनेट स्ट्रैटजीज के सीईओ एंड्रयू हॉलैंड ने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि एफपीआई का निवेश जल्दी लौटेगा। मूल्यांकन और कंपनियों की आय को देखते हुए कोई निवेश करने में जल्दबाजी नहीं दिखाएगा। कुल मिलाकर समेकन अवधि होगी जहां बाजार इस स्तर के आसपास कारोबार करेंगे और उम्मीद है कि उसके बाद कंपनियों की आय कमाई बढ़ने लगेगी तथा अगले साल ब्याज दरों में भी कमी आएगी।’
ऋण बाजार के भागीदारों के एक वर्ग का कहना है कि निवेश की निकासी एक या दो महीने में स्थिर होने की उम्मीद है क्योंकि उभरते बाजारों में भारत अभी भी बेहतर स्थिति में है। हॉलैंड ने कहा कि मौजूदा चुनौतियों के बावजूद भारत उभरते बाजारों में अपेक्षाकृत आकर्षक विकल्प बना रह सकता है।
आरबीएल बैंक के ट्रेजरी प्रमुख अंशुल चांडक ने कहा, ‘बिकवाली कब थमेगी इसकी कोई समयसीमा बताना बहुत मुश्किल है लेकिन अमेरिका में नए प्रशासन के कारण बहुत अधिक बिक्री हुई है और हमारे वृहद आर्थिक स्थिति में नरमी के संकेत दिखने लगे हैं। कंपनियों के तिमाही नतीजे भी अच्छे नहीं रहे हैं। लेकिन एक-दो महीने में उथल-पुथल थम जाएगा।’ उन्होंने कहा, ‘उभरते बाजारों में भारत अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में है। ऐसे में एक या दो महीने के बाद कुछ सुधार दिख सकता है।’
भारत 31 जनवरी, 2025 से ब्लूमबर्ग इंडेक्स सर्विसेज के इमर्जिंग मार्केट लोकल करेंसी गवर्नमेंट इंडेक्स में शामिल होने जा रहा है। इससे भी निवेश को बल मिल सकता है। इस साल 28 जून से सरकारी बॉन्डों के जेपी मॉर्गन के सूचकांक में शामिल होने के बाद से एफएआर प्रतिभूतियों में कुल 52,890 करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश आया है। इसी दौरान ऋण सेगमेंट में 37,259 करोड़ रुपये का निवेश आया है।
38 एफएआर बॉन्ड में से केवल 27 ही जेपी मॉर्गन बॉन्ड इंडेक्स में शामिल होने की शर्तें पूरी कर पाई हैं। इसकी शर्तों में 1 अरब डॉलर का अंकित मूल्य और परिपक्वता अवधि कम से कम ढाई साल बची होनी चाहिए, शामिल हैं। सूचकांक में बॉन्ड को चरणबद्ध तरीके से 10 माह की अवधि में शामिल किया जाएगा और 31 मार्च, 2025 तक हर महीने 1 फीसदी भार को शामिल किया जाना है। पूरी तरह से शामिल होने के बाद भारत के बॉन्ड का भार चीन के बराबर 10 फीसदी हो जाएगा।
एफपीआई ऋण बाजार में अप्रैल से लगातार निवेश कर रहे थे मगर अक्टूबर से बिकवाली शुरू हो गई। जेपी मॉर्गन द्वारा भारतीय बॉन्ड को अपने सूचकांक में शामिल करने की घोषणा के 9 महीने के अंदर एफएआर प्रतिभूतियों में एफपीआई का निवेश दोगुना होकर 2 लाख करोड़ रुपये के पार पहुंच गया था। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा एफएआर के तहत जारी सरकारी बॉन्ड ही सूचकांक में शामिल किए गए हैं।