बम्पर पैदावार के कारण सोयाबीन के भाव एमएसपी से नीचे जाने से किसानों में असंतोष

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मुम्बई। केन्द्रीय कृषि मंत्रालय ने सोयाबीन का घरेलू उत्पादन 2023-24 सीजन के 130.60 लाख टन से 3 लाख टन बढ़कर 2024-25 के सीजन में 133.60 लाख टन पर पहुंचने का अनुमान लगाया है जिसे आमतौर पर सुखद समाचार माना जा सकता है लेकिन अत्यन्त कमजोर मंडी भाव को देखते हुए यह किसानों के लिए अच्छी खबर नहीं है।

सरकार ने सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पिछले साल के 4600 रुपए प्रति क्विंटल से 6.3 प्रतिशत या 292 रुपए बढ़कर इस बार 4892 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया है जबकि इसका थोक मंडी भाव इससे काफी नीचे चल रहा है।

तिलहनों का बाजार भाव ऊंचा उठाने तथा किसानों के बेहतर वापसी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से सरकार ने खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में 20 प्रतिशत का इजाफा कर दिया मगर अभी तक इसका कोई सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आ सका है।

स्वयं सरकार की अधीनस्थ एजेंसियों ने भी किसानों से एमएसपी पर सोयाबीन की खरीद आरंभ कर दी है लेकिन फिर भी मंडियों में कीमत नरम ही बनी हुई है। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे शीर्ष उत्पादक राज्यों में सोयाबीन का भाव कमजोर रहने से किसानों में असंतोष है। महाराष्ट्र में विधासभा चुनाव की गहमा गहमी के बीच किसानों का असंतोष सत्तारूढ़ दल के लिए अच्छा नहीं है।

स्थिति को संभालने के लिए केन्द्र ने राज्य सरकार के सहयोग से सोयाबीन की खरीदारी तो आरंभ कर दी है लेकिन इसकी गति बहुत धीमी रहने से कीमतों पर कोई खास सकारात्मक असर नहीं देखा जा रहा है।

सरकारी एजेंसियों ने कर्नाटक, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में सोयाबीन की खरीदारी आरंभ की है। खरीफ 2024 के लिए कुल 32.30 लाख टन सोयाबीन की खरीद का लक्ष्य रखा गया है जिसमें से अब तक महज 34-35 हजार टन की खरीद संभव हो पाई है।

इसमें तेलंगाना में हुई 22 हजार टन की खरीद भी शामिल है। वहां 25 सितम्बर से 23 दिसम्बर तक तथा मध्य प्रदेश में 21 अक्टूबर से 18 जनवरी 2025 तक सोयाबीन की खरीद की समय सीमा निश्चित की गई है।

प्रमुख उत्पादक राज्यों में सोयाबीन की भारी आवक होने लगी है और दिसम्बर के अंत तक इसकी रफ्तार काफी तेज रह सकती है। ऐसी हालत में केवल सरकारी खरीद से ही किसानों को राहत मिल सकती है और इससे मंडी भाव में भी कुछ सुधार आ सकता है।