नई दिल्ली । भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और केंद्र सरकार के बीच जारी संघर्ष के बीच 19 नवंबर को होने वाली आरबीआई की बोर्ड बैठक के हंगामेदार होने के आसार हैं। सूत्रों के मुताबिक इस बैठक में कुछ सदस्य बैठक में कैपिटल फ्रेमवर्क (पूंजी रूपरेखा ढांचा), सरप्लस (अधिशेष) प्रबंधन तथा सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उपक्रमों (एमएसएमई) के लिए लिक्विडिटी (तरलता) से जुड़े मुद्दे उठा सकते हैं।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय की ओर से आरबीआई एक्ट के सेक्शन-7 के तहत चर्चा शुरू किए जाने के बाद रिजर्व बैंक और सरकार के बीच तनाव और बढ़ गया है। जानकारी के मुताबिक इस सेक्शन का इस्तेमाल आज तक नहीं किया गया। इसके तहत सरकार को इस बात का विशेषाधिकार मिलता है कि वह किसी मुद्दे पर रिजर्व बैंक के गवर्नर को निर्देश दे सके।
आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने पिछले महीने दिए अपने भाषण में केंद्रीय बैंक की स्वायतता के बारे में बातें कही थीं और तर्क दिया था कि रिजर्व बैंक की स्वायतता से किसी भी तरह का कोई समझौता अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक हो सकता है।
सूत्रों के मुताबिक आरबीआई की बोर्ड बैठक पूर्व निर्धारित होती है और उसके एजेंडे भी पहले तय हो जाते हैं। हालांकि बोर्ड के सदस्य इस बैठक में एजेंडे से इतर विषयों को भी उठा सकते हैं।
सूत्रों के मुताबिक सरकार की ओर से नामित निदेशक और कुछ स्वतंत्र निदेशक इस बैठक में आरबीआई के पूंजी ढांचे तथा अंतरिम लाभांश के मुद्दे उठा सकते हैं। हालांकि, आरबीआई की पूंजी रूपरेखा ढांचे में कोई भी रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 में संशोधन के बाद ही संभव हो सकेगा।