कपड़े पर जीएसटी 3 जून तक टला, परिषद में नहीं बनी सहमति

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नई दिल्ली । कपड़ा क्षेत्र को लेकर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद में सहमति नहीं बन सकी, जिससे दरों की घोषणा को 3 जून के लिए टाल दिया गया है। माना जा रहा है कि इस फैसले को टालने की वजह पूरी कपड़ा मूल्य शृंखला में जटिलताएं और पूरी शृंखला में कपड़े पर कर की दरें पहले के स्तर पर बनी रहने की उद्योग की उम्मीदें हैं।

कपड़ा उद्योग के प्रतिनिधियों का कहना है कि कपड़ा मूल्य शृंखला के अलग-अलग खंडों में अलग-अलग दरें हैं। कुछ पर कर लगता है और कुछ पर नहीं, जिससे कर चोरी हो रही है और असंगठित क्षेत्र फल-फूल रहा है। इसके अलावा देश में सूती कपड़े का ज्यादा उत्पादन होता है, जबकि वैश्विक स्तर पर मानव निर्मित कपड़े का दबदबा है। 
 
इस समय कपड़ा क्षेत्र में करों में अंतर इतना है कि जहां देश के ज्यादातर राज्यों में कपड़ों पर उत्पाद शुल्क या बिक्री कर नहीं है, लेकिन ब्रांडेड परिधानों पर उत्पाद शुल्क और बिक्री कर दोनों लगते हैं। वहीं कपड़ों के स्तर पर सूती जैसे प्राकृतिक कपड़े पर देश में कोई कर नहीं है, लेकिन मानव-निर्मित कपड़े पर 10 फीसदी उत्पाद शुल्क लगता है।

ज्यादातर राज्य चाहते हैं कि सूती धागे पर शून्य शुल्क जारी रहे, लेकिन इस बात के आसार जताए जा रहे हैं कि मानव-निर्मित कपड़े पर 5 फीसदी कर बना रह सकता है। हालांकि असली विवाद इनपुट क्रेडिट को लेकर है। अपैरल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (एईपीसी) के पूर्व चेयरमैन ए शक्तिवेल ने कहा कि अगर ब्रांडेड परिधानों पर 18 फीसदी कर लगेगा तो किस तरह का इनपुट क्रेडिट दिया जाएगा।’

यह मामला इसलिए महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि क्योंकि कपड़ा उद्योग का ज्यादातर हिस्सा असंगठित है और यह इनुपट टैक्स क्रेडिट के प्रवाह में अवरोध पैदा कर रहा है। इसकी वजह यह है कि अगर पंजीकृत करदाता असंगठित स्रोतों से इनपुट्स खरीदते हैं तो उन्हें क्रेडिट नहीं मिलता है। कपड़ा उद्योग की एक अन्य चिंता अनुपालना का मसला है।

अगर कर की दर ऊंची रखी गई तो अनुपालना के हालात और खराब होंगे। परिधान क्षेत्र के मुताबिक ‘ब्रांडेड परिधान’ की परिभाषा भी विवादास्पद मसला है। असंगठित क्षेत्र की ज्यादातर कंपनियां निजी लेबल लगातार ब्रांडेड परिधानों के रूप में अपना माल बेचती हैं। यह देखना होगा कि पूरे उद्योग में बेहतर अनुपालना के लिए इसे जीएसटी के तहत किस तरह परिभाषित किया जाता है।