कलयुग में इंसान की इंसानियत समाप्त हो रही है: आदित्य सागर मुनिराज

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कोटा। चंद्र प्रभु दिगम्बर जैन समाज समिति की ओर से जैन मंदिर रिद्धि- सिद्धि नगर कुन्हाड़ी पर आयोजित चातुर्मास के अवसर पर शुक्रवार को आदित्य सागर मुनिराज ने नीति प्रवचन में कहा कि वर्तमान में कलिकाल में मनुष्य की संवेदनाएं समाप्त हो रही हैं। इंसान में इंसानियत नहीं बची है। पूर्व में इंसान में संवेदनायें बहुत थीं। उनकी संवेदनाओं के साथ मैत्री थी।

वर्तमान में संवेदनाएं शून्य होने से धार्मिकता समाप्त हो रही है। मानव की काया की स्व संवेदनाएं होती हैं। परंतु मानव अपनी संवेदना की जगह दूसरों की संवेदनाओं में उलझा रहता है। उन्होंने कहा कि एक इंद्री की पीडा जो समझे वही असली संवेदना है। यही जैन दर्शन है। पेड़, पौधे, हवा, पानी के जीव सबकी संवेदनाएं होती है।

उन्होंने कहा अपने स्वार्थ के लिए अन्य की संवेदना का समाप्त करना अनुचित है। संवेदना विहीन व्यक्ति को नरक की वेदना को सहन करनी होती है। स्ववेदना का प्रबंधन ही आध्यात्मिक प्रबंधन है।

किसी कार्य को करने का मुहूर्त कुछ नहीं होता है, जो काम आपके पास है, उसे शीघ्र सम्पन्न करें। यदि बहुआयामी बनना है, तो काम को न टालें। जो अस्त-व्यस्त है उनके पास समय का अभाव है। जो व्यवस्थित है वह सुव्यवस्थित होकर कार्य करते हैं।

इस अवसर पर रिद्धि-सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़, कोषाध्यक्ष ताराचंद बडला, चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा सहित कई शहरों के श्रावक उपस्थित रहे।