हाडौती की लघु चित्र शैली अमेरिका, इंग्लेंड और ऑस्ट्रेलिया तक पहुंची

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शैली के सिद्धहस्त चित्रकार मोहम्मद शेख लुकमान युवाओं को कर रहे तैयार

कोटा। हाडौती की लघु चित्र शैली दुनियाभर में अपना अलग ही स्थान रखती है। आज भी दुनिया के कई देशों में यहां की चित्र शैली के कद्रदान हैं।

हाडौती लुघ चित्र शैली के सिद्धहस्त चित्रकार मोहम्मद शेख लुकमान युवाओं को तैयार तो कर रहे हैं लेकिन, युवाओं में इसका रुझान कम हैं। उन्होंने कहा कि इस शैली को सीखने के लिए धेर्य, एकाग्रता, समय और जुनून चाहिए। साथ ही रोजगार की इसमें तलाश की जाती है, लेकिन उतना कलाकार को मिलता नहीं हैं।

उन्होंने कहा कि यहां के कलाकार ऐसे रहें हैं जो पूरी घटना को एक चित्र में समाहित कर देते हैं। हाडौती संभाग की 400 साल पुरानी इस कला को जीवंत रखने, युवाओं को इस कला से जोड़ने और नए लोग आगे आएं।

इसी उद्देश्य से राजस्थान ललित कला अकादमी एवं कला, साहित्य, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, जयपुर द्वारा द्वारा हाडोती लघु चित्र शैली का प्रशिक्षण कला दीर्घा में 26 जून तक दिया जा रहा है।

समन्वयक डॉ. राकेश सिंह ने बताया कि हाडौती क्षेत्र की लघु चित्र शैली को विशिष्ट पहचान दिलाने के लिए इस शैली के सिद्धहस्त चित्रकार मोहम्मद शेख लुकमान एवं उनके सहयोगी द्वारा युवाओं व कलाकार व इस शैली से जुडे लोगों को इसकी बारीकियां सिखा रहे हैं।

इस आयोजन के तहत युवाओं को कला साहित्य से जोड़ना और हाडौती की कला को उचित स्थान दिलाने का प्रयास किया जा रहा है। हाडौती की चित्र शैली देश दुनिया में अपना अलग स्थान रखती है.

कांच का ऐसा काम है, जो दुनिया में नहीं दिखेगा
राकेश सिंह ने कहा कि यह कला मुख्य रूप से बूंदी की है, लेकिन कई लोग कोटा आए इस कला का विस्तार हुआ, लेकिन अब यह कला धीरे-धीरे लुत्प हो रही है, जिसे बचाने की कोशिश प्रशिक्षण शिविर के माध्यम से की जा रही है। उन्होंने कहा कि राजा महाराजाओं के समय इसका काफी बोलबाला था और कला की कद्र हुआ करती थी, लेकिन अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कलाकार भी इसे बचाने में जद्दोजहद कर रहे हैं। इसके साथ ही कांच पर कलाकारी भी यहां की पहचान हैं, जो कई महलों में आज भी दिखाई देती है। ऐसा काम दुनिया में कहीं भी देखने को नहीं मिलेगा।

समय के साथ बदलती गई कला और कलाकारी
मो. लुकमान ने बताया कि समय के साथ इस कला का स्वरूप तो बदला ही इसकी शैली में भी परिर्वन होते चले गए, समय के साथ जैसे जैसे परिधान और रहन सहन बदला वैसे ही यहां की कला और कलाकारी का अंदाज बदल गया। कपडों के रंग बदले तो शिकार का तरीका भी बदला। महल, रोबदार मूंछे, वाद्य यंत्र, प्रकृति सहित कई अंदाज बदल गए और उसी के साथ कला भी बदलती चली गई। इस आयोजन में विनय शर्मा प्रदर्शनी अधिकारी राजस्थान ललित कला अकादमी जयपुर और राजकुमार जैन, प्रशासनिक अधिकारी राजस्थान ललित कला अकादमी जयपुर का विशेष सहयोग रहा।