-रवीन्द्र सिंह सोलंकी-
Lok Sabha Election Result: बात पुरानी है, संभवतः 1979 की, हम तीन मित्र विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय अधिवेशन में बैंगलुरू गये थे। वहां भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक अध्यक्ष, प्रखर चिंतक अनेक भाषाओं के ज्ञाता श्रद्देय दत्तोपंत जी ठेंगड़ी मुख्य वक्ता के रूपमें आए थे। समारोह उपरांत अनेक छात्र उनसे ओटोग्राफ ले रहे थे। मैंने भी अपनी डायरी में उनसे ओटोग्राफ लिया।उन्होंने कुछ अंग्रेजी में लिखकर हस्ताक्षर किए थे, जो उस समय मेरे समझ में नहीं आया।
बात आई गई हो गई, 4 अक्टूबर 2004 भारतीय ,किसान संघ का अधिवेशन कोटा में हुआ था। उसमें माननीय ठेंगड़ी जी मुख्य अतिथि के रूप में पधारे थे । इस अवसर पर आदरणीय ठेंगड़ी जी पू० बाबूजी से मिलने घर पधारे थे। मैं अपना लोभ संवरण नहीं कर पाया, ओटोग्राफ वाली डायरी दिखाकर उनसे उसका अर्थ पूछा। उन्होंने तपाक से कहा-शार्टकट विल कट यूं शार्ट.. यानी छोटा रास्ता आपको जल्दी छोटा कर देगा..
आज के परिपेक्ष्य में भाजपा के संदर्भ में यह बात सच प्रतीत होती है एक बार आदरणीय लाल कृष्ण आडवाणी ने भाजपा को पार्टी विद डिफरेंस कहा था। लेकिन पिछले दिनों कई ऐसी घटनाएं हुई जिसमें पार्टी विद डिफरेंस के बजाय पार्टी हेज नो डिफरेंस विद अदर्स की बात चरितार्थ हुई है। हां एकमात्र सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का विचार और हिंदुत्व की अवधारणा आज भी भाजपा को अन्य पार्टियों से अलग करती है। लेकिन आज हिंदुत्व के मुद्दे पर भी पुनर्विचार करने की आवश्यकता जान पड़ती है।
मोदी सरकार द्वारा इतना कुछ करने के बाद भी जनता ने अयोध्या और उत्तर प्रदेश में क्यूं नकार दिया। क्या मंहगाई और बेरोज़गारी का मुद्दा लोगों को प्रभावित कर रहा था, जिसे समझने में चूक हुई। मुझे नहीं लगता कि मोदी जी से बढ़कर हिंदुत्व के लिए कोई नेता भारत में भविष्य में कुछ कर पायेगा विचारणीय तो है यह बात आखिर क्यों यह मुद्दा राजनीतिक रूप अभी तक नहीं ले पा रहा?
इसके पक्ष विपक्ष में अनेक तर्क दिए जा सकते हैं, लेकिन चिंतन तो करना ही चाहिए। हिंदुत्व के अलावा अन्य बातें दूसरे दलों से भी बढ़कर भाजपा में घुन की तरह लग गई हैं। कांग्रेस मुक्त भारत का नारा तो सफल नहीं हुआ लेकिन भाजपा, कांग्रेस युक्त अवश्य बन गई। चार सौ पार का नारा शायद उल्टा पड़ गया। एक तरफ संघ लगभग सौ साल से जातियों में बंटे हिंदू समाज को एक करने का प्रयास कर रहा है, वहीं दूसरी ओर भाजपा चुनाव में खुलकर जातिवादी कार्ड खेल रही है।
चुनाव में सब जातियों में बंटे जाते है और जातिवाद को सब मिलकर हवा देते हैं। पंडित दीनदयालजी उपाध्याय ने सत्ता को सेवा का माध्यम बताया था। लेकिन सत्ता प्राप्ति की ऐसी भूख गत दिनों देखने को मिली जिसने भाजपा के पूरे वैचारिक अधिष्ठान को ही हिलाकर रख दिया। बिहार में नीतीश कुमार के साथ कई बार धोखा खाने के बाद भी बार बार सत्ता के लिए उनसे हाथ मिलाना आत्मघाती साबित हुआ।
महाराष्ट्र में जिस प्रकार से शिवसेना के बागियों को तोड़कर सत्ता हथियाई लोगों ने उसे नकार दिया। और तो और शरद पंवार की पार्टी को तोड़कर अजीत पंवार को साथ लेकर क्या संदेश देने का प्रयास किया यह समझ के परे है। अजीत पंवार पर हजारों करोड़ के घोटालों का आरोप बताया जाता है लेकिन एक ही दिन में भाजपा में शामिल होने के बाद उनको क्लीन चिट मिल गई। और तो और अशोक चव्हाण को भाजपा में शामिल होते ही राज्यसभा का टिकट दे दिया ।
बंगाल में भाजपा ने भृष्टाचार, महिला उत्पीडन, मुस्लिम तुष्टिकरण और भाई भतीजावाद को खूब उछाला लेकिन भाजपा को आशानुरूप सफलता नहीं मिली। वहां वोट भी लगभग अस्सी प्रतिशत रहा। ऐसे अनेक उदाहरण है जिनसे साबित होता है सत्ता प्राप्त करने के लिए लगातार सिद्धांतों की तिलांजलि दी जाती रही। आम जनता और भाजपा के निष्ठावान कार्यकर्ता हर निर्णय को शिरोधार्य कर मैदान में जुटे रहते हैं।
सामूहिक विमर्श और निर्णय का दौर अब नहीं रहा। तमाम प्रचार सामग्री पोस्टर बेनर में से आदरणीय आडवाणी जी, अटल जी, दीनदयालजी गायब हो गये। यहां तक कि भाजपा सरकार के बजाय मोदी सरकार का नारा चरम पर छा गया। आदरणीय नड्डा जी को संघ से सहयोग लेने की आवश्यकता भी महसूस नहीं हुई। हालांकि उनका यह मंतव्य नहीं रहा होगा।
राजस्थान में कांग्रेस से आयातित लोगों को भाजपा ने टिकट दिया, दोनों हार गए। क्या बांसवाड़ा और नागौर में भाजपा के पास एक भी ऐसा कार्यकर्ता नहीं जिसको पार्टी टिकट देती। ज्यादा से ज्यादा हार जाते लेकिन पार्टी की जमीन तो तैयार होती। पार्टी में नए लोगों को नाम मात्र टिकट दिया जा रहा है। अब टिकट मांगने वाले की हैसियत का मूल्याकंन उसकी जेब से किया जाता है, न कि उसकी वैचारिक और बौद्धिक निष्ठा से बाहरी लोगों को टिकट देकर आप पार्टी कार्यकर्ता से यह उम्मीद करें कि वह निष्ठा से कार्य करेगा, यह संभव ही नहीं है।
इसके अलावा गत दिनों से अनेक फिल्मी सितारों को टिकट देने का नया चलन चल पड़ा है। यह सब सत्ता प्राप्ती की जल्दबाजी का ही नतीजा है। आप अपने पैरों स्वयं कुल्हाड़ी मार रहे है, फिल्मी सितारों के दम पर संगठन और विचारधारा कभी मजबूत नहीं हो सकती।
राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे जी को जिस तरह साईड लाईन किया गया, जनता में उससे अच्छा संदेश नहीं गया..सी एम बनाना न बनाना इतना मायने नहीं रखता जितना और जिस तरह से पूरे चुनाव में उनकी उपेक्षा की गई। और पर्ची निकालकर मुख्यमंत्री बनाना।
शायद एक बड़ा कारण यह भी रहा कि दस सीट भाजपा हार गई। आज जब लोकसभा चुनाव में जनता ने खंडित जनादेश दिया है तो विचार करने की आवश्यकता है, हालांकि भाजपा नीत N D A गठबंधन को तो बहुमत मिल ही गया है। इसे भले जश्न मनाने का बहाना माना जा सकता है। लेकिन भाजपा को पूर्ण बहुमत न देकर जनता ने पर कतरने का काम कतरने का काम अवश्य कर ही दिया है।
एक अन्य बात जो गत दस वर्षों में तेजी से विकसित हुई है, वह यह है कि आपसे वैचारिक असहमति रखने वाले व्यक्ति को देशद्रोही और हिंदुत्व विरोधी बताकर उसका उपहास उड़ाना। यह मेरी दृष्टि में कतई उचित नहीं है। स्वस्थ लोकतंत्र में आलोचना सराहना चलती रहनी चाहिए, लेकिन किसी को इस प्रकार से प्रताड़ित नहीं किया जाना चाहिए। इन दिनों सोशल मीडिया पर अयोध्या के लोगों के बारे में अनाप-शनाप कहा जा रहा है जो अनुचित है ।
चुनाव में हार जीत के लिए अनेक मुद्दे होते हैं लेकिन सबसे अहम मुद्दा प्रत्याशी होता है। जनता सबसे पहले प्रत्याशी के काम और उसके व्यवहार का हिसाब मांगती है। यदि आपका प्रतिनिधि आपकी पार्टी के आदर्शों के विपरीत नजर आ रहा है तो जनता पहले उससे अपना हिसाब चुकता करती है। बहरहाल एकबार फिर देश मे मिली-जुली सरकार का दौर
आ गया है, जो देश के लिए घातक है।
मोदी जी की नई सरकार की उम्र के बारे में आज कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी.. लेकिन एक बार फिर मोदी सरकार बन गई है..लेकिन भाजपा की स्थाई सरकार बनाने के लिए मुझे लगता है ठेंगडी जी और दीनदयालजी उपाध्याय के रास्ते को ही अपनाया जाना चाहिए। अन्यथा शार्ट कट विल कट यू शार्ट की तलवार हमेशा भाजपा के सर मंडराती रहैगी.. शायद जमीनी स्तर पर कुछ ठोस निर्णय अवश्य लिए जायेंगे, मुझे ऐसी उम्मीद है।