तिलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार खाद्य तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाए

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नई दिल्ली। स्वदेशी वनस्पति तेल उद्योग एवं व्यापार क्षेत्र के तमाम संगठनों का मानना है कि तिलहन फसलों के घरेलू उत्पादन में आत्मनिर्भरता का लक्ष्य हासिल करने के लिए खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में बढ़ोत्तरी होना आवश्यक है।

विदेशों से आयातित खाद्य तेल का दाम घरेलू बाजार में स्वदेशी खाद्य तेल के मूल्य से ऊंचा या कम से कम इसके बराबर होना चाहिए। स्वदेशी क्रशिंग-प्रोसेसिंग उद्योग को जब प्रतिस्पर्धी का समान धरातल उपलब्ध होगा तब वह किसानों से ऊंचे दाम पर तिलहनों की खरीद के लिए आगे बढ़ेगा।

ज्ञात हो कि जब सोयाबीन तेल, सूरजमुखी तेल एवं पाम तेल का वैश्विक बाजार मूल्य नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा था तब भारत में भी सोयाबीन एवं सरसों के दाम ने छलांग लगाई थी और वह सर्वकालीन सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया था।

चूंकि भारत दुनिया में खाद्य तेलों का सबसे प्रमुख आयातक देश है इसलिए वैश्विक बाजार के प्रत्येक उतार-चढ़ाव से घरेलू बाजार भाव प्रभावित हो जाता है। भारत में तिलहन फसलों की पैदावार में बढ़ोत्तरी तो हो रही है मगर यह पर्याप्त नहीं है। खाद्य तेलों की मांग एवं खपत इससे कहीं अधिक तेल रफ्तार से बढ़ रही है जिससे भारी अंतर बना रहता है।

पिछले मार्केटिंग सीजन के दौरान देश में खाद्य तेलों का आयात नए रिकॉर्ड सर पर पहुंच गया था क्योंकि सरकार ने इस पर सीमा शुल्क की दर में भारी कटौती कर दी थी। सोपा ने पिछले दिनों केन्द्रीय कृषि मंत्री को एक पत्र भेजकर कहा था कि स्टे विदेशी खाद्य तेलों के विशाल आयात से स्वदेशी उद्योग की हालत खराब हो गई है और तिलहन फसलों के क्षेत्रफल तथा उत्पादन में उम्मीद के अनुरूप बढ़ोत्तरी नहीं हो रही है।

सोयाबीन के उत्पादकों को न्यूनतम समर्थन मूल्य प्राप्त करने के लिए भी कठिन संघर्ष करना पड़ रहा है। इसे देखते हुए खाद्य तेलों पर तत्काल आयात शुल्क में भारी बढ़ोत्तरी किए जाने की आवश्यकता है और उस पर कृषि सेस भी लगाया जाना चाहिए।

सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सी) ने भी कई बार सरकार से खाद्य तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाने का आग्रह किया था। उद्योग को उम्मीद है कि अगले आम बजट में सरकार इस दिशा में कुछ प्रयास कर सकती है।