मुंबई। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति की 5-6 दिसंबर को होने वाली मौद्रिक समीक्षा बैठक में नीतिगत दर में किसी तरह के बदलाव की उम्मीद कम ही है।
मुद्रास्फीति के बढ़ते दबाव और वैश्विक केंद्रीय बैंकों की नीतियों के कारण घरेलू केंद्रीय बैंक सतर्क रुख अपना सकता है। नीतिगत दर के बारे में अर्थशास्त्रियों के बीच सर्वेक्षण कराया था, जिनमें से सभी 10 प्रतिभागियों ने अगले हफ्ते दरों में किसी तरह के बदलाव की संभावना नहीं जताई। कुछ ने कहा कि भारत में दरों में कटौती का चक्र पूरा हो चुका है।
एलऐंडटी फाइनैंस की समूह मुख्य अर्थशास्त्री रूपा रेगे नेस्तुरे ने कहा, ‘आरबीआई ने दर कटौती का मौका शायद गांवा दिया है।’ उन्होंने कहा कि जनवरी-फरवरी 2017 दरों में कटौती का सबसे उपयुक्त समय था। उस समय मुद्रास्फीति में गिरावट का रुख बना हुआ था।
हालांकि अर्थव्यवस्था में नरमी से दरों में कटौती की संभावना बन रही है लेकिन महंगाई ने आरबीआई के हाथ बांध दिए हैं। केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि रीपो दर 6 फीसदी है और फिलहाल यह इसी स्तर पर बरकरार रह सकती है।
स्टैंडर्ड चार्टर्ड की मुख्य अर्थशास्त्री अनुभूति सहाय ने कहा, ‘आरबीआई ने पहले जिसे लेकर चिंता जताई थी वह इस बार भी बरकरार रह सकती है। मेरी राय में आरबीआई सतर्क रुख अपनाएगा।’ इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च के एसोसिएट निदेशक सौम्यजित नियोगी ने कहा कि आरबीआई दरें मौजूदा स्तर पर बरकरार रख सकता है।