रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति की समीक्षा बैठक 3 अप्रैल को, क्या इस बार बढ़ेंगी रेपो रेट

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नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक इस सप्ताह पेश मौद्रिक नीति समीक्षा एक बार फिर नीतिगत दर को यथावत रख सकता हैं। इसका कारण आर्थिक वृद्धि को लेकर चिंता दूर होने और इसके करीब आठ प्रतिशत रहने के साथ केंद्रीय बैंक का अब और अधिक जोर मुद्रास्फीति को चार प्रतिशत के लक्ष्य पर लाने पर हो सकता है। विशेषज्ञों ने यह बात कही।

साथ ही नीतिगत दर पर निर्णय लेने वाली आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (MPC) अमेरिका और ब्रिटेन जैसे कुछ विकसित देशों के केंद्रीय बैंकों के रुख पर गौर कर सकती है। ये केंद्रीय बैंक नीतिगत दर में कटौती को लेकर स्पष्ट रूप से ‘देखो और इंतजार करो’ का रुख अपना रहे हैं।

विकसित देशों में स्विट्जरलैंड पहली बड़ी अर्थव्यवस्था है जिसने नीतिगत दर में कटौती की है। वहीं दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जापान आठ साल बाद नकारात्मक ब्याज दर की स्थिति को समाप्त किया है। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकान्त दास की अध्यक्षता वाली MPC की तीन दिवसीय बैठक तीन अप्रैल को शुरू होगी। मौद्रिक नीति समीक्षा की की घोषणा पांच अप्रैल को की जाएगी। यह वित्त वर्ष 2024-25 की पहली मौद्रिक नीति समीक्षा होगी।

एक अप्रैल, 2024 से शुरू वित्त वर्ष में एमपीसी की छठ बैठकें होगी। आरबीआई ने पिछली बार फरवरी 2023 में रीपो रेट बढ़ाकर 6.5 प्रतिशत किया था। उसके बाद लगातार छह द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में इसे यथावत रखा गया है।

बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, ‘‘मुद्रास्फीति अभी भी पांच प्रतिशत के दायरे में है और खाद्य मुद्रास्फीति के मोर्चे पर भविष्य में झटका लगने की आशंका है, इसको देखते हुए एमपीसी इस बार भी नीतिगत दर और रुख पर यथास्थिति बनाए रख सकता है।’’

उन्होंने कहा कि जीडीपी अनुमान में संशोधन हो सकता है। इस पर सबकी बेसब्री से नजर होगी। सबनवीस ने कहा, ‘‘वित्त वर्ष 2023-24 में आर्थिक वृद्धि उम्मीद से कहीं बेहतर रही है और इसीलिए केंद्रीय बैंक को इस मामले में चिंताएं कम होंगी और वह मुद्रास्फीति को लक्ष्य के अनुरूप लाने पर ज्यादा ध्यान देना जारी रखेगा।’’

देश की आर्थिक वृद्धि दर वित्त वर्ष 2023-24 की दिसंबर तिमाही में 8.4 प्रतिशत रही। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने पहली और दूसरी तिमाही के लिए जीडीपी वृद्धि के अनुमान को संशोधित कर क्रमश: 8.2 प्रतिशत और 8.1 प्रतिशत किया है जो पहले 7.8 प्रतिशत और 7.6 प्रतिशत थ।

इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के 2023-24 की पहली और दूसरी तिमाही के लिए जीडीपी वृद्धि अनुमान बढ़ाये जाने के साथ लगातार तीन तिमाहियों में वृद्धि दर आठ प्रतिशत से अधिक रहने तथा उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) फरवरी में 5.1 प्रतिशत रहने से आगामी मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत दर और रुख में बदलाव की संभावना नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘‘इक्रा का मानना है कि नीतिगत स्तर पर रुख में अगस्त 2024 से पहले बदलाव होने की संभावना नहीं है। उस समय तक मॉनसून को लेकर स्थिति साफ होगी। साथ ही आर्थिक वृद्धि तथा अमेरिकी केंद्रीय बैंक का नीतिगत दर को लेकर रुख भी साफ हो जाएगा।’’ नायर ने कहा कि इन सबको देखते हुए नीतिगत दर में कटौती इस साल अक्टूबर तक होने की उम्मीद है। यह स्थिति तब होगी जब आर्थिक वृद्धि के स्तर पर कोई समस्या नहीं हो।

पीडब्ल्यूसी इंडिया के भागीदार और प्रमुख आर्थिक परामर्शदाता रानेन बनर्जी ने कहा कि तीसरी तिमाही में समग्र मजबूत जीडीपी वृद्धि, मुख्य (कोर) मुद्रास्फीति का 3.5 प्रतिशत से नीचे जाना, कच्चे तेल की कीमतों में वैश्विक वृद्धि, लॉजिस्टिक लागत में वृद्धि और वैश्विक स्तर पर राजनीतिक संघर्षों में बढ़ती स्थिति विचार-विमर्श के लिए प्रमुख मुद्दे होंगे।

उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि उभरती अर्थव्यवस्थाओं में कुछ केंद्रीय बैंकों ने नीतिगत दरों में कटौती शुरू कर दी है लेकिन प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के केंद्रीय बैंक अभी भी अनिश्चितता की स्थिति में हैं। भारत और अमेरिका के बीच प्रतिफल (बॉन्ड) का अंतर कम हो गया है, जिससे कोष प्रवाह पर दबाव पड़ रहा है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘…इस बात की काफी संभावना है कि एमपीसी नीतिगत दर को यथावत रखेगा। लेकिन दर में कटौती को लेकर एक छोटी संभावना भी है। एमपीसी के कुछ सदस्य नीतिगत दर में कटौती के लिए मतदान कर सकते हैं लेकिन वे बहुमत में नहीं हैं।’’