त्रिकाल चौबीस दिगम्बर जैन मंदिर में संगीतमय सिद्ध महामण्डल विधान
कोटा। गुरूसिद्ध की वेदी पर पावन अर्घ चढाते हैं …इस जग की माया नगरी से रिश्ता तोड़ लिया मैंने…गुरूवर से नाता जोड़ लिया मैंने…संगीतमय सिद्ध महामण्डल विधान मंगलवार को आरके पुरम त्रिकाल चौबीस दिगम्बर जैन मंदिर में आयोजित किए गए।
मंदिर अध्यक्ष अंकित जैन ने बताया कि शाश्वत अष्टान्हिक महापर्व के तहत सिद्धशिला पर विराजमान सिद्ध परमेष्ठी के बत्तीस गुणों की पूजा अर्घ देकर को पूजा सम्पन्न की गई। जिसमें उनके अनन्त दर्शन, ज्ञान अवगाहनत्व, अनंत वीर्यत्व, अव्याधत्व आदि अनंत गुणों से युक्त सिद्धस्वरूप को नमस्कार किया गया।
प्रतिष्ठाचार्य डॉ.अभिषेक जैन ने सम्पूर्ण अनुष्ठान संगीतमय कराकर भक्तिभाव से नाचकर विधान से इंद्र—इंद्राणियों को जोडा। उन्होंने सिद्ध परमेष्ठी के गुण धर्म की आध्यात्मिक शास्त्रीय विवेचना की। सिद्ध परमेष्ठी की 32 गुणों युक्त आराधना जिनाभिषेक शान्तिधारा, नित्यमहपूजन जन, नंदीश्वर पूजन व सिद्धचक्र विधान सम्पन्न किये गए।
संगीतकार सौरभ सिद्धार्थ ने वाद्य यंत्रों पर साथ दिया। राजमल पटौदी, अर्पित जैन, ज्ञानचंद जैन, विनोद टोरडी, संजय जैन, राहुल जैन, विमल जैन सहित सैकड़ों की संख्या में जैन समुदाय के लिए विशुद्ध ज्ञान ग्रीष्मकालीन वाचन में उपस्थित रहे। महामंत्री अनुज जैन ने बताया कि मंगलवार को महाआरती का पुण्य विनोद जैन को प्राप्त हुआ।
पुण्य नहीं हो तो, आपके पास कुछ नहीं
आचार्य विशुद्ध सागर महाराज के शिष्य आदित्य सागर महाराज ससंघ ने अपने प्रवचन में कहा कि संचित पुण्य के फल से ही आप महामण्डल विधान का हिस्सा बन पाते हैं। सिद्धचक्र में पुण्य जितना अधिक होगा वह उतना ही हिस्सा बन पायेंगे। जिसके पास पुण्य है, उसके पास सबकुछ है। पुण्य नहीं हो तो आपके पास कुछ नहीं बचता। उन्होंने उदाहरण स्वरूप कहा कि पूर्णिमा पर चांद पूजा जाता है, उसके पुण्य सर्वोत्तम होते हैं। अगले दिन जब पुण्य घटते हैं तो कोई उसकी पूजा नहीं करता है। मुनि आदित्य सागर ने जीवन में धैर्य रखने, संतोष रखने की सलाह भी दी।