कोटा के दशहरा मेले के फ़ीकेपन का ठीकरा चुनाव आचार संहिता के पालन के माथे फ़ोड़ने की कोशिश कर रहा है। जबकि इसके असली दोषी अधिकारी हैं, जो मूल रूप से बाहर के होते हैं और प्रशासनिक कारणों से कोटा में नियुक्तियों पर आते हैं। इसलिए उनका यहां की संस्कृति और रीति-रिवाज से कोई नाता-सरोकार नहीं रहता। कोटा में हर साल दशहरा आयोजित होता है और इसे आयोजित करना ही है इसलिए दशहरा मेला के आयोजन की परंपरा का निर्वहन भर किया जा रहा है।
-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा। Kota Dussehra 2023: जैसी की आशंका थी, उसी के अनुरूप चुनाव आचार संहिता के साए में कोटा में आयोजित हो रहा राष्ट्रीय दशहरा मेला प्रशासनिक तंत्र की स्थानीय रीति-रिवाजों के प्रति बेरुखी के कारण बेनूर सा भराया जा रहा है।
कोटा के किशोरपुरा स्थित आशापुरा माताजी के मंदिर पर नवरात्रि स्थापना के दिन माता आशापुरा जी की पूजा अर्चना के साथ औपचारिक रूप से शुरू हुआ दशहरा मेला अब तक आयोजित कार्यक्रमों में मंगलवार को इस मेले के सबसे बड़े आकर्षक रहते आ रहे रावण दहन के दिन तक का समूचा आयोजन बेमजा साबित हुआ है, जिसमें चुनाव आचार संहिता के कारण जनप्रतिनिधियों की भागीदारी तो संभव ही नहीं थी,आमजन का जुड़ाव भी कहीं देखने को नहीं मिला।
अभी तक दशहरा मेला के आयोजन के दौरान केवल जो कार्यक्रम अपने पूरे पारंपरिक वैभव के साथ आयोजित हुआ है तो वह कोटा के गढ़ पैलेस में विजयदशमी के दिन रावण दहन से पूर्व आयोजित होने वाला दरीखाना, जो राजसी वैभव और ठाठ-बाट के साथ आयोजित किया जाता रहा है। पूर्व कोटा रियासत के महाराव के परिवार सहित अन्य ठिकानेदार-जागीरदार हमेशा इस दरीखाने की शोभा रहे हैं। इस बार भी यह कार्यक्रम पूर्ण राजसी तरीके साथ आयोजित हुआ।
गौरवशाली परम्परा के साथ इस कार्यक्रम के सफल आयोजन की वजह यह रही है कि यह विशुद्ध रूप से कोटा के पूर्व राजपरिवार की ओर से व्यक्तिगत रूप से बिना किसी सरकारी सहभागिता के मनाया जाता है। इस आयोजन का दायित्व केवल पूर्व राजपरिवार के सदस्यों के पास ही होता है और यही वजह है कि यह पूरी तरह से सफल रहा।
कोटा के गढ़ पैलेस में आयोजित दरीखाना सभी परंपराएं निभाते हुए हुआ है। गढ़ पैलेस में दरीखाना के बाद परंपरा अनुसार पूर्व राजपरिवार के मुखिया इज्यराज सिंह और उनके पुत्र की अगुवाई में भगवान लक्ष्मी नारायण जी की सवारी गढ़ पैलेस से रवाना होकर होकर विभिन्न स्थानों से गुजरते हुए दशहरा मैदान पर विजयश्री रंगमंच के सामने रावण दहन स्थल पर पहुंची। माता सीता और पाने के पूजन के साथ रावण और कुनबे के पुतलों का दहन किया गया।
कोटा दशहरा मेला के मुख्य आकर्षण 20 दिन से भी अधिक समय तक चलने वाले इस मेले के दौरान विजयश्री रंगमंच पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम होते हैं। लेकिन इस बार आचार संहिता के नाम पर कोटा नगर निगम प्रशासन ने मेले में होने वाले सभी सांस्कृतिक कार्यक्रमों से तौबा कर ली है। यहां तक कि पूर्व में जो थोड़े से कार्यक्रम तय किए गए थे, उन्हें भी अब धन की कमी का बहाना बनाकर आयोजित करने में आनाकानी की जा रही है।
कोटा दशहरा मेला के आयोजन को लेकर प्रशासनिक तंत्र की लापरवाही मीडिया के निशाने पर आने के बाद 12 दिन पहले 13 अक्टूबर को कोटा नगर निगम की ओर से आनन-फानन में सरकारी स्तर पर यहां होने वाले कार्यक्रमों की तिथिवार फेहरिस्त जारी कर दी गई थी, लेकिन कुछ घंटों में ही निगम आयुक्त के कार्यक्रमों में फेरबदल की संभावना जताए जाने के साथ यह सूची वापस ले ली गई।
कुछ दिन पहले सर्वाधिक लोकप्रिय अखिल भारतीय कवि सम्मेलन, सिने संध्या, राजस्थानी कवि सम्मेलन के बिना कार्यक्रम की सूचना दी गई, तो लोगों में गुस्सा फ़ूट पड़ा। खासतौर से कवि सम्मेलनों के आयोजन नहीं होने पर लोगों सहित साहित्यकारों, काव्य प्रेमियों ने गहरी नाराजगी जताई। अब सूचना आई है कि बरसों से श्रीराम श्रीराम रंगमंच का आकर्षण रहे बॉडी बिल्डिंग, कुश्ती, वुशू प्रतियोगिता भी बजट नहीं होने का बहाना करके आयोजित करने में आनाकानी की जा रही है।
बुराई पर अच्छाई के प्रतीक माने जाने वाले दशहरा त्यौहार के समय आयोजित होने वाले मेले की मौजूदा खामियों, बुराइयों का ठीकरा भले ही आदर्श आचार चुनाव संहिता के माथे फ़ोड़ा जा रहा हो लेकिन सच्चाई यह है कि पूर्व में भी आचार संहिता के दौरान दशहरा मेला सफलतापूर्वक आयोजित होता रहा है। इसके पहले कभी भी इस तरह से मेले के सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन में कटौती नहीं की गई है।