सहकारी समितियां उप रजिस्ट्रार ने ईश्वर सिंह को निर्वाचन के लिए अयोग्य करार दिया
कोटा। उप रजिस्ट्रार सहकारी समितियां कोटा ने तीन संतान प्रमाणित मानकर पूर्व मंत्री एवं संचालक ईश्वर सिंह की शिक्षा सहकारी के संचालक मण्डल में निर्वाचित सदस्य के पद से सदस्यता खारिज कर दी है। उप रजिस्ट्रार ने ईश्वर सिंह को निर्वाचन के लिए अयोग्य करार दिया है।
मामले के अनुसार शिक्षक एवं सहकार नेता प्रकाश जायसवाल ने शिक्षा सहकारी के गत फरवरी माह में सम्पन्न चुनाव में ईश्वर सिंह तथा उनकी पत्नी व पूर्व अध्यक्ष श्रीमती संध्या राठौड़ के तीन संतान होने के उपरान्त भी नियम विरूद्ध निर्वाचन प्रक्रिया में भाग लेने की शिकायत की थी।
उनका कहना था कि ईश्वर सिंह और संध्या राठौड़ का निर्वाचन राजस्थान सहकारी सोसायटी अधिनियम 2001 की धारा 28 (10) के अन्तर्गत अवैध है , इस संबंध में जायसवाल ने धारा 58 के अंतर्गत ईश्वर सिंह पुत्र रतन सिंह व संध्या राठौड़ पत्नी ईश्वर सिंह के विरुद्ध मध्यस्थ वाद अधिनियमान्तर्गत कार्यवाही करने बाबत वाद प्रस्तुत किया था जिस पर उप रजिस्ट्रार सहकारी समितियाँ गोविन्द प्रसाद लड्ढा ने राजस्थान सहकारी सोसायटी अधिनियम 2001 की धारा 58 (2) (ग) के तहत स्वीकार कर व 60 (1) (क) में वर्णित प्रावधान के अनुसार वैधानिक परीक्षण कर दोनों पक्षों को सुना।
परीक्षण के बाद उप रजिस्ट्रार गोविन्द प्रसाद लड्ढा ने राजस्थान सहकारी सोसायटी अधिनियम 2001 की धारा 60 (1) (क) के अन्तर्गत शक्तियों का प्रयोग करते हुए ईश्वर सिंह को राजस्थान सहकारी सोसायटी अधिनियम 2001 की धारा 28 (10) मे वार्णित प्रावधानों के अन्तर्गत दिनांक 10.07.1995 के उपरान्त तीन संताने होना प्रमाणित पाया गया है , जिसके कारण शिक्षा विभाग कर्मचारीगण सहकारी सभा लि0 696 / आर कोटा के निर्वाचन में भाग लेने के लिए र्नियोग्य करार देकर संस्था के संचालक मण्डल में निर्वाचित सदस्य के पद की सदस्यता खारिज कर दी है।
कहां-कहां पापड़ नहीं बेले जायसवाल ने
तीसरी संतान की जानकारी जुटाने के लिए प्रकाश जायसवाल ने कहां-कहां पापड़ नहीं बेले , उन्होंने कोटा शहर में निवासरत ईश्वर सिंह के भाई , बहन एवं पापा के पुश्तेनी मकान के भाग की मतदाता सूचियां कंगाली , बारां जिले के मोठपुर स्थित गांव की मतदाता सूचियां खंगाली मोहल्ले , परिचितों एवं रिश्तेदारों से जानकारी जुटाने की कोशिश हुई लेकिन सफलता नहीं मिली।
कोटा के 3 – 3 विद्यालयों व कई बार दिल्ली गाजियाबाद के कॉलेज से जानकारी जुटाने की कोशिश हुई । आखिरकार संध्या राठौड़ के पीहर एवं सिंह के ससुराल हाथी भाटा अजमेर में उनकी सास के जनाधार एवं राशनकार्ड से तीसरी संतान की जानकारी प्राप्त हुई , जिसकी जन्मतिथि के आधार पर रामपुरा सेटेलाइट अस्पताल व शिक्षा विभाग से भी जानकारी जुटाने के प्रयास हुए लेकिन फिर भी तथ्य नही जुट पाए । आखिर एलआईसी एवं नगर निगम कोटा से जन्म संबंधी प्रमाणित तथ्य प्राप्त हुए तब जाकर काम चला ।
हिम्मत नही हारी
ईश्वर सिंह व संध्या राठौड़ के खिलाफ तथ्य जुटाने में प्रकाश जायसवाल को 4 वर्ष से भी अधिक समय व सभी प्रकार की जानकारी जुटाने के लिए कई बार दिल्ली – अज़मेर जाने व तथ्य जुटाने के प्रयास में पैसों की भी खूब बर्बादी हुई लेकिन हिम्मत नही हारी और सफलता प्राप्त की।
स्थगन आदेश के कारण लड़ पाए थे चुनाव
ईश्वर सिंह एवं संध्या राठौड़ को तीन संतान संबंधी प्रकरण में हाईकोर्ट का स्थगन आदेश होने के कारण निर्वाचन अधिकारी को ईश्वर सिंह एवं संध्या राठौड़ को चुनाव लड़ने की अनुमति देनी पड़ी थी जिसमें संध्या राठौड़ को तो चुनाव में मुंह की खानी पड़ी थी लेकिन ईश्वर सिंह संचालक पद पर निर्वाचित हुए थे जिन्हें अब जाना पड़ा ।
चुनाव में धराशाही हुआ था ईश्वर सिंह का पैनल
शिक्षा सहकारी के चुनाव में भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा बना और इसी के चलते संस्था के विसल ब्लोअर प्रकाश जायसवाल के पैनल से 12 में से 10 प्रत्याशी जीते थे जो आज तक के सहकारी के इतिहास में रिकॉर्ड था । सिंह के पैनल से मात्र दो जीते थे जिसमे भी अब एक का निर्वाचन अवैध घोषित हो चुका है।
गद्दी छोड़ो या जेल जाओ अभियान चलाया था
संध्या राठौड़ जब अध्यक्ष पद पर आसीन थी तब जायसवाल ने आखिर में एक वर्ष तक ” गद्दी छोड़ो या जेल जाओ ” अभियान चलाकर खूब जन जागरण किया , उनके भ्रष्टाचार एवं काले कारनामो को उजागर कर अभियान को गति दी जिसे आखिर सफलता हासिल हुई ।
तथ्य छुपाकर चुनाव लड़ते रहे मियां बीबी
ईश्वर सिंह 2001 के बाद से 3 संतानों संबंधी तथ्य छुपाकर चुनाव लड़ते रहे , संचालक बने , मंत्री रहे और 2017 में उनकी पत्नी संध्या राठौड़ संचालक चुनकर अध्यक्ष भी बनी फिर 2023 के चुनाव में दोनों ही मिया बीबी चुनाव लड़े तब तक 3 संतानों संबंधी सबूत प्रकाश जायसवाल ने जुटा लिए, लेकिन कोर्ट के स्थगन आदेश के चलते चुनाव लड़ने में सफल हुए जहां संध्या सहित पैनल के 10 लोगों को हार का मुंह देखना पड़ा था।