सरसों की रेकॉर्ड पैदावार ने विदेशी खाद्य तेलों पर बनाया दबाव, सस्ता हुआ सरसों तेल

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नई दिल्ली। स्थानीय बाजारों में खाद्य तेलों (Edible Oils) की उपलब्धता बढ़ी है। ऐसे में इसके रेट पर भी असर दिखने लगा है। खासकर सरसों तेल (Mustard Oil) की कीमत घट रही है। वहीं, घरेलू खाद्य तेलों ने अंतरराष्ट्रीय खाद्य तेलों की आवक पर दबाव बना दिया है। ऐसा सरसों की रेकॉर्ड पैदावार होने से हुआ है।

मार्च में 16 लाख टन सरसों की पेराई हुई है। दिल्ली वेजिटेबल ऑयल ट्रेडर्स एसोसिएशन के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट सुरेश नागपाल ने बताया कि इस साल देश में करीब 110 लाख टन सरसों की फसल हुई है। वहीं 16 लाख टन सरसों की पेराई पिछले महीने हुई, जिसमें करीब साढ़े 5 लाख टन तेल निकला। इस महीने 11 लाख टन सरसों की आवक हुई है।

हालांकि, अभी मंडियों में उम्मीद के मुताबिक सरसों नहीं आ रही है। इसके पीछे बड़ी वजह यह है कि किसान अभी जरूरत के मुताबिक ही सरसों बेच रहे हैं। उन्हें लगता है कि अभी सरसों का दाम बढ़ेगा, तब ऊंचे रेट में फसल बेचेंगे।

सरसों, सोयाबीन, पामोलीन की पर्याप्त उपलब्धता
नागपाल ने बताया कि देश में सरसों, सोयाबीन, पामोलीन की पर्याप्त उपलब्धता है। क्रूड पाम ऑयल इंडोनेशनिया और मलेशिया से आ रहा है। ब्राजील और अर्जेंटीना से सोयाबीन का तेल आ रहा है। अगले दो-तीन महीने मार्केट में सरसों का प्रेशर रहेगा। हर साल आम लोगों से लेकर ट्रेडर्स भी इन दिनों में सरसों के तेल का स्टॉक करते हैं, क्योंकि तेल लंबे समय तक सही रहता है। सीजन में किफायती दामों में तेल मिल जाता है।

देसी तेल 12-13 रुपये किलो सस्ते
मलेशिया और शिकागो एक्सचेंज में तेजी के कारण सोयाबीन तेल और सीपीओ एवं पामोलीन तेल कीमतों में सुधार आया। सूत्रों ने कहा कि आयातित तेलों के मुकाबले देसी तेल कहीं सस्ते हैं। सरसों तेल, थोक भाव से 148 रुपये किलो में बैठता है। इसका खुदरा भाव अधिकतम 155-160 रुपये लीटर (एक लीटर में 912 ग्राम तेल) से अधिक नहीं बैठना चाहिए। आयातित तेलों के मुकाबले देसी तेल 12-13 रुपये किलो सस्ते हैं। ऐसे में सरकार को अधिकतम खुदरा मूल्य पर अधिक ध्यान और निगरानी रखनी चाहिए, जिससे उपभोक्ताओं को खाद्य तेल वाजिब दाम पर मिले।