संस्कारहीन मनुष्य का जीवन पशु के समान है: स्वामी घनश्यामाचार्य

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कोटा। जगद्गुरू रामानुजाचार्य झालरिया मठ डीडवाना के पीठाधीश्वर स्वामी घनश्यामाचार्य महाराज के कोटा प्रवास के दौरान चौथे दिन भी कई कार्यक्रम हुए।
शुरुआत आरती अर्चना एवं दर्शन के साथ हुई। इन्द्रविहार में एलन परिवार के निवास कृष्णायन स्थित संत निवास पर हुई आरती अर्चना में बड़ी संख्या में भक्त पहुंचे। महाराज के दर्शन लाभ के साथ ही आरती में शामिल हुए।

रविवार को अपने प्रवचनों में स्वामीजी ने कहा कि संस्कारों के बिना जीवन निरर्थक है। संस्कारहीन मनुष्य पशु के समान है। आज के युग में संस्कारों का हनन हो रहा है। यही कारण है कि कई विकृत उदाहरण हमारे सामने आ रहे हैं। बच्चों में संस्कार की कमी के चलते ही सब उलट-पुलट हो रहा है। इसलिए माता-पिता का कर्तव्य है कि वे अपने बच्चों को संस्कारवान होने की शिक्षा दें।

माता-पिता जैसे कृत्य करेंगे, बच्चों में वैसे ही संस्कार आएंगे। संस्कारों का बीजारोपण बचपन में ही हो सकता है। बच्चा एक कच्ची मिट्टी के समान होता है। उसी समय उसमें संस्कार डाले जा सकते हैं। यदि अच्छे संस्कार देंगे तो बेहतर समाज देने में हमारा योगदान होगा। अनुशासित जीवन के उदाहरण देखने को मिलते हैं। उन्होंने प्रसाद का महत्व भी बताया और कहा कि भगवान का प्रसाद यदि श्रद्धापूर्वक पाया जाए तो असर देखने को मिलता है। वो हमारे जन्म-जन्मांतरों के पापों को नष्ट कर देता है।