सैकड़ों बालकों के हुए जैनत्व उपनयन संस्कार, व्यसन त्याग का लिया संकल्प

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जीवन में संस्कार कभी निष्फल नहीं होते: आदित्य सागर महाराज

कोटा। Jaintav Upnayan Sanskar : चंद्र प्रभु दिगंबर जैन समाज समिति की ओर से जैन मंदिर ऋद्धि-सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में रविवार को आदित्य सागर मुनिराज ने के सानिध्य में जैनत्व उपनयन संस्कार का आयोजन किया गया।

चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज आदित्य ने बताया कि संस्कार में सैकड़ो बालक-बालिकाओं ने हिस्सा लिया और संस्कार कार्य पूर्ण करने के साथ आजीवन व्यसनों के त्याग और धार्मिक जीवन जीने के संकल्प दिलाए गए।

इन बच्चों को मुनिसंघ द्वारा शास्त्रोक्त क्रियाओं से संस्कारित किया गया तथा उन्हें व्यसनों का त्याग, गुटखा-तम्बाकू आदि नशीले पदार्थों का त्याग, प्रतिदिन देव दर्शन, प्रतिदिन अभिषेक पूजन, गुरू,माता-पिता व त्यागी वृत्तियों की जीवन पर्यन्त सेवा आदि नियम व संकल्प दिलाए गए।

ऋद्धि-सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा व सचिव पंकज खटोड़ ने बताया कि इस अवसर पर बालकों के कैश लोचन के बाद सर पर स्वास्तिक बनाकर उपनयन संस्कार प्रदान किया गया। बच्चों को जीवन पर्यंत निम्न नियमों का पालन करने का संकल्प भी दिलाया। इस अवसर पर अप्रमित सागर और मुनि सहज सागर महाराज संघ का सानिध्य भी प्राप्त हुआ।

गुरुदेव आदित्य सागर महाराज ने अपने प्रवचन में जीवन में संस्कारों के महत्व, अनुशासन, विद्या और धार्मिक नियमों के पालन पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि जीवन में संस्कार का बड़ा महत्व है। संस्कार कभी निष्फल नहीं होते, बल्कि जैसे-जैसे व्यक्ति की विशुद्धि (पवित्रता) बढ़ती है, संस्कार के परिणाम सामने आते हैं।

सरस्वती (विद्या) और लक्ष्मी (धन) का विशेष संबंध है। जिनके पास विद्या होती है, धन अपने आप उनके पास आता है। तीर्थंकरों के पास सरस्वती और लक्ष्मी दोनों होती हैं। नियम और अनुशासन: बच्चों को दिए गए नियमों को जीवनभर निभाने का महत्व बताया गया। यह कहा गया कि इन नियमों के पालन से व्यक्ति स्वर्ग में देवता बन सकता है।

संस्कार विधि: प्रवचन के दौरान संस्कार की विधि और इससे जुड़े अनुभवों का वर्णन किया गया। बताया गया कि संस्कार विधि से बच्चों में धीरज, गंभीरता, और चौतरफा विकास होता है। यह संस्कार किसी को दीक्षा मार्ग पर ले जा सकते हैं और किसी को सम्यक दृष्टि प्रदान कर सकते हैं।

विशुद्धि का महत्व: जिन्होंने संस्कार के समय विशुद्धि बनाए रखी है, उनका विकास होगा। माता-पिता को अपने बच्चों को संस्कारों से अभिभूत करने की सलाह दी गई।

गोद भराई और मुख शुद्धि विधि: प्रवचन के अंत में गोद भराई और मुख शुद्धि की विधि के बारे में बताया गया। बच्चों को सूखे मेवे और श्रीफल दिए गए, जिसमें श्रीफल को अगले दिन मंदिर में चढ़ाना होगा। मंच संचालन पारस कासलीवाल एवं संजय सांवला ने किया।

इस अवसर पर सकल दिगम्बर जैन समाज के अध्यक्ष विमल जैन नांता, चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज आदित्य, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा, ऋद्धि-सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़, कोषाध्यक्ष ताराचंद बडला, पारस कासलीवाल, पारस लुहाड़िया, दीपक नान्ता, पीयूष बज, दीपांशु जैन, राजकुमार बाकलीवाल, जम्बू बज, महेंद्र गोधा, पदम बाकलीवाल, अशोक पापड़ीवाल सहित कई शहरों के श्रावक उपस्थित रहे।