हर व्यक्ति को अपनी श्रद्धा व विश्वास का ही प्रतिफल मिलता है: आदित्य सागर महाराज

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कोटा। जबतक तुझसे काम है, तब तक तेरा नाम है। वरना दूर से ही राम-राम है। मनुष्य को दो ही चीजों पर विश्वास करना चाहिए। एक स्वयं व दूसरे परमात्मा पर। क्योंकि बाकी सबका धोखा देना निश्चित है। मनुष्य अच्छे दिनों में भगवान पर भरोसा रखता है और समय खराब होने या मुरादें पूरी न होने पर भगवान से ही आस्था उठा लेता है। यह बात आदित्य सागर मुनिराज ने दिगंबर जैन मंदिर त्रिकाल चौबीसी आरकेपुरम में आयोजित नीति प्रवचन में कही।

अध्यक्ष अंकित जैन व मंत्री अनुज जैन ने बताया कि अध्यात्म विशुद्ध ज्ञान पावन वर्षायोग में आदित्य सागर मुनिराज ने अपने ज्ञान की वर्षा प्रवचनों के माध्यम से भक्तों पर की। इस अवसर पर अप्रमित सागर और मुनि सहज सागर महाराज संघ का सान्निध्य भी प्राप्त हुआ।

पंचकल्याणक महामहोत्सव नवंबर में
चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम पाटनी ने बताया कि आदित्य सागर महाराज ने अपने गुरुवर के संदेश पर 9 से 14 नवंबर के मध्य ऋद्धि-सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में पंचकल्याणक महामहोत्सव आयोजित करने का निर्णय लिया है। गुरुदेव आदित्य सागर ने समिति के सचिव पारस बज व मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा को निर्देशित करते हुए सभी तैयारियां करने का आदेश दिया और कहा कि कोटा का पंचकल्याणक इस बार सबसे भव्य व ऐतिहासिक होगा। उन्होंने मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा से कहा कि आप कोटा से सभी मंदिरों को कुन्हाड़ी आने का अवसर प्रदान करें। चाहे वेदी बड़ी करनी पड़ जाए, परंतु कोई निराश नहीं जाना चाहिए।

हाथी पालने के समान है, विश्वास व रिश्ते निभाना
गुरुदेव ने अपने प्रवचन में कहा कि विश्वास बनाना एक बार आसान है। परंतु विश्वास को बनाए रखना बहुत कठिन है। रिश्ते व विश्वास बनाने में जिंदगी लग जाती है। संसार में विश्वास व रिश्ते हाथी पालने के समान हैं। हमें दुनिया पर नहीं स्वयं व परमात्मा पर विश्वास करना है। दुनिया की सबसे बहुमूल्य वस्तु विश्वास है, इसलिए सोच-समझकर विश्वास करें। श्रद्धा व समर्पण का प्रतिफल होता है विश्वास। उन्होंने आज के समय में किसी की गारंटी लेने से बचने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि विपरीत परिस्थितियों में आदमी रोता है और जब कोई उसे पैसे देकर मदद करता है तो समय सही होने पर पैसे देने वाला वसूली के लिए बार-बार रोता है।

बालक के समान हो विश्वास
गुरुदेव ने उदाहरण देते हुए कहा कि 2 फीट के बालक को जब पिता 8 फीट तक उछाल देते हैं तो भयभीत होने के स्थान पर प्रसन्नता से खिल जाता है। क्योंकि उसे विश्वास है कि पिता गिरने नहीं देंगे। हमें भी परमात्मा पर ऐसा ही विश्वास कायम रखना होगा। यदि इतना विश्वास परमात्मा पर होगा तभी कल्याण संभव है। हर व्यक्ति को अपनी श्रद्धा व विश्वास का ही प्रतिफल मिलता है परंतु मनुष्य अपेक्षा व प्रतिफल के भाव से भगवान की पूजा करता है। वह इच्छापूर्ति के लिए धन दान, छतरी लगाने के प्रलोभन देने से भी नहीं चूकता है। परंतु मनुष्य को निरपेक्ष भाव से श्रद्धा रखनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अपेक्षा भाव को समाप्त कर गुरु व परमात्मा पर समर्पित हो जाएं। मनुष्य की शंका व इच्छा ही ईश्वर से दूर ले जाती है।

इस अवसर पर सकल समाज से अध्यक्ष विमल जैन नांता, कार्याध्यक्ष जे के जैन, मंत्री विनोद जैन टोरडी, चातुर्मास समिति से टीकम पाटनी, पारस बज, राजेंद्र गोधा, आरकेपुरम मंदिर समिति से अंकित जैन, अनुज जैन पदम जैन, लोकेश बरमुंडा, चंद्रेश जैन, प्रकाश जैन सहित कई लोग उपस्थित रहे।