गुण ग्रहीता के लिए मनुष्य को अपने अहंकार को छोड़ना पडेगा: आदित्य सागर महाराज

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कोटा। चंद्र प्रभु दिगम्बर जैन समाज समिति की द्वारा श्रमण श्रतुसंवेगी आदित्य सागर मुनिराज संघ के भव्य चातुर्मास जैन मंदिर रिद्धि-सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में हुआ। प्रथम दिन अध्यात्म विशुद्ध ज्ञान पावन वर्षायोग में आदित्य सागर मुनिराज ने अपने ज्ञान की वर्षा भक्तों पर की। इस अवसर पर अप्रमित सागर और मुनि सहज सागर महाराज संघ का सानिध्य भी प्राप्त हुआ।

गुरुदेव ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि जीवन में गुरु का विशेष महत्व होता है। हर व्यक्ति को अपने जीवन में गुरू बनाना चाहिए। परन्तु का चयन ज्ञान के आधार पर होना चाहिए। उन्होने कहा कि जब आप सब्जी लेने जाते हैं, तो उसके गुणों को देखते हैं। सोने की शुद्धता हॉलमार्क के आधार पर करते हो, मंदिर में मार्बल उच्च कोटि का लगवाते हैं, तो जब गुरु चयन की बात आए तो ज्ञान के आधार पर गुरू का चयन हो।

गुरू ज्ञानबली होते हैं, उन्हें समसामयिक सहित भूतकाल सभी बातों का ज्ञान होना चाहिए। ताकि गुरु की गरिमा हमेशा बनी रही। गुरुदेव ने कहा कि इंसान को गुणग्राही बनना चाहिए। जीवन में छोटे से बड़े इंसान से जहां से भी गुण मिले उन्हें ग्रहण करें। उन्होंने कहा कि गुण तो चींटी से कुत्ते तक से सीखे जा सकते हैं। गुण तो चेतन व अचेतन वस्तुओं से भी ग्रहण किए जा सकते हैं । गुण ग्रहीता लाने के लिए मनुष्य को अपने अहंकार को छोड़ना पडेगा।

इस अवसर पर अतिरिक्त पुलिस अधिक्षक अंकित जैन, सकल जैन समाज के अध्यक्ष विमल जैन नांता, कार्याध्यक्ष जेके जैन, राजमल पाटोदी, रिद्धि-सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष, राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खरोड़, चातुर्मास समिति अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, पारस बज, पारस कासलीवाल, संजय लुहाडिया, पारस बज, पारस लुहाडिया,अशोक सांवला सहित कई लोग उपस्थित रहे और अमृत ज्ञान वाणी का रसपान करते रहे।