नई दिल्ली। REPO Rate: मजबूत आर्थिक वृद्धि और महंगाई घटने के साथ आरबीआई पर रेपो दर में कटौती का दबाव बढ़ने लगा है। केंद्रीय बैंक की ब्याज दर निर्धारण समिति के बाहरी सदस्य जयंत आर वर्मा लंबे समय से रेपो दर में कम-से-कम 0.25 फीसदी की कटौती की वकालत कर रहे हैं। अब समिति की दूसरी बाहरी सदस्य आशिमा गोयल भी इस मांग में शामिल हो गई हैं। हालांकि, आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास समेत चार सदस्यों ने प्रमुख नीतिगत दर को 6.5 फीसदी पर यथावत रखने के पक्ष में मतदान किया।
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने शुक्रवार को मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के फैसले की जानकारी देते हुए कहा, महंगाई को लक्ष्य के अनुरूप होना चाहिए। खुदरा महंगाई एक बार जब चार फीसदी पर आ जाए तो इसे वहीं रहना चाहिए। हमें जब भरोसा हो जाएगा कि यह चार फीसदी पर स्थिर रहेगी और आगे नहीं बढ़ेगी, तभी हम रेपो दर में कटौती के बारे में सोचेंगे। जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक दरों के मोर्चे पर कोई कार्रवाई नहीं होगी।
दास ने कहा, वृद्धि और महंगाई का सफर उम्मीदों के अनुरूप आगे बढ़ रहा है। लेकिन, यह चार फीसदी की तरफ यात्रा का अंतिम पड़ाव है, जो सबसे मुश्किल और पेचीदा होगा। उन्होंने अमेरिकी फेडरल रिजर्व के फैसलों से आरबीआई के नीतिगत कदम को अलग रखे जाने पर कहा, फेड रिजर्व के ब्याज घटाने पर भी आरबीआई रेपो दर में कटौती नहीं कर सकता है।
आरबीआई के अनुमानों के मुताबिक, खुदरा महंगाई दिसंबर तिमाही में 3.8 फीसदी पर आई है, लेकिन बाद में फिर से बढ़कर पांच फीसदी पर पहुंच रही है। उधर, दरों में कटौती की वकालत करने वाले दोनों सदस्यों वर्मा और गोयल की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब स्विट्जरलैंड, स्वीडन, कनाडा और यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं के कुछ केंद्रीय बैंक 2024 में दरों में ढील देने की शुरुआत कर चुके हैं।
आरबीआई ने कहा, बैंकों को कर्ज और जमा वृद्धि के बीच लगातार बने अंतर का खत्म करने के लिए अपनी कारोबारी रणनीति में नए सिरे से बदलाव करने की जरूरत है। जरूरत पड़ी तो बिना गारंटी वाले यानी असुरक्षित कर्ज में वृद्धि को कम करने के लिए आगे भी कदम उठाए जा सकते हैं। केंद्रीय बैंक ने नवंबर, 2023 में असुरक्षित खुदरा कर्ज अत्यधिक वृद्धि और बैंक वित्तपोषण पर गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की अत्यधिक निर्भरता को लेकर चिंता जताई थी। दास ने कहा, आरबीआई वित्तीय क्षेत्र, विशेषकर बैंकों के हर पहलू पर नजर रख रहा है। जब भी कुछ और उपायों की जरूरत होगी, हम कदम उठाएंगे।
सोने का और मतलब न निकालें
दास ने कहा, आरबीआई ब्रिटेन से 100 टन सोना भारत लाया है, क्योंकि देश में पर्याप्त भंडारण क्षमता है। इसका कोई और मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए। 1991 में विदेशी मुद्रा संकट से निपटने के लिए सोने के बड़े हिस्से को गिरवी रखने के लिए तिजोरियों से बाहर निकाला गया था। हाल के वर्षों के आंकड़े बताते हैं कि आरबीआई अपने भंडार के हिस्से के रूप में सोना खरीद रहा है और इसकी मात्रा बढ़ रही है। इसलिए, ब्रिटेन से सोना लाकर भारत में रखने का फैसला लिया गया। भारत में 100 टन सोना वापस आने से स्थानीय भंडार में पड़े स्वर्ण की मात्रा बढ़कर 408 टन से अधिक हो गई है। यानी स्थानीय और विदेशी होल्डिंग अब लगभग बराबर है।
फेमा को युक्तिसंगत बनाने का प्रस्ताव
कारोबार सुगमता बढ़ाने के लिए आरबीआई ने विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा)-1999 के तहत वस्तुओं-सेवाओं के निर्यात और आयात के लिए दिशानिर्देशों को युक्तिसंगत बनाने का प्रस्ताव किया है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार में बदलाव को देखते हुए यह फैसला लिया गया है। इससे न सिर्फ कारोबार करना आसान होगा बल्कि अधिकृत डीलर बैंक अधिक जुझारू क्षमता से परिचालन कर सकेंगे। मसौदा जल्द जारी किया जाएगा।