13 और 200 पॉइंट रोस्टर प्रणाली क्या है, जानिए

0
1313

नई दिल्ली।बीते कुछ वक्त से 13 पॉइंट रोस्टर को लेकर काफी विवाद और विरोध चल रहा था, जिसे देखते हुए केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर अब उसके बजाय 200 पॉइंट रोस्टर को अनुमति दे दी है। आखिर 13 पॉइंट रोस्टर पर क्यों बवाल हो रहा था? 13 पॉइंट और 200 पॉइंट रोस्टर में क्या फर्क है? यहां विस्तारपूर्वक समझिए:

सबसे पहले तो यह जानना ज़रूरी है कि आखिर रोस्टर क्या है। अमूमन ऑफिस में काम करने वाले लोगों ने यह शब्द अक्सर सुना होगा। इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे कि शिफ्ट चार्ट, ड्यूटी चार्ट या फिर रोस्टर, लेकिन इस शब्द के और भी मायने हैं। रोस्टर दरअसल एक तरीका होता है जिससे यह निर्धारित किया जाता है किसी विभाग में निकलने वाली वेकंसी किस वर्ग को मिलेगी। मसलन आरक्षित वर्ग या फिर अनारक्षित वर्ग।

13 पॉइंट रोस्टर सिस्टम
13 पॉइंट रोस्टर एक ऐसा सिस्टम है जिसमें 13 नियुक्तियों को क्रमबध तरीके से दर्ज किया जाता है। इसमें विश्वविद्यालय को इकाई (यूनिट) न मानकर विभाग को इकाई माना जाता है। यानी इस व्यस्था के तहत शिक्षकों के कुल पदों की गणना विश्वविद्यालय या कॉलेज के अनुसार न करके विभाग या विषय के हिसाब से की जाती है।

मान लीजिए कि किसी विभाग में 4 वेकंसी निकली हैं तो उसमें से पहली तीन वेकंसी जनरल यानी अनारक्षित वर्ग के लिए होंगी जबकि चौथी वेकंसी ओबीसी या आरक्षित वर्ग के लिए होगी। इसके बाद जब अगली वेकंसी आएंगी तो वे 5 से काउंट होंगी।

यानी पांचवी और छठी वेकंसी अनारक्षित वर्ग के लिए तो सातवां अनुसूचित जाति के लिए। इसी तरह फिर आठवीं, नौवीं और दसवीं वेकंसी अनारक्षित (सामान्य वर्ग) के लिए तो 12वीं वेकंसी ओबीसी के लिए। यह क्रम 13 तक ही चलेगा और 13 के बाद फिर से 1 नंबर से शुरू हो जाएगा।

200 पॉइंट रोस्टर को समझें:
मान लीजिए कि इस सिस्टम में अगर कैटिगरी के हिसाब से पदों का विभाजन करना हो तो संख्या 200 तक जाएगी। इसके बाद यह फिर से 1,2,3,4 संख्या से शुरू हो जाएगी। अब जब आंकड़ा 200 तक जाएगा तो ज़ाहिर है कि इसमें आरक्षित वर्ग (एससी, एसटी और ओबीसी) के लिए वेकंसी ज़रूर आएंगी। जबकि 13 पॉइंट रोस्टर प्रणाली में ऐसा हो पाना संभव नहीं है।

ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें विश्वविद्यालय के बजाय विभाग को यूनिट बनाया गया, जिसकी वजह से 13 की संख्या में वेकंसी निकलना भी मुश्किल होता है। 13 पॉइंट रोस्टर सिस्टम के आने से आरक्षित वर्ग के लिए सीटें कम हो गईं। और तो और इस सिस्टम के तहत विश्वविद्यालय को यूनिट मानने के बजाय विभाग को यूनिट मान लिया गया। ऐसी स्थिति में कभी एक साथ इतनी वेकंसी आएंगी ही नहीं।