बूंदी। शहर की सड़कों पर ग्लूकोज की बोतल लटकाए इलाज की तलाश में भटक रही निरमा मीणा की तस्वीर यह बताने के लिए काफी है कि कोरोनाकाल में सरकारी अस्पतालों में भी चिकित्सा व्यवस्था इस कदर सड़क पर आ गई है। लुहारपुरा गांव की इस महिला की अचानक तबीयत बिगड़ने पर पहले खटकड़ कस्बे के सरकारी अस्पताल ले जाकर भर्ती कराया गया, पर तबीयत ज्यादा खराब होने पर जिला अस्पताल में रैफर कर दिया।
जिले के सबसे बड़े अस्पताल की चौखट पर आने के बाद भी उसे भर्ती नहीं किया गया। अस्पताल में फिजिशियन डॉक्टर नहीं था। इस कारण वह इलाज के लिए फिजिशियन के घर की तलाश में पैदल भटकती रही। आखिरकार 3 घंटे भटकने के बाद शाम 5 बजे फिजिशियन के घर पर इलाज शुरू हुआ। अमूमन ऐसी तस्वीरें अस्पताल के अंदर नजर आती हैं। स्ट्रेचर नहीं होने से परिजन मरीजों को ग्लूकोज की बोतल हाथों में लेकर जाते दिखते हैं, लेकिन यह तस्वीर शहर के कोटा रोड की है।
ड्रिप पकड़े चल रही राेगी के साथ की महिला ने बताया कि उसे सुबह अचानक शरीर में घबराहट होने लगी। घरवाले सुबह 11:30 बजे खटकड़ अस्पताल लेकर पहुंचे, जहां डॉक्टरों ने भर्ती कर ड्रिप चढ़ा दी। एक-डेढ़ घंटे तक भी आराम नहीं मिला। तबीयत ज्यादा खराब होती जा रही थी तो वहां से डॉक्टरों ने बूंदी भेज दिया। दोपहर 2:10 बजे कोई साधन कर जिला अस्पताल पहुंचे। आउटडोर में ड्यूटी डॉक्टर का कहना था कि वो कान, नाक, गले का डॉक्टर है। फिजिशियन को दिखाओ। अभी कोई भी फिजिशियन अस्पताल में नहीं है, उनके घर जाओ। दोनों पैदल-पैदल कोटा रोड पर और फिर वहां से 2 किमी दूर नैनवां रोड स्थित फिजिशियन डॉ. भोलाशंकर मीणा के घर 2:55 पर पहुंची। महिला की हालत देखकर डॉक्टर ने जांचें लिख दी।
गंभीर हालत में 3:20 बजे प्राइवेट क्लिनिक पर जांचें करवाने पहुंची। महिला की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह दो कदम भी आसानी से चल सके। घबराहट काफी तेज हो रही थी। करीब 50 मिनट बाद जांच रिपोर्ट मिली। फिर वापस डॉक्टर भोलाशंकर के घर पहुंची। तबीयत और ज्यादा खराब होने लगी तो घर पर ही ट्रीटमेंट शुरू किया गया।