नई दिल्ली। देश की आर्थिक वृद्धि की गति और धीमी पड़ सकती है क्योंकि अर्थव्यवस्था के समक्ष मौजूद संरचनात्मक मुद्दों का कोई त्वरित समाधान नहीं दिखाई देता है। ऐसा एक रिपोर्ट में यह कहा गया है। डन एंड ब्रॉडस्ट्रीट इकोनॉमी आब्जर्वर के अनुसार औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) की वृद्धि में नरमी बने रहने की आशंका है क्योंकि विनिर्माण क्षेत्र को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
इससे जुड़े मसलों को सुलझाने में समय लगेगा। रिपोर्ट के अनुसार आईआईपी के नरम बने रहने की आशंका है और इसमें जुलाई में 2.5 से 3 प्रतिशत की ही वृद्धि हो सकती है। एजेंसी की खबरों के मुताबिक डन एंड ब्रॉडस्ट्रीट ने कहा कि सरकार के राजकोषीय प्रोत्साहन और रिजर्व बैंक द्वारा नीतिगत दरों में कटौती के साथ अन्य कदमों से कंपनियों को कुछ राहत मिलने की उम्मीद है।
हालांकि, क्षेत्रीय स्तर पर विभिन्न मुद्दों के समाधान के लिए व्यापक सुधार पैकेज की जरूरत होगी। डन एंड ब्रॉडस्ट्रीट इंडिया के मुख्य अर्थशास्त्री अरुण सिंह ने कहा, ‘वैश्विक और घरेलू अर्थव्यवस्था के समक्ष कई मसले हैं और इसके कारण देश की आर्थिक वृद्धि दर में और गिरावट आ सकती है। क्षेत्रवार स्तर पर संरचनात्मक मुद्दों का कोई त्वरित समाधान नहीं है। इसलिए वृद्धि की स्थिति में तुंरत बदलाव की संभावना नहीं है।’
सरकार को करने होंगे व्यापक उपाय
सिंह ने कहा कि अर्थव्यवस्था के विभिन्न खंडों के लिए सरकार के व्यापक उपायों और उपयुक्त हस्तक्षेप की जरूरत है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इससे ग्राहकों की धारणा को सुधारने में मदद मिलेगी और निजी निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा। उल्लेखनीय है कि सरकार ने शुक्रवार को विदेशी और घरेलू शेयर निवेशकों पर लगाए गए बढ़े अधिभार को वापस लेने, स्टार्टअप को एंजल कर से छूट, वाहन क्षेत्र में संकट के समाधान के लिये पैकेज और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिये 70,000 करोड़ रुपए की पूंजी डालने की घोषणा की।
रोजगार सृजन के बिना नहीं सुधरेगी स्थिति
साथ ही खपत बढ़ाने के लिए सरकार ने यह भी कहा कि बैंकों ने ब्याज दर में कटौती का निर्णय किया है। इससे मकान, वाहन और अन्य कर्ज सस्ते होंगे। उन्होंने कहा कि बड़े स्तर पर रोजगार सृजित हुए बिना, आय का असमान वितरण और आबादी के बड़े हिस्से का मानसून पर आश्रित होने से खपत को बढ़ाने में मदद नहीं मिलेगी। कीमत के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि कमजोर आर्थिक गतिविधियों के साथ मांग में नरमी तथा जिंसों के कम दाम से मुद्रास्फीति नरम रह सकती है।