-दिनेश माहेश्वरी
कोटा। वल्लभ के सप्त उपपीठों में प्रथम स्थान कोटा के मथुरेश जी का है। कोटा के पाटनपोल में भगवान मथुराधीश जी का मंदिर है। भगवान कृष्ण का स्वरूप है। इसी कारण यह नगर वैष्णव सम्प्रदाय का प्रमुख तीर्थ है। प्रधानपीठ मथुरेश जी कोटा में होने के कारण वल्लभ सम्प्रदाय के लोगों के इसके प्रति नाथद्वारा के समान ही श्रद्धा है।
वल्लभ के सप्त उपपीठों में प्रथम स्थान कोटा के मथुरेश जी का है। कोटा के पाटनपोल में भगवान मथुराधीश जी का मंदिर है। भगवान कृष्ण का स्वरूप है। इसी कारण यह नगर वैष्णव सम्प्रदाय का प्रमुख तीर्थ है। प्रधानपीठ मथुरेश जी कोटा में होने के कारण वल्लभ सम्प्रदाय के लोगों के इसके प्रति नाथद्वारा के समान ही श्रद्धा है।
इतिहासविद फिरोज अहमद के अनुसार मथुराधीश प्रभु का प्राकट्य मथुरा जिले के ग्राम करणावल में फाल्गुन शुक्ल एकादशी संवत 1559 विक्रमी के दिन संध्या के समय हुआ था। महाप्रभु वल्लभाचार्य यमुना नदी के किनारे उस दिन संध्या समय संध्योवासन कर रहे थे। तभी यमुना का एक किनारा टूटा और उसमें से सात ताड़ के वृक्षों की लम्बाई का एक चतुर्भुज स्वरुप प्रकट हुआ।
महाप्रभु जी ने उस स्वरुप के दर्शन कर विनती की कि इतने बड़े स्वरुप की सेवा कैसे होगी । इतने में 27 अंगुल मात्र के होकर श्री महाप्रभु, वल्लभाचार्य की गोद में विराज गये। इसके पश्चात् महाप्रभु के उस स्वरुप को वल्लभाचार्य ने एक शिष्य पद्यनाभ दास को सेवा करने हेतु दे दिया ।
कुछ वर्षों तक सेवा करने के पश्चात् वृद्धावस्था होने के कारण मथुराधीश जी को पद्यनाभ दास ने महाप्रभु जी के पुत्र गोस्वामी विट्ठलनाथ जी को पधरा दिया । विट्ठलनाथ के सात पुत्र थे। उनमें ज्येष्ठ पुत्र गिरधर को मथुराधीश प्रभु को बंटवारे में दे दिया।
सन 1729 विक्रमी के समय मुग़ल शासक औरंगजेब के मंदिर तोड़ों अभियान के कारण बज्रभूमि के सभी स्वरुप रवाना होकर हिन्दू राजाओं के राज्य में चले आये। अतः मथुराधीश के प्रभु संवत 1727 में हाड़ा राजाओं के राज्य बूंदी शहर में पधारे और बूंदी शहर के बालचंद पाडा मोहल्ले में करीब 65 वर्ष विराजे।
संवत 1795 में कोटा के महाराज दुर्जनशाल जी ने प्रभु को कोटा पधराया, कोटा नगर में पाटन पोल द्वार के पास प्रभु का रथ रुक गया तो तत्कालीन आचार्य गोस्वामी गोपीनाथ ने आज्ञा दी कि प्रभु की यहीं विराजने की इच्छा है।
तब कोटा राज्य के दीवान द्वारकादास ने अपनी हवेली को गोस्वामी जी के सुपुर्द कर दी। गोस्वामी ने उसी हवेली में कुछ फेर बदल कराकर प्रभु को विराजमान किया । तब से अभी तक इसी हवेली में विराजमान है। यहाँ वल्लभ कुल सम्प्रदाय की रीत के अनुसार सेवा होती है।
मथुराधीश जी का इतिहास श्रद्धालुओं तक पहुंचे। इसलिए वीडियो के माध्यम से आप तक पहुँचाने का प्रयास किया है। इस वीडियो के प्लेबैक में वरिष्ठ पत्रकार दिनेश माहेश्वरी की आवाज है । (देखिए वीडियो)