नई दिल्ली। अमेरिका ने भारत को ऐसे देशों की सूची में डाल दिया है जिनकी फॉरेन एक्सचेंज पॉलिसी पर उसे शक है। इस सूची में उसने भारत के अलावा चीन सहित चार और देशों को डाला है। अमेरिकी ट्रेजरी ने कहा, ‘निगरानी सूची’ में उन बड़े व्यापार साझीदारों को रखा गया है, जो अपनी मुद्रा नीतियों को ज्यादा तरजीह देते हैं।
भारत के अलावा इस सूची में चीन, जर्मनी, जापान, कोरिया और स्विटजरलैंड को रखा गया है। भारत को अब शामिल किया गया है बाकी के पांचों देश पिछले अक्टूबर की सूची में भी शामिल थे। यह रिपोर्ट अर्ध वार्षिक होती है। अमेरिका के अपने कुछ पैमाने हैं जिनके आधार पर वह देशों को इस लिस्ट में शामिल करता है।
चीन के साथ है भारी व्यापार घाटा
शनिवार को जारी हुई रिपोर्ट के मुताबिक, कोई व्यापार साझेदारी अपनी करेंसी रेट में जानबूझ कर हेराफेरी करते नहीं पाया गया। इस लिस्ट में शमिल पांच देश तीन में से दो मानदंडों पर सही बैठ रहे थे। चीन को इस सूची में इसलिए शामिल किया गया, क्योंकि अमेरिका का व्यापार घाटा उसके साथ बहुत बड़ा है। चीन के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा करीब 337 अरब डॉलर है। अमेरिका का कुल व्यापार घाटा 556 अरब डॉलर है।
अमेरिकी ट्रेजरी सेक्रेटरी स्टीवन ने कहा, ‘हम करेंसी रेट में उतार चढ़ाव करने के गैर वाजिब तौर तरीकों की निगरानी करने के साथ साथ उनसे लड़ते भी रहेंगे। इसके अलावा हम बड़े व्यापार घाटे को बैलेंस करने के लिए नीतियों को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ सुधार के लिए कदम भी उठाते रहेंगे।’
करेंसी रेट जानबूझ कर प्रभावित करते हैं
इस रिपोर्ट के जरिए अमेरिकी संसद को उन देशों के बारे में बताया जाता है जो व्यापार में फायदा हासिल करने के लिए अपनी करेंसी के रेट को जानबूझ कर प्रभावित करते हैं। उदाहरण के तौर पर एक्सचेंज रेट को कम रखते हैं ताकि सस्ते एक्सपोर्ट को बढ़ावा मिल सके।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के साथ अमेरिका का 23 अरब डॉलर का व्यापार घाटा है। भारत ने 2017 की पहली तीन तिमाही में विदेशी मुद्रा की खरीद में बढ़ोतरी की हालांकि रुपए की वैल्यू अब भी बढ़ी है और चीन, जिसे लेकर सबसे ज्यादा है, उसकी मुद्रा का मूवमेंट आमतौर पर डॉलर के विपरीत रहा। इससे अमेरिका के साथ चीन के व्यापार घाटे को कम करने में मदद मिलनी चाहिए।
आर्थिक सुधार करें देश
यूरोपीय करेंसी यूनियन का हिस्सा होने के बावजूद जर्मनी इस लिस्ट में शामिल है। इसका मतलब ये है कि जर्मनी अकेले यूरो के एक्सचेंस रेट को प्रभावित नहीं कर सकता।
दुनिया में सबसे ज्याद करंट अकाउंट सरप्लस जर्मनी का है और इस देश ने बीते तीन सालों में इस सरप्लस को कम करने की दिशा में लगभग कोई तरक्की नहीं की है। अमेरिकी ट्रेजरी ने लिस्ट में शामिल सभी देशों से अपने सरप्लस को बैलेंस करने के लिए आर्थिक सुधार लागू करने को कहा है।