कोटा। सुख और शांति के बीच बड़ा अंतर है। वास्तविक शांति और सुकून केवल बाहरी सुख-सुविधाओं और पैसों में नहीं मिलता है, बल्कि यह हमारे भीतर के गुणों और हमारे आचरण में है।
आदित्य सागर मुनिराज ने बताया कि सुकून पाने के तीन मुख्य स्तंभ परस्पर प्रेम, धैर्य और मधुर व्यवहार हमारे अंदर है। लोगों से अच्छा संबंध, सहनशीलता और अपने व्यवहार में मधुरता ही सच्चे सुकून का स्रोत हैं।
इस अवसर पर सकल समाज से सरंक्षक राजमल पाटौदी, कार्याध्यक्ष जेके जैन, चातुर्मास समिति से टीकम पाटनी, पारस बज, राजेंद्र गोधा, पदम जैन, लोकेश बरमुंडा, चंद्रेश जैन , प्रकाश जैन, रोहित जैन, सुरेंद्र जैन, संजय जैन, जितेंद्र जैन, राकेश सामरिया, संयम लुहाड़िया, तारा चंद बड़ला सहित कई लोग उपस्थित रहे।
पैसे से सुकून नहीं मिलता: उन्होंने कहा कि पैसा केवल भौतिक सुविधाएं दे सकता है, परंतु असली सुख-शांति नहीं। लोग गलतफहमी में रहते हैं कि जितना अधिक पैसा होगा, उतना अधिक सुकून होगा, लेकिन यह सच नहीं है।
धैर्य का महत्व: गुरूदेव ने कहा कि धैर्य से कठिन परिस्थितियों में भी संतुलन बनाए रखा जा सकता है। छोटी-छोटी बातों पर प्रतिक्रिया देने के बजाय धैर्य रखना चाहिए ताकि आंतरिक शांति बनी रहे।
मधुर व्यवहार: किसी के प्रति बुरा व्यवहार करने के बजाय हमें अपना व्यवहार सौम्य और सकारात्मक रखना चाहिए। मधुर व्यवहार आत्मसंतोष और सुकून का अनुभव कराता है।
सुकून का वास्तविक अर्थ: सुकून पाना आसान नहीं है, लेकिन यह उन लोगों के लिए उपलब्ध है जो अपने स्वभाव में संयम, धैर्य और मधुरता लाते हैं। सच्चा सुकून वही है जो आपके संबंधों में प्रेम और धैर्य से आता है।