मोदी सरकार की रफ़्तार को ‘बांध’ सकती हैं तेल की बढ़ती कीमतें

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नई दिल्ली। पीएम नरेंद्र मोदी का एनर्जी रिफॉर्म जल्द ही अपनी सबसे कठिन परीक्षा को झेल सकता है। 2014 में मोदी सरकार के केंद्र में आने के बाद वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में काफी कमी आई। इसके चलते मोदी सरकार का खजाना भरा और ईंधन की कीमतें भी नियंत्रित रखने में सफलता मिली। अब तस्वीर बदल गई है।

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक देश के इंपोर्ट बिल का करीब पांचवां हिस्सा देने वाले पेट्रोलियम बाजार ने अब अपनी दिशा बदल दी है। इस बीच लंबा चुनावी मौसम भी आ रहा है, जो 2019 के आम चुनावों तक जाएगा। ऐसे में आशंका खड़ी हो गई है कि आर्थिक सुधारों के मोर्चों पर दौड़ रही मोदी सरकार पर लोकलुभावन होने का तकाजा भारी पड़ जाए।

ऐसा हुआ तो यह सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों के लिए बुरी खबर है। देश के पंपों पर ईंधन की कीमतें रेकॉर्ड स्तर पर हैं। ईंधन पर सरकार ने टैक्स में भी इजाफा कर रखा है। ऐसे में लोगों की नाराजगी का खतरा अब इसे और आगे बढ़ाने की संभावनाओं को खत्म करता नजर आ रहा है।

ब्लूमबर्ग इंटेलिजेंस के ऐनालिस्ट कुणाल अग्रवाल और कर वाई ली के मुताबिक ऐसी स्थिति में मोदी सरकार के सामने दो ही रास्ते हैं। ब्लूमबर्ग इंटेलिजेंस के 29 जनवरी के नोट के मुताबिक मोदी सरकार या तो एक्साइज ड्यूटी में कटौती का रास्ता अपना सकती है या ईंधन की कीमतों पर फिर से नियंत्रण लागू कर सकती है।

इसके भी दो खतरे हैं। नोट के मुताबिक अगर एक्साइज ड्यूटी घटाई गई तो इसका असर राज्यों के वित्त पर पड़ेगा और अगर कीमत नियंत्रित की गई तो पेट्रोलियम कंपनियों की सेहत खराब होगी। उधर, विपक्ष पहले ही ईंधन की बढ़ती कीमतों को मुद्दा बना चुका है।

सार्वजिक क्षेत्र की पेट्रोलियम कंपनियों आईओसी, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम ने 1 नवंबर के 14 दिसंबर के बीच भी कीमतों में संशोधन नहीं किया। इस दौरान गुजरात और हिमाचल में विधानसभा चुनाव हुए। बीजेपी को दोनों राज्यों में जीत मिली। कीमतें कम होने की बजाय इस दौरान बढ़ी हीं। इस दौरान डीजल करीब एक फीसदी महंगा हुआ।

केआर चोकसे शेयर्स ऐंड सिक्यॉरिटीज प्राइवेट लिमिटेड के ऐनालिस्ट वैभव चौधरी के मुताबिक वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें बढ़ रहीं हैं। इसके बावजूद वह भारत में ईंधन की कीमतों में और इजाफे की उम्मीद नहीं कर रहे हैं। उनके मुताबिक संभवतः सरकार एक बार फिर कीमतों को नियंत्रित कर सकती है। पिछले छह महीनों में कच्चे तेल की कीमतों के ग्लोबल बेंचमार्क में करीब 31 फीसदी का इजाफा हुआ है। 24 जनवरी को यह तीन साल के अपने सर्वोच्च स्तर पर पहुंचा था।