कोटा। चंद्र प्रभु दिगंबर जैन समाज समिति की ओर से श्रमण श्रुतसंवेगी आदित्य सागर मुनिराज संघ का भव्य चातुर्मास जैन मंदिर ऋद्धि-सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में जारी है। इस अवसर पर गुरुवार को आदित्य सागर मुनिराज ने अपने नीति प्रवचन में कहा कि जीवन में संतुलन का अत्यधिक महत्व है, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो। संतुलन खोने पर हानि ही होती है।
उन्होंने कहा कि जीवन में चुनौतियां आती हैं, लेकिन बिखरने के बजाय निखरना है। जीवन का संतुलन बिगाड़ने वाले दो मुख्य शत्रु बेचैनी और अधीरता हैं। आध्यात्मिक प्रबंधन के माध्यम से इन शत्रुओं से निपटा जा सकता है। गुरु की शिक्षाओं का पालन करते हुए संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि गुरु की दीक्षा और शिक्षाओं का सम्मान करते हुए जीवन में बड़ी उपलब्धियां प्राप्त की जा सकती हैं। लेकिन इसके लिए संयम और धैर्य जरूरी है। जीवन में बेचैनी और अधीरता से बचना आवश्यक है। क्योंकि यह संतुलन बिगाड़ देती हैं। छोटी बातों में उलझकर अकारण थकान और बेचैनी से बचना चाहिए। जीवन में बेचैनी अकेलेपन का एहसास कराती है, लेकिन हमें धैर्य और संतुलन बनाए रखना चाहिए।
उन्होंने कहा कि जब हम दूसरों के सामने खुद को बेहतर दिखाने के चक्कर में पड़ते हैं, तो बेचैनी और अधीरता बढ़ती है। गुरूदेव ने उदाहरण दिया कि कैसे लोग अपने बोलने के अंदाज से लेकर व्यवहार तक में बदलाव लाने की कोशिश करते हैं, ताकि वे दूसरों की नजरों में अच्छे दिखें। लेकिन ऐसा करने से स्वाभाविकता खो जाती है।
उन्होंने यह भी कहा कि दूसरों की नकल करने और दिखावा करने से जीवन में धैर्य खो जाता है। हमें दूसरों की बातों और व्यवहार से प्रभावित हुए बिना, सहज और स्वाभाविक बने रहना चाहिए। खुद को अच्छा दिखाने के बजाय, अंदर से अच्छे बनने पर ध्यान देना चाहिए।
इस अवसर पर चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज आदित्य, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा, ऋद्धि-सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़, अशोक पापड़ीवाल सहित कई शहरों के श्रावक उपस्थित रहे।