दुनिया दुख दे सकती है दुखी नहीं कर सकती: आदित्य सागर मुनिराज

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कोटा। चंद्र प्रभु दिगम्बर जैन समाज समिति की ओर से जैन मंदिर रिद्धि- सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में चातुर्मास के अवसर पर आदित्य सागर मुनिराज ने अपने नीति प्रवचन में जीवन प्रबंधन पर कहा कि इस संसार में जो जन्म देता है, वह दुखी है या सुखी वह अपने मन की स्थिति के अनुसार है।

उन्होंने कहा कि किसी व्यक्ति के लिए कोई स्थिति सुख का कारण है तो वही स्थिति अन्यों के लिए दुख का कारण बन जाती है। हमें दुख के दलदल में नहीं जाना है। आपके दुख का कारण मात्र आप स्वयं हैं। यदि अन्य व्यक्ति आपके दुखों का कारण होते तो इस संसार में सुख नहीं बचता। उन्होंने कहा कि जैसे कोई वस्तु भेंट करने पर आप न लें तो वह आपके पास नहीं आ सकती और न ही आपकी हो सकती है। ऐसे में आपकी निंदा या दुख देने का कोई प्रयास कर रहा है तो आप न लें। वह जिसने दी उसी की बन कर रह जाएगी।

उन्होंने कहा कि सुख व दुख मन की कल्पना है। आप अपने आपको भाव मुक्त कर जब भाव मोक्ष तक पहुच जाओगे तो आप सुखी हो जाओगे। इस संसार में जो भी भाव अधीन है, वह दुखी अवश्य होगा। मन में स्वतंत्रता का भाव लाना जरूरी है। हम इस भव सागर में स्वतंत्र हैं।

उन्होंने कहा कि लाभ, हानि, यश, समृद्धि सब इसी संसार में रह जानी है तो उनके लिए मन में सुख व दुख का भाव न लाएं। दुख देना दूसरे का काम है, दुखी होना न होना हमारे हाथ में है। अब आपको कोई अपशब्द बोले तो आप मुस्कुराकर उसका उत्तर दें। दुनिया दुख दे सकती है दुखी नहीं कर सकती है।

इस अवसर पर सकल जैन समाज के संरक्षक राजमल पाटौदी, रिद्धि-सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़, कोषाध्यक्ष ताराचंद बडला, चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा, पारस कासलीवाल सहित कई शहरों के श्रावक उपस्थित रहे।