नेशनल मायोपिया वीक के अवसर पर जागरूकता सेमिनार का आयोजन
कोटा। नेशनल मायोपिया वीक के अवसर पर स्क्विन्ट एंड पीडियाट्रिक ऑप्थेलमोलॉजी सोसायटी ऑफ इंडिया, मतानंद वेलफेयर फाउंडेशन, और एन्टोड फार्मा के संयुक्त तत्वावधान में जागरूकता सेमिनार का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम कोटा के एक प्राइवेट स्कूल में आयोजित हुआ।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ. सुरेश पाण्डेय ने बताया कि बदलती जीवनशैली और स्मार्टफोन व कंप्यूटर के अत्यधिक उपयोग के कारण बच्चों में मायोपिया (निकट दृष्टि दोष) तेजी से फैल रहा है। यदि माता-पिता में से किसी एक को मायोपिया है, तो उनके बच्चों में इसके होने की संभावना बढ़ जाती है। यदि दोनों माता-पिता को यह समस्या है, तो बच्चों में इसका खतरा और भी अधिक हो जाता है।
नेत्र विशेषज्ञ डॉ. विदुषी पाण्डेय ने बताया कि स्मार्टफोन, वीडियो गेम, और लंबे समय तक टीवी देखने की आदत के कारण बच्चों का अधिकतर समय घर के अंदर बीतता है, जिससे मायोपिया का खतरा बढ़ जाता है। लगातार पास का काम जैसे ऑनलाइन क्लासेज, पढ़ाई, और विडियो गेम्स बच्चों की दृष्टि पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं। मायोपिया से पीड़ित व्यक्ति बिना चश्मे के स्पष्ट नहीं देख पाते हैं और उनका चश्मे का नंबर लगातार बढ़ता रहता है।
डॉ. सुरेश पाण्डेय ने बताया कि वर्तमान में विश्वभर में 1.4 अरब लोग मायोपिया से पीड़ित हैं, और यह संख्या 2050 तक बढ़कर 5 अरब तक पहुंच सकती है। इस दृष्टि दोष के कारण रेटिनल डिटेचमेंट, मैक्यूलर डिजनरेशन, मोतियाबिंद और ग्लूकोमा जैसी गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। मायोपिया के उपचार के लिए चश्मा, कॉन्टेक्ट लेंस, लेसिक सर्जरी, और फेकिक लेंस प्रत्यारोपण जैसे विकल्प उपलब्ध हैं।
मायोपिया रोकथाम के उपाय
डॉ. पाण्डेय ने बताया कि अमेरिका और सिंगापुर में हुए शोध के अनुसार, लो-डोज एट्रोपिन (0.01%) आईड्रॉप का उपयोग बच्चों में मायोपिया के प्रगति को रोकने में प्रभावी सिद्ध हुआ है। अब भारत सहित अन्य देशों के नेत्र विशेषज्ञ भी इसका उपयोग कर रहे हैं। यह आईड्रॉप आंखों की मांसपेशियों को रिलैक्स करती है, जिससे आंखों की अंदरूनी लंबाई की वृद्धि कम हो जाती है।
आंखों की सुरक्षा के लिए सुझाव
डॉ. पाण्डेय ने बताया कि माता-पिता बच्चों को आउटडोर गतिविधियों के लिए प्रोत्साहित करें और उन्हें रोजाना आधे घंटे धूप में खेलने दें। बच्चों को स्मार्टफोन, कंप्यूटर और टीवी की लत से बचाएं। हरी सब्जियों, गाजर और विटामिन युक्त फलों का सेवन कराएं। जंक फूड से बचें और पौष्टिक आहार को प्राथमिकता दें।
रेटिना की नियमित जांच करवाएं
वर्ष में दो बार आंखों की और रेटिना की नियमित जांच करवाएं। आंखों को मसलने से बचें, क्योंकि इससे केरेटोकोनस जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इस अवसर पर देव शर्मा, सुनील सक्सेना, प्रिंसिपल वीरेन्द्र जैन, प्रोफेसर वी. एन. तिवारी, और विद्यालय के अन्य शिक्षकों एवं विद्यार्थियों ने भी भाग लिया।