कोचिंग स्टूडेंट्स के बीच पहुंचे चीता, तालियों के साथ किया स्वागत
कोटा। लोग मुझसे पूछते हैं कि इतनी गोलियां लगने के बाद आप कैसे बच गए, मैं उन्हें हंसते हुए जवाब देता हूं कि उनका निशाना ठीक नहीं था।’ जैसे ही कीर्ति चक्र से सम्मानित चेतन चीता ने यह बात कही तो पूरे पांडाल में बैठे हजारों कोचिंग स्टूडेंट्स तालियां बजाने लगे।
कोचिंग स्टूडेंट्स के बीच पहुंचे सीआरपीएफ कमांडेंट चेतन चीता ने स्टूडेंट्स की तरफ से पूछे गए सवालों के खुलकर जवाब दिए। बचपन की बातें सुनाई, पिता की डांट याद आई, पत्नी बच्चों के साथ होने वाली चर्चा और फौज में काम करने के दौरान आने वाली समस्याएं भी सार्वजनिक रूप से बयां की।
आप स्वस्थ हुए और अस्पताल से बाहर आते ही कहा-आई एम रॉकिंग, यह क्या था?
-यह मैंने मेरे जवानों को एक मैसेज दिया था। असल में फौज में कमांडिंग ऑफिसर का घायल होना बड़ी बात होती है। इसके मायने अलग होते हैं। इसका मतलब यह था कि उन्होंने मुझे फिजिकली इंजर्ड किया, लेकिन हौसले नहीं तोड़ पाए। मेरी हमारे अफसरों से बात हुई तो उनसे भी मैंने यही पूछा कि मुझे दोबारा कश्मीर कब भेज रहे हो।
निगेटिव सिचुएशन से बाहर कैसे निकलें?
-यह आपका जज्बा होता है। मेरी वाइफ अक्सर मेरी इस बात से नाराज रहती है कि मैं हर जगह फ्रंट पर पहुंच जाता हूं। लेकिन एक दिन बात कर रहे थे, तब मैंने वाइफ को बोला था कि कुछ भी हो जाए, मैं वापस जरूर आऊंगा।
जैसे फौजी मिशन पर रहते हैं, स्टूडेंट्स पर मिशन पर ही कोटा आते हैं, उन्हें क्या कहेंगे?
-मैं तो खुद पढ़ाई से बहुत भागता था। फादर बहुत कहते थे कि पढ़ाई पर कांसन्ट्रेट करो, लेकिन मेरा झुकाव स्पोर्ट्स पर ज्यादा था।
आपको आश्चर्य होगा 12वीं तक मुझे यह नहीं पता था कि बीए, बीएससी या बीकॉम क्या होता है? इन्हें पढ़ने के बाद क्या करियर होते हैं। मैंने फौज में हर सिचुएशन में काम किया।
आप खुद देखिए, मैंने कभी लाइफ में ऐसा प्लान नहीं किया था कि आप लोग इस तरह मेरा स्वागत करेंगे। लेकिन, मैं कर्म करता गया और शोहरत मिलती गई। बस इतना ही कहूंगा कि कर्म किए जाओ।
आप भी घर से दूर रहते हो, कोचिंग करने आए बच्चे भी घर से दूर हैं, कैसे मैनेज करते हो?
-हम लोगों की एक साल की हार्ड ट्रेनिंग होती है। उसमें सबकुछ सिखाया जाता है। हमारे सीनियर बोलते थे कि आपने अब तक जीवन में जो सीखा है, उस हार्ड डिस्क को फॉरमेट करेंगे, अब नई स्टार्ट करेंगे। यही आपके साथ भी है, आप पक्का सफल हो जाओगे।
फौजी सरहद पर रहते हैं, तनाव तो जरूर होता होगा, कैसे बाहर निकल पाते हैं?
-आप लोगों ने कोबरा टीम का नाम सुना है…। मैं पहले उसी में था। महाराष्ट्र के गढ़ चिरौली में नक्सली एरिया में मेरी पोस्टिंग थी। वहां मलेरिया की बड़ी समस्या होती थी। हैडक्वार्टर से 250 किमी तक हमारे जवान तैनात रहते थे। जब कोई जवान मलेरिया का शिकार होता था तो उसे वहां से निकालकर लाना चुनौतीपूर्ण होता था।
क्योंकि गाड़ी भेजने पर आईईडी ब्लॉस्ट या हमले का खतरा रहता था। चॉपर मंगवाते थे। जब तक बीमार जवान को वहां से नहीं निकाल लेता था, खूब टेंशन रहती थी। क्योंकि मुझे पूरे समय उस फौजी का परिवार दिखता था। आप भी दूर है, आप इस तरह रहने के यूज टू नहीं है। बेहतर है कि आप इंडिपेंडेंट हो जाओ। इससे खुद की गलती पता चलेगी। सोशल स्ट्रेंथ आपको तनाव से बाहर निकालेगी।