श्री बड़े मथुराधीश मंदिर पर नवविलास लीला मनोरथ के लिए उमड़े भक्त

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कोटा। Bade Mathuradhish: शुद्धाद्वैत प्रथम पीठ श्री बड़े मथुराधीश मंदिर पर भक्ति और आराधना का पर्व नवविलास उत्सव प्रारंभ हुआ। परंपरा अनुसार ठाकुर जी के चरणों में नवरात्र के अवसर पर माटी के कुंडों में गेहूं का अंकुर रोपण किया गया।

माना जाता है कि अंकुर फूटने के साथ ही भक्तों के हृदय में प्रभु के चरणों के प्रति प्रेम और स्नेह बढ़ने लगता है। रविवार को नवविलास लीला मनोरथ के दर्शनों के लिए पाटनपोल में बड़ी संख्या में भक्त पहुंचे। इस दौरान मथुराधीश प्रभु के जयकारे गूंज उठे।

नवविलास के दौरान प्रभु को नई नई वस्तुएँ धराई गई। नूतन सामग्री, नए रंग के छापे के वस्त्र और नूतन भोग अर्पित किए गए। नवरात्र पर प्रभु को सुनहरे श्वेत वस्त्र और चंद्रकला सामग्री अर्पित की गई।

द्वारों की दहलीज को हल्दी से मांडा गया। आशापाला के पत्तों और सूत की डोरी से तैयार बंदनवार बांधी गई। झारी जी में यमुना जी का जल भरा गया। गेंद, चौगान, दीवाला आदि सभी सोने के आए। तकिया के खोल एवं साज जड़ाऊ स्वर्ण काम के चढ़ाए गए। चारों समय की आरती थाली में की गई।

प्रथम विलास की भावना का स्थल निकुंज भवन और मनोरथ की मुख्य सखी चन्द्रावलीजी थीं। इस दौरान रास- पंचाध्यायी का पाठ, मुरली, इकाइयों एवं रास के पद गाकर ठाकुर जी को रिझाया।

प्रतिदिन विविध रंग के वस्त्र धराए जाएंगे
प्रथम पीठ युवराज गोस्वामी मिलन कुमार बावा ने बताया कि पुष्टिमार्ग में नवरात्र को नवधा भक्ति के प्रतीक के रूप में माना जाता है। जिसके अनुसार अश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नव विलास उत्सव होता है। नवरात्र में प्रभु को प्रतिदिन विविध रंग के वस्त्र धराए जाएंगे। जिसमें पीले, सफेद, गाढ़ा रंग, लाल, श्वेत, केसरी, हरे रंग के वस्त्र धराए जा रहे।

नौ दिनों के नव भाव माने गए हैं
पुष्टिमार्ग में वैष्णव भक्तों के नौ भाव माने गए हैं। जिनमें राजस, तापस, सात्विक भाव के साथ निर्गुण भाव प्रमुख है। नव विलास को प्रभु मिलन के विरह में गोपियों के संग की गई लीला से भी जोड़ा जाता है।