बीते दिनों में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आम जनता को राहत पहुंचाने के लिए एक से बढ़कर एक जितनी घोषणा की है, उतनी पहले शायद ही कभी किसी मुख्यमंत्री ने पद पर रहते हुए की होगी। मुख्यमंत्री की ओर से की जा रही एक के बाद एक और एक से बढ़कर एक लुभावनी घोषणाओं ने भाजपा नेताओं की जान सांसत में डाल रखी थी। उन्हें हर दिन यह आशंका सता रही थी कि मुख्यमंत्री आज क्या घोषणा कर सकते हैं जो बाद में चलकर भाजपा के चुनाव प्रचार के अभियान की राह का रोड़ा बन सकती है।
-कृष्ण बलदेव हाडा-
Ashok Gehlot’s announcements: केंद्रीय निर्वाचन आयोग के राजस्थान समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के कार्यक्रम की सोमवार को घोषणा करने के साथ ही कानूनी रूप से आचार संहिता लागू हो जाने के बाद कम से कम प्रदेश के भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने राहत की सांस महसूस की है।
भाजपा नेताओं को राहत इसलिए मिली है कि आचार संहिता लग जाने के बाद कम से कम अगला विधानसभा चुनाव पूरी दमदारी के साथ जीतने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से लगातार की जा रही घोषणाओं का घोड़ा तो कम से कम थम जाएगा।
क्योंकि इस चुनावी साल में और खास तौर से बीते दिनों में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आम जनता को राहत पहुंचाने के लिए एक से बढ़कर एक जितनी घोषणा की है, उतनी पहले शायद ही कभी किसी मुख्यमंत्री ने पद पर रहते हुए की होगी।
मुख्यमंत्री की ओर से की जा रही एक के बाद एक और एक से बढ़कर एक लुभावनी घोषणाओं ने भाजपा नेताओं की जान सांसत में डाल रखी थी। उन्हें हर दिन यह आशंका सता रही थी कि मुख्यमंत्री आज क्या घोषणा कर सकते हैं जो बाद में चलकर भाजपा के चुनाव प्रचार के अभियान की राह का रोड़ा बन सकती है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पहले ही राजस्थान को 19 नए जिले बनाने की घोषणा कर इन जिलों के लाखों लोगों को एक महत्वपूर्ण सौगात दे चुके थे, जिसे देखने हुए भाजपा नेता बड़ी चिंता में थे और यह कहकर श्री गहलोत की घोषणाओं का महत्व कमतर करने की नाकाम कोशिश कर रहे थे कि बिना किसी तैयारी के यह घोषणाएं की गई।
लेकिन श्री गहलोत ने एक कदम ओर आगे बढ़ाते हुए चुनाव आयोग के विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू करने से पहले ही शुक्रवार को राज्य में तीनो नए जिले मालपुरा, कुचामन सिटी और सुजानगढ़ के गठन की घोषणा कर एक और सौगात देते हुए मतदाताओं को लुभाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी।
इसके अलावा आने वाले विधानसभा चुनाव में मतदान की तिथि तय होने से पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जातिगत आधार पर सर्वे कराने की घोषणा कर पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं को लुभाने का एक बड़ा जुआ खेला।
हालांकि अब जबकि चुनाव आयोग के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के बाद आचार संहिता लग चुकी है तो ऐसे में फिलहाल राजस्थान में जातिगत आधार पर सर्वे होने की कोई संभावना फिलहाल नहीं है, लेकिन शनिवार शाम को एक कार्यक्रम में इस आशय का सर्वे करवाने की घोषणा करके मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक बड़ा दाव खेलते हुए मतदाताओं को लुभाने की अहम कोशिश की है।
क्योंकि इस सर्वे के बाद नौकरियों समेत विभिन्न क्षेत्रों में अन्य पिछड़ा वर्ग की जातियों के लोगों की हिस्सेदारी बढ़ने की एक बड़ी उम्मीद जागी है और इस उम्मीद को आने वाले विधानसभा चुनाव में अशोक गहलोत वोटों में तब्दील करना चाहते हैं।
पिछले काफी समय से अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग ओबीसी को दिए जाने वाले आरक्षण को बढ़ाने की मांग करते आ रहे हैं। विभिन्न संगठनों ने ओबीसी को आरक्षण 21 प्रतिशत तक बढ़ाने की मांग रखी हुई है। साथ ही कई अन्य जातियों को भी अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल करने की मांग लगातार उठाई जाती रही है।
इन सभी मसलों पर जातीय समीकरण साधने के लिए ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जातिगत आधार पर सर्वे करवाने की घोषणा की थी और इस बारे में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग ने शनिवार देर रात को आधिकारिक तौर पर एक आदेश भी जारी कर दिया।
यह अलग बात है कि अब क्योंकि आचार संहिता लग चुकी है तो इस आदेश की इस विधानसभा के चुनाव नतीजे आने से पहले लागू होने की कोई संभावना बची नहीं है लेकिन मुख्यमंत्री तो अपना दांव खेल चुके हैं और उनकी यह घोषणा और सरकार का फैसला अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को कांग्रेस की ओर से की तरफ आकर्षित करेगा।
इस जातिगत सर्वे का मुख्य मकसद आर्थिक से लेकर सामाजिक, शैक्षणिक स्तर पर नागरिकों की स्थिति के अध्ययन के आधार पर जातिगत आधार पर सुधारों की विभिन्न योजनाओं को बनाकर उनका क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जाना है ।