सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 में संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू

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नई दिल्ली। SC Hearing On Article 370: सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 में संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की। जम्‍मू और कश्‍मीर को विशेष दर्जा देने वाले प्रावधान को केंद्र ने 2019 में खत्म कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने बुधवार को याचिकाकर्ताओं से पूछा कि यह प्रावधान तो अस्थायी था, स्‍थायी कैसे बन गया?

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच का फोकस इसी सवाल पर रहा। सुप्रीम कोर्ट ने नैशनल कॉन्फ्रेंस के नेता मोहम्मद अकबर लोन के वकील कपिल सिब्बल से कई सवाल किए।

सिब्बल ने अपनी दलीलों में 1846 की लाहौर संधि का हवाला देते हुए कश्‍मीर मुद्दे का ऐतिहासिक पहलू समझाया। सिब्बल का कहना था कि ‘राज्य स्वतंत्र रहना चाहता था मगर अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान के समर्थन वाले सैन्य आक्रमण के चलते कश्‍मीर के महाराजा को इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर साइन करना पड़ा।’

‘एक राजनीतिक कार्रवाई के माध्यम से अनुच्छेद 370 को खिड़की से बाहर फेंक दिया गया। यह कोई संवैधानिक कार्य नहीं था। संसद ने खुद संविधान सभा की भूमिका निभाई और अनुच्छेद 370 को यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि वह जम्मू-कश्मीर के लोगों की इच्छा का प्रयोग कर रही है। क्या ऐसी शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है?

कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि जम्मू-कश्मीर के लोग भारत का अभिन्न अंग हैं, लेकिन एक विशेष रिश्ता है जो अद्वितीय है और जिसे अनुच्छेद 370 में ही तैयार किया गया है।’

आप एक राज्य की सीमा बदल सकते हैं, आप एक बड़े राज्य की सीमाओं को विभाजित करके छोटे राज्य बना सकते हैं। लेकिन इस देश के इतिहास में कभी भी एक राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में परिवर्तित नहीं किया गया है।’​

सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करना एक ‘राजनीतिक फैसला’ था। उन्होंने कहा कि ऐसा फैसला सरकार ले सकती है मगर उसका रास्ता संसद नहीं हो सकती। सिब्बल ने कहा, ‘अगर आप अनुच्छेद 370 को निरस्त करना चाहते हैं, तो आपको संविधान सभा से सिफारिश लेनी होगी।’ इसपर सीजेआई ने कहा कि ‘जब तक यह अस्तित्व में थी’। सिब्बल ने कहा कि संविधान सभा ने जम्मू-कश्मीर के लिए संविधान तैयार करने के बाद अपना कार्यकाल पूरा कर लिया था।

CJI ने सिब्बल से पूछा, ‘किस मामले में, अनुच्छेद 370, जो एक अस्थायी प्रावधान है, इस तथ्य के आधार पर स्थायी प्रावधान का चरित्र ग्रहण करता है कि वहां कोई संविधान सभा नहीं है।’ वकील ने जवाब में कहा, ‘बिलकुल’। सिब्बल ने कहा कि कोई भी संसद खुद को संविधान सभा में परिवर्तित नहीं कर सकती है। उन्होंने कहा, ‘संसद को ऐसी शक्ति कहां से और किन प्रावधानों के तहत मिलती है? वहां एक अनूठी संरचना थी जिसे 5 अगस्त, 2019 को बदल दिया गया और अनुच्छेद 370 को खिड़की से बाहर फेंक दिया गया।’

संविधान सभा का कार्यकाल खत्‍म हो गया
CJI ने सिब्बल से पूछा, ‘क्या होता है जब संविधान सभा का कार्यकाल समाप्त हो जाता है? किसी भी संविधान सभा का कार्यकाल अनिश्चित नहीं हो सकता है। अनुच्छेद 370 के खंड (3) का प्रावधान राज्य की संविधान सभा की सिफारिश को संदर्भित करता है, और यह कहता है कि राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचना जारी किए जाने से पहले संविधान सभा की सिफारिश आवश्यक है। लेकिन सवाल यह है कि जब संविधान सभा का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा तो क्या होगा?’ सिब्बल ने जवाब में कहा कि यह बिल्कुल उनका पॉइंट है और उनका पूरा मामला इस बारे में है कि राष्ट्रपति संविधान सभा की सिफारिश के बिना अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए कोई अधिसूचना जारी नहीं कर सकते।

जस्टिस गवई ने दखल देते हुए सिब्‍बल से पूछा कि क्या यह तर्क दिया जा रहा है कि 1957 के बाद अनुच्छेद 370 के बारे में कुछ नहीं किया जा सकता था, जब जम्मू कश्मीर संविधान सभा का कार्यकाल समाप्त हो गया था। सिब्बल ने कहा कि अदालत वर्तमान में एक संवैधानिक प्रावधान की व्याख्या कर रही है। वह यहां उस प्रक्रिया को वैध बनाने के लिए नहीं है जो संविधान के लिए अज्ञात है।

कश्‍मीरी चाहें तो भी नहीं हटा सकते 370
​जस्टिस संजय किशन कौल की दलील है कि अगर जम्‍मू और कश्‍मीर के लोग अनुच्छेद 370 को हटाना चाहें तो भी ऐसा नहीं किया जा सकता क्योंकि संविधान सभा अस्तित्व में नहीं रह गई। इसके नतीजे समझने की कोशिश कीजिए।