कोटा। Chandrayaan-3 mission: चंद्रयान तीन मिशन का पहला चरण पूरा हो चुका है। चंद्रयान के धरती से चांद तक पहुंचाने वाली टीम में कोटा की सुष्मिता चौधरी भी शामिल रही हैं। कोटा के श्रीनाथपुरम की रहने वाली सुष्मिता की लॉन्च व्हीकल की ट्रेजेक्टरी को डिजाइन करने वाली टीम में अहम भूमिका रही है।
14 जुलाई को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग की। सुष्मिता ने बताया- चंद्रयान-3 को चंद्रमा की कक्षा में स्थापित होने तक तीन चरण पूरे करने पडे़ंगे। चालीस दिनों में यह तीनों चरण होंगे। अभी चंद्रयान 3 पृथ्वी की कक्षा में है। इसकी सबसे कम दूरी महज 170 किमी है। इसे पृथ्वी की कक्षा की सबसे ज्यादा दूरी 36 हजार किमी पर लेकर जाया जाएगा। जब यह दूरी तय कर ली जाएगी। तब वह चांद की कक्षा में जाएगा।
सुष्मिता ने बताया- पहले वह चित्तौड़गढ़ में रहती थी। पिता रेलवे में इंजीनियर हैं। ऐसे में ट्रांसफर होते रहते थे। फिर कोटा शिफ्ट हुए। कोटा में 7वीं से 12वीं तक श्रीनाथपुरम में स्थित एक स्कूल में की। इसके बाद कोटा में ही आईआईटी की तैयारी के लिए कोचिंग ली। साल 2014 में आईआईटी में सलेक्शन हो गया। आईआईटी मंडी हिमाचल में इलेक्ट्रिकल ब्रांच मिली। 2018 में आईआईटी कंप्लीट होने के साथ ही कॉलेज कैंपस में इसरो की टीम आई थी। इसमें मेरा सिलेक्शन हुआ। इसके बाद तब से आज पांच साल हो गए। इसरो में ही काम कर रही हूं।
उन्होंने बताया- अभी एसडी लेवल 11 साइंटिस्ट हूं। ज्वॉइनिंग साइंटिस्ट सी लेवल पर हुई थी। चार साल बाद प्रमोशन हुआ है। पिता अभी मुंबई चर्चगेट में तैनात हैं। कोटा में मां और तीन बहनें रहती हैं। दोनों छोटी बहन आईआईटी और मेडिकल की तैयारी कर रही हैं। सुष्मिता ने बताया- पिता के ट्रांसफर के चक्कर में चार पांच बार स्कूल बदलने पडे़। हालांकि छठवीं क्लास तक ही ऐसा हुआ। इसलिए ज्यादा परेशानी नहीं आई। उसके बाद कोटा में ही मकान लिया। यहीं परमानेंट रहने लगे। पिता की अभी भी ड्यूटी चेंज होती रहती है।
कल्पना चावला से प्रेरित: सुष्मिता ने बताया- बचपन से यही सपना था कि इंजीनियर बनूंगी। मैथ्स सब्जेक्ट अच्छा लगता था। आईआईटी में जाने का सपना तो था ही। हां अंतरिक्ष विज्ञान या इसरो के बारे में शुरुआत में नहीं सोचा था। इतना पता भी नहीं होता था। धीरे धीरे जानने लगे। कॉलेज गए तो वहां पता लगा कि वैज्ञानिक कैसे काम करते हैं। इसरो में क्या -क्या होता है। इसके बाद इच्छा होने लगी कि अगर इसरो में काम करने का मौका मिले तो अच्छा रहेगा। हालांकि मैं हमेशा नया करने के बारे में सोचती हूं। मुझे गर्व है कि मैं चंद्रयान तीन का हिस्सा रही हूं। मेरे और मेरे माता पिता के लिए बहुत गर्व की बात है। चालीस दिन बाद हमारा देश और इसरो सफलता की नई कहानी लिखेगा और पूरी दुनिया हमारे तरफ देखेगी। सुष्मिता ने बताया कि वह कल्पना चावला से प्रेरित है।
ग्रामीण लड़कियों के लिए प्रेरणा: सुष्मिता ने बताया- उनका परिवार मूल रूप से कोटा ग्रामीण के सांगोद के पास के गांव का रहने वाला है। उस समय हमारे गांव में बेटियों को इतना ज्यादा पढ़ाना या नौकरी करने के लिए घर से दूर भेजना तो नामुमिकन था। पिता की जॉब थी, हम गांव से बाहर रहते थे। माता पिता ने पढ़ाई को लेकर हमे कभी नहीं टोका। पढ़ने के लिए भी घर से दूर भेजा। नौकरी के लिए भी भेजा। यह ग्रामीण क्षेत्रों की उन लड़कियों के लिए भी सोचना जरूरी है कि जो किसी न किसी कारण से पढ़ाई बीच में छोड़ देती है।
कॉलेज से पहली लड़की: सुष्मिता ने बताया- अपने आईआईटी की अकेली लड़की, जिसे इसरो में जॉब मिली है। सलेक्शन प्रोसेस अलग अलग चरणों में था। पहले चार साल के अकेडमिक रिपोर्ट देखी। प्रोजेक्टस देखे, जिन पर स्टूडेंटस ने काम किया। इसके बाद इंटरव्यू हुआ। पढ़ाई के बारे में भी और हम विज्ञान को कितना जानते है, इस बारे में भी सवाल पूछे गए। ऐसी सिचुऐशन बताई गई, जो परेशानी वाली हों तो उससे कैसे निपटेंगे। हमारे बैच में मैं ही एक लड़की थी। इसके पहले भी जब 2014 में इसरो टीम कैंपस में आई थी तब भी सिर्फ चार लड़कों का ही सलेक्शन हुआ था। 40 मिनट का इंटरव्यू हुआ था।