विश्वभर में बच्चों में होने वाली दृष्टिहीनता का प्रमुख कारण रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमेच्योरिटी

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वर्ल्ड प्रीमेच्योरिटी डे (World Prematurity Day) पर विशेष

डॉ. सुरेश पाण्डेय-
नेत्र सर्जन एवं मेडिकल पुस्तकों के लेखक

रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमेच्योरिटी (Retinopathy Of Prematurity) प्री मेच्योर बच्चों (Pre Mature Children)के आंख के पर्दे की गंभीर व्याधि है एवम् विश्वभर में बच्चों में होने वाली अंधता/दृष्टिहीनता का प्रमुख कारण है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में आर.ओ.पी. के कारण प्रत्येक वर्ष लगभग 5 लाख बच्चों की आँखों की रोशनी प्रभावित होती है।

मॉडरेट टू लेट प्री टर्म: उपचार के अभाव में 50 हजार से अधिक बच्चे एडवांस आर.ओ.पी. (ROP) के कारण नेत्र ज्योति हमेशा के लिए खो देते हैं। सामान्य प्रेगनेंसी में 40 सप्ताह के बाद शिशु जन्म होता है एवं 37 सप्ताह से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं को प्री टर्म बर्थ या प्री मेच्योर बेबी कहा जाता है। जिन बच्चों का जन्म 28 सप्ताह में होता है उन्हें एक्सट्रेमेली प्री टर्म, 28 से 32 सप्ताह के मध्य जन्मे शिशुओं को वेरी प्री टर्म, 32 से 37 सप्ताह के बीच जन्में शिशुओं को मॉडरेट टू लेट प्री टर्म कहा जाता है।

लर्निंग डिसएबिलिटी: प्रीमेच्योर शिशुओं में जन्म के 2-4 सप्ताह के अंदर आंख के पर्दे (रेटीना) की विस्तृत जांच नेत्र (रेटीना) विशेषज्ञ से करवाकर रेटिनोपैथी ऑफ़ प्रीमेच्योरिटी द्वारा होने वाली अंधता को रोका जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रत्येक वर्ष लगभग 1.5 करोड़ बच्चे प्री मैच्योर/प्री टर्म (37 सप्ताह से पहले) जन्म लेते हैं। लगभग दस लाख प्री टर्म बच्चों की डैथ जन्म के बाद मेडिकल जटिलताओं के कारण हो जाती है। जो बच्चे बचते हैं उनमें से अनेक अंधेपन, सुनने की क्षमता को अभाव अथवा लर्निंग डिसएबिलिटी से पीड़ित होकर जीवन भर प्री टर्म जन्म का दंश झेलते हैं।

इस बीमारी के बारे में और अधिक समझने के लिए यह वीडियो देखिए –

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा समूचे विश्व में 17 नवम्बर को विश्व प्रीमेच्योरिटी डे मनाया जाता है। इस दिवस का मुख्य उद्देश्य प्रीमेच्योर बच्चों में होने वाली जटिलताओं के प्रति जनसाधारण में जागरूकता बढ़ानी है। विश्वभर में प्रत्येक दिन 3 लाख 60 हजार बच्चे जन्म लेते हैं, जिनमें से लगभग 10 प्रतिशत बच्चे प्रीमेच्योर होते हैं।

इनडायरेक्ट ऑफ्थलमाॅस्कोपी टेस्ट: डायबिटिज, हाइपरटेंशन, स्मोकिंग, मोटापा से ग्रस्त महिलाओं को प्रीमेच्योर संतान होने की संभावना अधिक होती है। आर.ओ.पी. द्वारा होने वाली अंधता से बचने के लिए बच्चे के जन्म के 2-4 सप्ताह के अंदर पर्दे (रेटिना) के विशेषज्ञ नेत्र चिकित्सक द्वारा पर्दे की इनडायरेक्ट ऑफ्थलमाॅस्कोपी (Indirect Ophthalmoscopy) नामक सम्पूर्ण जाँच करवाने से इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है।

रेटिनल स्क्रीनिंग: नौ माह से पहले जन्म लेने वाले नन्हे शिशुओं को रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमेच्योरिटी(आर.ओ.पी.) नामक गंभीर नेत्र रोग होने का खतरा बढ़ा हेै। उपचार के अभाव में एडवांस आर.ओ.पी जीवन पर्यन्त अंधता का कारण बन सकता है। समय से पहले जन्में प्री मेच्योर शिशुओं जन्म के तुरंत बाद यह बीमारी नहीं होती है। यह रोग जन्म के कुछ दिनों बाद प्रकट होता है एवं उपचार के अभाव में जन्म के 1-2 माह के अन्दर ही लाइलाज होने के साथ ही बच्चे के जीवन पर्यन्त अंधता का कारण बनती है। समय पर रेटिनल स्क्रीनिंग (आंख के पर्दे की विस्तार से जांच) द्वारा रोका जा सकता है।

पर्दे की विस्तृत जांच: सुवि नेत्र चिकित्सालय कोटा की नेत्र सर्जन डॉ विदुषी शर्मा के अनुसार जिन बच्चों का जन्म 37 सप्ताह से पहले हुआ है, उन्हें जन्म के दो से तीन सप्ताह में पर्दे की विस्तृत जांच करना आवश्यक है। जिन बच्चों का जन्म 30 सप्ताह से पहले हुआ है अथवा जिनका वजन 1200 ग्राम से कम है उन्हें जन्म के पन्द्रह से बीस दिनों के बीच आंख के पर्दे की विस्तृत जांच नेत्र (रेटीना) विशेषज्ञ द्वारा करवाना आवश्यक है।

आर.ओ.पी. स्क्रीनिंग: रेटिनल स्क्रीनिंग एवं आर.ओ.पी. होने पर आँख के पर्दे का लेज़र, क्रायोथैरेपी, एन्टी-वेजेएफ इंजेक्शन एवं आंख के पर्दे की शल्य चिकित्सा द्वारा इस बीमारी के दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है। इस संबंध में आर.ओ.पी. स्क्रीनिंग, शिशु रोग विशेषज्ञ एवं समाज में जागरूकता बढ़ाकर एवं प्रीमेच्योर शिशुओं में समय-समय पर आंख के पर्दे की जांच करवाकर अंधता को रोका जा सकता है। इन नवजात शिशुओं में आर.ओ.पी. के द्वारा होने वाली अंधता को रोका जा सकता है।

भारत में प्री टर्म बच्चों का जन्म: विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में प्रत्येक वर्ष 35 लाख प्री टर्म बच्चों का जन्म होता है। यह संख्या विश्व में सबसे अधिक है।* इसके बाद चीन (11 लाख) , नाईजीरिया (7.7 लाख), पाकिस्तान (7.4 लाख), इंडोनेशिया (6.7 लाख) आदि देश हैं। आर.ओ.पी. के कारण प्रत्येक वर्ष लगभग 5 लाख बच्चों की आँखों की रोशनी प्रभावित होती है एवं उपचार के अभाव में 50 हजार से अधिक बच्चे एडवांस आर.ओ.पी. के कारण नेत्र ज्योति हमेशा के लिए खो देते हैं।

प्रीमेच्यूर बच्चों में नेत्रहीनता: विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत जैसे विकासशील देश में रेटिनोपैथी ऑफ़ प्रीमेच्यूरिटी एक चौथाई प्रीमेच्यूर बच्चों में नेत्रहीनता का मुख्य कारण है। भारत में 2 करोड़ 60 लाख बच्चे प्रत्येक वर्ष जन्म लेते है, इनमें से 35 लाख प्री टर्म होते हैं एवं 20 लाख बच्चों का वजन 2 किग्रा. से कम होता है। यह बच्चे जागरूकता के अभाव में रेटिनोपैथी ऑफ़ प्रीमेच्योरिटी नामक रोग से पीड़ित होकर आँखों की रोशनी खो सकते हैं। जिन बच्चों का वजन जन्म के समय 2 किग्रा. से कम है उन 50 प्रतिशत बच्चों में आर.ओ.पी. नामक गंभीर नेत्र रोग होने के संभावना रहती है।

रेटिना में रक्त के नये स्रोत: 32 सप्ताह से पूर्व जन्में प्री मेच्योर बच्चों में रेटिना पूर्ण तरह से विकसित न होने के कारण रेटिना में रक्त के नये स्रोत उत्पन्न होते हैं, जो कि कमजोर होते है और रक्त स्राव करते है। इस रक्तस्राव के कारण रेटिना में निशान एवं खिंचाव बनता है। आर.ओ.पी. से पीड़ित बच्चों में आँखों में दृष्टि दोष (मायोपिया), नेत्रों का तिरछापन, सुस्त आँख, आँख का रक्तस्राव, मोतियाबिन्द, ग्लूकोमा, रेटिनल डिटेचमेन्ट (पर्दे का उखड़ना) आदि समस्या हो सकती है।

अंधता रोकना संभव: देश में छोटे बच्चों की चिकित्सा सुविधाओं एवं नियोनेटल केयर के बढ़ते अब प्री मैच्योर बच्चों की जान बचा पाना अब सम्भव हो रहा है। समाज में जागरुकता बढ़ाकर, शिशु रोग विशषज्ञों एवम् नेत्र विशेषज्ञों के साझा प्रयासों से रेटिनोपथी ऑफ़ प्री मेच्योरीटी से होने वाली अंधता को रोका जा सकता है।