–मुकेश भाटिया
कमोडिटी एक्सपर्ट
कोटा। गुजरात और राजस्थान जैसे शीर्ष उत्पादक राज्यों में जीरे की बुवाई जल्दी ही शुरू होने वाली है। इस बार दोनों प्रांतों में मानसून सीजन के दौरान अच्छी बारिश हुई है और खेतों की मिटटी में नमी का पर्याप्त अंश भी मौजूद है इसलिए किसान को सही समय पर इसकी बुवाई करने में परेशानी नहीं होगी।
कुछ निचले इलाकों में जरूर पानी भरा है लेकिन वर्षा का दौर थमने पर यानी क्रमिक रूप से सूखता जाएगा। मोटे अनुमान के अनुसार चालू वर्ष के दौरान जीरे का बिजाई क्षेत्र कुछ बढ़ सकता है। सबसे प्रमुख व्यावसायिक केन्द्र- गुजरात की ऊंझा मंडी में जीरे के दाम में सीमित उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है, जबकि वहां इसकी आवक भी सीमित हो रही है।
उत्तरी भारत में मानसूनी बारिश का सिलसिला जारी रहने तथा यातायात में बाधा पड़ने से जीरा का कारोबार प्रभावित हो रहा है। ऊंझा मंडी में जीरे की औसत दैनिक आवक घटकर महज 5-7 हजार बोरी की रह गई है लेकिन दिसावरी मांग कमजोर होने से कीमतों में तेजी नहीं आ रही है। निर्यातकों की सक्रियता में भी कमी आने की सूचना है। श्रीलंका, बांग्लादेश एवं मलेशिया के साथ-साथ चीन में भी इसकी मांग कमजोर पड़ गई है.
गुजरात में जीरा का बिजाई क्षेत्र वर्ष 2017 के 3.83 लाख हेक्टेयर से घटकर 2018 में 3.45 लाख हेक्टेयर के करीब रह गया था लेकिन वर्ष 2019 में क्षेत्रफल पुनः बढ़ने के आसार हैं। मिटटी में पर्याप्त नमी के कारण फसल का विकास भी बेहतर ढंग से हो सकता है।अंतर्राष्ट्रीय निर्यात बाजार में भारतीय जीरा के दो मुख्य प्रतिस्पर्धी- सीरिया एवं तुर्की में निर्यात योग्य माल का स्टॉक बहुत कम बचा हुआ है, जबकि वहां इसका नया माल अगले साल जून-जुलाई में आएगा।
इस बीच भारत ही वैश्विक बाजार में जीरा का एक मात्र प्रमुख आपूर्तिकर्ता देश बना रहेगा। ऐसी हालत में अगर आयातक देशों की मांग बढ़ती है तो भारतीय जीरे के दाम पर स्वाभाविक रूप से इसका सकारात्मक असर पड़ेगा और बाजार में कुछ तेजी आ सकती है। लेकिन,यदि बिजाई में बढ़ोतरी हुई तो बाजार ज्यादा ऊंचा नहीं उठ पाएगा।